आखिरी आलिंगन

आखिरी आलिंगन

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"इस तरह रात को छुपकर मिलना अच्छा नहीं लगता!" नाज़ो ने थोड़ी उदासी दिखाते हुए अपने शौहर से कहा।

"क्या करूं जानेमन ,जानती तो हो कि दिन में तुमसे मिल नहीं सकता।" अहमद बोला। " पुलिस मेरे ऊपर कड़े नजर रखे हुए है।"

" अच्छा सुन, यह कुछ पैसे हैं अम्मा की दवाई के लिए।"

" यह काम छोड़ क्यों नहीं देते ? सुनो, मेरी बात मानों, आत्मसमर्पण कर लो। " नाजो ने एक आखिरी कोशिश की।

"मै अपने बच्चे को ऐसे माहौल में पैदा नहीं करना चाहती !"

"क्या सच में??मैं अब्बा बनने वाला हूं ?

मारे खुशी के अहमद ने अपनी नाज़ो को गहरे आलिंगन में भींच लिया।

" मैं वादा करता हूं तुझसे, अपने होनेवाले बच्चे की कसम, सब छोड़ दूंगा। एक---।"

" धर्राम धराम "

दो राउंड गोली की आवज और फिर सन्नाटा।

अपनी बात पूरी कर पाने के पहले ही वह आतंकवादी पुलिस की गोली का शिकार होकर वहीं गिरने लगा।

नाजनीन मुठी में चंद नोट दबाए विस्फारित नेत्रो से उस शक्स को ज़मीन पर धीरे-धीरे गिरते देख रही थी जो अपने बच्चे के खातिर अभी अभी आतंक के साये से निकलकर एक नई जिन्दगी की शुरुवात करने की बात कर रहा था !


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