भयानक सपना
भयानक सपना
जम्मू-कश्मीर का साम्बा कैंट। जंगलों के बीच में सरकारी क्वाटर्स तीसरी मंजिल पर हमारा फ्लैट। दोपहर का वक्त, दोनों बच्चों को खाना खिला कर लेट गई थी। आंख लग गई और मदहोश सो गयी। दरवाजे सब बंद ही रखती थी क्योंकि जंगल में क्वाटर था सांप गोजर जंगली जानवर और आतंकवादियों का भी खतरा था इसलिए हमेशा दरवाजा और खिड़कियों को भी बंद रखने का आदेश था। कभी भी कहीं भी बम ब्लास्ट होना शुरू हो जाता था और धमाके से खिड़कियां दरवाज़ें बजने लगते थे पल पल दहशत में वक्त गुजर रहा था। जितने देर नींद आती थी बस उतना वक्त ही सुकून का बीतता था। सारा काम निपटा कर तसल्ली से सो रही थी। प्योली ढाई साल की और अंकेश डेढ़ साल का था। बच्चों के साथ मीठी नींद सो रही थी तभी सपना देखने लगी बहुत भयानक सपना ...... देखा राइफल से गोली चली ज़ोरदार आवाज हुई और कुमार ...... खूनम खून ..... नींद खुल गई कलेजा ज़ोर जोर से धड़कने लगा गला सुखने लगा हाथ पांव सुन्न से हो गये ...। बमुश्किल साहस जुटा कर बालकोनी में खड़ी होकर देखने लगी कोई नज़र आएं तो पूछूं। लगभग एक घंटे खड़ी रही तब जाकर एक सैनिक दिखाई दिए दूर थे मगर मैं ज़ोर जोर से चिल्लाने लगी वो ठहर गये और पूछा वहीं से क्या बात है ? मैंने पहचाना राजीव हैं। मैंने कहा "आॅफिस जा रहें हैं तो साहब को भेजिएगा प्लीज। " उन्होंने पूछा क्या हुआ ? बताइए मैं तो हूं मैंने कहा "नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ आप साहब के पास जल्दी जाइए और लेकर आईए। " राजीव चले गए मैं बालकोनी में ही खड़ी रही बच्चें सो रहें थे। अच्छा है थोड़ी देर और सोते रहें। कुछ देर बाद जिप्सी आकर रूकी। कुमार उतर कर सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर आएं मैंने दरवाजा खोला और उनका शर्ट खोलने लगी ... उन्होंने हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की ये क्या कर रही हो .... इशारे से दिखाया बच्चे उठ कर बैठें हुए थे। मैं लिपट कर बेतहाशा रोने लगी दिखाईये दिखाईये प्लीज़ दिखाईए कहां लगी है गोली ....? कुमार ने बिना कुछ बोले शर्ट खोल दिया और बोला तुमने सपना कब देखा ? मैंने कहा जब नींद खुली तब 1 बज कर 50 मिनट हो रहें थें तो उससे पांच दस मिनट पहले की बात होगी क्योंकि नींद खुलने के बाद सहज होने में थोड़ा वक्त लगा उसके बाद घड़ी देखी थी फिर साहस जुटा कर बाहर निकल कर देख रही थी कि कोई मिलें तो बोलूं। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बैठाया और बोला सचमुच गोली चली थी और राइफल से ही चली थी लेकिन मुझे नहीं। रामानंद को लगी है और वो अब नहीं रहा ...। मैंने सुना देखा कुमार बिल्कुल ठीक थे मगर तसल्ली नहीं हो रही थी। बच्चों को बोलने लगी देखो छूकर पापा ठीक हैं न ? तब तक दो-चार सैनिक भी आ गये। बताने लगे कि किस तरह पोस्ट पर पाकिस्तानी सैनिक गोली चलाई और रामानंद को लग गई, हमेशा बुलेटप्रूफ जैकेट पहने रहता था लेकिन तुरंत ही खोला था और फिर बाहर निकला की बस आकर सीधे लग गई ...।
थोड़ी देर की गहरी खामोशी के बाद मुझे पानी पिलाया थोड़ी देर बाद मैं सहज सामान्य हो पाई। गोली कुमार को नहीं लेकिन किसी को तो लगी ही थी। रामानंद किसी के बेटा , किसी के भाई , किसी के पति और किसी के पिता हैं। उनके परिवार वालों पर क्या बीतेगी ? आस पड़ोस में भी खाना नहीं बना। हम सभी के लिए मैस से खाना आया। मैं एकदम खामोश हो गई और दो दिनों तक वैसी ही रही। दिल बहुत घबराता रहा ख्याल आया कि कुमार से कहूं नौकरी छोड़ दें, रिटायरमेंट लें ले मगर इतना आसान नहीं था। इत्तेफाकन ज्योति पेंडसे का सहायक आया और बोला मेमसाब ने डिनर पर बुलाया है। उम्मीद की एक किरण जगमगाने लगी। कमांडिंग आफिसर की पत्नी ने घर पर बुलाया था तो आराम से उनसे बोलूंगी यही सोचकर बड़े उत्साह से तैयार हुई बच्चों को भी तैयार किया। नियत समय पर गाड़ी आकर खड़ी हुई। हम चारों लोग गये मैंने मिठाई और उनके सासूमां और ससुर जी के लिए उपहार भी लिया। खासतौर से उन लोगों ने मिलने की इच्छा जताई थी। 