Manjula Dusi

Drama

4.7  

Manjula Dusi

Drama

अकेलेपन का दर्द

अकेलेपन का दर्द

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मम्मा काश मैं भी पापा के पास चला जाता"....अंशुल...लखभग चिल्लाते हुए निशा नें पाँच साल के अंशुल को भीच लिया..."ऐसा नहीं कहते अंशू तुम्हारे बिना तुम्हारी मम्मा कैसे रहेगी,फिर कभी ऐसा मत कहना"...सबके पापा है,पापा कितने अच्छे होते हैं ना..रोज कुछ न कुछ लाते हैं..बाइक में घुमाते है...कितना प्यार करते हैं...बस मेरे पापा को ही क्यों भगवान ले गए?..निशा के पास अंशू के मासूम सवालों का कोई जवाब नहीं था...वो खुद भी तो रोज ही भगवान से हज़ारों बार पूछती कि क्यो वो उसके राज को उससे छीनकर ले गए।

     राज की एक्सीडेंट में मौत के बाद से सिर्फ सवालों के जवाब ही तो दे रही है वो..जब अंशू का एडमिशन करवाने गई तो प्रिंसिपल का सवाल"ओह सो यू आर ए सिंगल मदर,हमारे स्कूल की फीस मैनेज कर पाएगीं आप?...निशा के आश्वासन के बाद भी कि वो खुद अच्छी कंम्पनी में अच्छी सैलरी के साथ काम करती है ,उन्हे यकीन नहीं हो रहा था।रास्ते में पुरानी सहेली टकरा गई"बहुत बुरा लगा राज जीजू के बारे में सुनकर..कैसे मैनेज कर रही है तू सबकुछ"..कभी सोसाइटी में अधेड़ से पडोसी घूरकर देखते हैं और पूछते हैं"निशा जी,आप तो अकेले रहती हैं ना..कोई मदद चाहिये हो तो बोलिएगा, हम आधी रात को भी हाजिर हो जाएंगे।मैनेज ही तो कर रही है,कभी अंशू की माँ बनके कभी पापा बनके ,थक जती है लोगो के सवालो के जवाब देकर और खुद को उनकी गंदी नजरो से बचा कर तो राज की तस्वीर को पकड़ कर घंटों रोती रहती है,लेकिन अंशू के सामने खुद को कमजोर नहीं पड़ने देती।

      एक रवि ही है जो उसे समझता है,दोनो साथ में काम करते हैं,जब कभी निशा कमजोर पड़ती है रवि ही समझाता है,कहता है.."तुम तो शेरनी हो और शेरनी कभी हार नहीं मानती"अंशू भी रवि के साथ बहुत खुश होता..कभी कभी रवि उन्हें बाहर घुमाने ले जाता, तो अंशु जरूर कहता"मम्मा आज का डे बेस्ट था" एकदिन अचानक अंशू ने कहा"पापा भी रवि अंकल जैसे थे क्या मम्मा?"..निशा सन्न रह गई अंशू का बालमन न जाने कैसे कैसे सपने देखने लगा था...निशा ने तय कर लिया कि वो रवि से दूरी बना लेगी,वो अंशू को ऐसे सपने नहीं देखने दे सकती जो कभी पूरे नहीं हो सकते।


 निशा ने रवि से बात करना कम कर दिया और दूसरी कम्पनी में नौकरी तलाश करने लगी...जल्द ही उसे दूसरी जौब भी मिल गई और वो रवि को बिना कुछ बताए चली गई...कुछ महीने बाद शाम के समय अचानक दरवाजे की घंटी बजी अंशू ने दरवाजा खोला और"रवि अंकल कहता हुआ ,रवि से चिपक गया,रवि ने उसे गोद में उठाकर हवा में उछालते हुऐ पूछा"हैलो माई चैंप कैसा है तू"निशा ने कमरे में आकर देखा रवि और उसकी माँ दोनो आए हुए थे,निशा रवि से नजरे नहीं मिला पा रही थी,उसने नमस्ते आन्टी कहते हुए रवि की मम्मी के पैर छुए,तो उन्होने उसे गले से लगा लिया..उसने उन दोनो को बैठने को कहा और कई सारे प्रश्न आँखो में लिए रवि को देखा मानो पूछ रही हो "तुम यहाँ इस वक्त वो भी आन्टी के साथ कैसे?" रवि नें उसकी आँखो में देखते हुए कहना शुरू किया..."निशा जब तुम चली गई तो मुझे एहसास हुआ कि मैं तुम्हारे बिना तो रह सकता हूँ ,लेकिन अंशू के बिना नहीं,तुम दोनो मेरी लाइफ का हिस्सा बन गए हो,तो क्या तुम दोनो मुझसे शादी करोगे...मूझे पता है तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है,लेकिन मुझे तुम दोनो की बहुत जरूरत है"...कहते हुए उसने अपनी जेब से दो रिंग निकाली एक निशा के लिए और एक छोटी सी रिंग अंशू के लिए.....और घुटनो के बल उन दोनो के सामने बैठ गया...निशा की आँखो से आँसू रूकने का नाम ही नही ले रहे थे कभी राज की तस्वीर को देखती कभी अंशू को ..कभी रवि को...बहुत कुछ कहना चाह रही थी लेकिन शब्द जैसे गले में अटक गए थे...रवि की माँ ने निशा के सर पर हाँथ फेरते हुए कहा"बेटा मैं तेरा दर्द समझती हूँ,मैने भी रवि को अकेले ही पाला है,इसलिए अकेली औरत का दर्द मैं और पिता न होने का दर्द रवि खूब समझते हैं..रवि अंशू में खुद को देखता है,इसलिए वो उसे पिता का प्यार देना चाहता है,मना मत कर मेरी बच्ची"...निशा प्लीज मान जाओ क्या पूरी रात मुझे ऐसे घुटनों में बैठना होगा"..निशा रवि की हालत देखकर हँस पड़ी और उसके हाथ से अंगूठी ले ली,अंशू दौडकर रवि की गोद में चढ गया...रवि ने उससे पूछा "चैम्प मुझे पापा कहोगे"...हाँ कहते हुए अंशू रवि के गले लग गया और रवि ने वो छोटी अंगूठी उसकी नन्ही अंगुली में पहना दी।मनो वादा कर रहा हो कि अब कभी तुम्हें पिता की कमी महसूस नहीं होने दूंगा



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