अलग घर नहीं करना
अलग घर नहीं करना
अलग घर नहीं करना
हमारे एक परिचित थे, उनके लड़के की शादी हुई, बहू घर में आयी, काफ़ी कुछ सामान लेके आयी थी पर सास को सामान कम लगा। सास तो चुप बैठने वाली थी नहीं, वो कहने लगी ये सामान नहीं आया वो सामान नहीं आया।
बहू कुछ देर तक तो सुनती रही। सास कहे जा रही थीं कि बर्तन भी कम दिये, थाली परात नहीं आयी, लोटे गिलास भी कम दिये।
अब बहू चुप नहीं रह सकी। अच्छे घर की थी, पढ़ी लिखी थी। उसने सास से कहा-
“मुझे क्या अलग घर करना था जो अलग से बर्तन लेकर आती ? मुझे तो आपके साथ ही रहना है। अलग चूल्हा नहीं करना है”।
बहू का जवाब सुनकर सास की बोलती बंद हो गई। वह क्या कहती। उसे उम्मीद नहीं थी कि नई नवेली बहू ऐसा जवाब देगी।
उसके बाद से सास से कुछ कहते नहीं बना और वह चुप हो गई। बहू व्यवहारकुशल थी, उसने आते ही घर अच्छे से संभाल लिया और सास ससुर को भी प्रसन्न कर लिया।