1994 में मिसेज पेंडसे प्रिंसिपल थी और मैं टीचर इस हैसियत से हमारी पहचान थी। मगर अचानक वो हमारे रेजिमेंट में कमांडिंग आफिसर बन कर आ गये और जब पता चला कि मैं भी साम्बा में आई हूं तो मिलने की इच्छा जताई। खूब मिलें हम लोग खाएं पिएं गपशप हुई। जाई और जैशील दो बच्चे थे उनके। सभी का नाम जे से ही था। साहब का नाम जयंत पेंडसे और मेमसाब का ज्योति पेंडसे। बड़ा ही खुशहाल परिवार था। मायके और ससुराल दोनों परिवारों के बीच बहुत स्नेहिल संबंध थे। मेरा सभी के साथ गहरा। संबंध बन गया था। मौका निकाल कर मैं मिसेज पेंडसे के साथ गार्डन में गयी और उनसे कहा कि "किसी भी तरह कुमार को रिटायरमेंट दिलवा दीजिए प्लीज़। " उन्होंने पूछा क्या हुआ क्या बात है ? जल्दी से असली बात बताओ ? मैंने सपने वाली बात बताई ....। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उन्होंने कहा "सरिता एक बात बताओ तुम्हें बुखार आया है क्या ? या फिर तुम वो सरिता नहीं रही जिसे मैं बरसों से जानती हूं ?" उनकी बात सुनकर मुझे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस होने लगी शायद मैंने कुछ गलत कहा है ...? उन्होंने कहा जब जयंत सोमालिया गये थे तब तुमने मुझे कितना समझाया था और संभाला था यकीन नहीं आ रहा है कि तुम वही सरिता हो ....? उन्होंने अपनी आंखें बड़ी करके जमा दी थी ... मैंने बात वापस लेने की कोशिश की। तभी उनकी सासू मां ने आवाज लगाई और फिर हम सभी ने गुलाबजामुन खाएं और फिर खुशी-खुशी निश्चिंत मन से वापस घर आई। मुझमें एक हिम्मत और साहस उत्पन्न हो गई थी। उसके बाद कितने हादसे होते रहें लेकिन मैं कमजोर नहीं पड़ी। मैं कोई मामूली औरत नहीं हूं एक सैनिक की पत्नी हूं और वह भी जांबाज वीर बहादुर सैनिक की पत्नी हूं। देश की रक्षा के लिए संकल्पित अपने पति को नहीं रोक सकती उनके कर्तव्य पालन में बाधक नहीं सहयोगी बनूंगी। उन्हें घर परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त करके देश की सेवा के लिए प्रफुल्लित मन से विदा करूंगी। अटूट विश्वास के साथ कि अपना कर्तव्य को अच्छी तरह पूरा करके लौट कर आएंगे और जरूर आएंगे। मेरी तपस्या व्यर्थ नहीं जाएगी। कुमार लौटकर आएंगे और सचमुच कुमार बहादुरी से सकुशल और एक विशिष्ट सम्मान से सम्मानित हो कर लौटें। भारत सरकार ने उन्हें ऑनरी दिया। दुश्मन देशों से जीत सिर्फ उनकी नहीं हुई थी मैं भी जीती थी एक युद्ध। बगैर उनके इतना बड़ा परिवार और तीनों बच्चों की परवरिश शिक्षा दीक्षा और सब सफल रहें। चारों तरफ से जीत हुई हमारी। बच्चे, परिवार मैं और कुमार सब सकुशल हैं खुशहाल हैं। ज्योति पेंडसे मेरी कलिग मेरी सहेली और हमारी रेजिमेंट के वाइफ आफ कमांडिंग आफिसर अगर उस वक्त मुझे नहीं समझाती तो यह सम्मान कहां मिलता मुझे ? समय से पहले जब सैनिक सेवा छोड़कर घर लौटता है तब उसे "कायर " या भगेडू समझा जाता है। सेना में शपथ लेने वाले सैनिक कायर और भगेडू हरगिज नहीं होते लेकिन जब उनकी अर्द्धांगिनी या उनके परिवार वाले उन्हें मजबूर करें तो वो सैनिक दूसरों की वजह से अपमानित जीवन बसर करने पर बाध्य हो जाता है। तहेदिल से ज्योति पेंडसे मैम का आभार प्रकट करती हूं। मुझे पता नहीं हैं अभी वो कहां है। 1993 से 1997 तक का साथ रहा हमारा संपर्क टूट गया। कभी कभी बहुत याद आती है उनकी।