बैरंग खत
बैरंग खत
आदरणीय पिता जी,
सादर प्रणाम !
आशा करती हूँ आप वहाँ कुशलता से होंगे ! शादी को तीन साल हो गए हैं, ये मेरा आपको पहला और शायद आख़िरी भी ! जब तक ये खत आपको मिलेगा तब तक मेरा दाना पानी इस दुनिया से उठ चुका होगा ! आज मैंने सोचा के चलो संसार छोड़ने से पहले एक बार अपने मन की बात अपने पिता से तो कह दूँ ! ये जो आप गर्दन तान कर चलते हैं, ये कहते हुए के आपने अपनी बेटी की शादी बहुत बड़े घर में कर दी ..माफ़ करना पिता जी आपने बड़े घर में नहीं कसाई महल में बेटी को भेज दिया, मैंने बहुत बार कहने की कोशिश की कि वहाँ मुझे जानवरों से भी बदतर रखा जाता है पर आप की दकियानूसी विचारधारा के औरत जिस में डोली में बैठ कर जाती है वहाँ से ही अर्थी में बीड़ा होती है, वैसे तो इन तीन सालों में कितनी बार घर आयी हूँ आप भी जानते हैं। माँ को शायद आँखों में मेरी पीड़ा नजर आ गयी थी पर आपके खौफ से वो लाचार थी....उनसे मुझे कोई शिकायत नहीं ! हाँ आपसे है, बेटियाँ ससुराल में ही अच्छी लगती है ...यही कहते थे ना आप ......पर वो ससुराल हो कसाई खाना ना हो, आप ने तो इन्हीं विचारों के चलते कभी यहाँ आने जहमत भी ना उठाई .......बस शादी करके जैसे अपना बोझ हल्का कर लिया....काश आपने बड़े घर की जगह एक अच्छा घर ढूढ़ा होता ! अंतिम समय में ईश्वर से यही प्रार्थना है अगले जन्म मुझे बेटी न बनाये ...अगर बनाये तो आप जैसी सोच वाले पिता के घर जन्म न दे !
अंतिम प्रणाम !
आपकी अभागिन बेटी
शगुन
बेटी के चौथे से लौटे थे, तभी पत्नी ने बताया के उनके नाम कोई बैरंग खत आया है ! और ये बैरंग खत रामसरन के चेहरे के सारे रंग उड़ा गया था ......हाँ उन्हें अपने हाथ लाल दिखाई दे रहे थे !