डूंगरपुर के रहस्य -3

डूंगरपुर के रहस्य -3

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डूंगरपुर डूंगर पर बसा खूबसूरत शहर। समय के साथ अपने इतिहास से आगे आ पहुंचा था –डूंगरपुर।कभी राजा –महाराजा , रहस्यमयी दुनिया का गवाह आज इन सबसे कोसों दूर चला आया था , पर इतिहास को भी कोई मार पाया है क्या ? जो हो चुका ,उसे कौन बदल सकता है , अमूमन इतिहास वर्तमान को गढ़ता जरूर है पर वर्तमान में आकर दखलन्दाजी नहीं करता।पर डूंगरपुर के हिस्से में जो इतिहास आया उसको लिखने वाले थे माव जी।माव जी अद्भुत चमत्कारी व्यक्तित्व थे , भविष्य द्रष्टा थे , जो उनकी लेखनी से लिखा गया वो होनी बन जाना था और होनी को कोई टाल ही नहीं सकता ।

माव जी महाराज ने मावडी़ भाषा में एक ग्रन्थ की रचना की थी सदियों पहले – पर जो –जो उसमें लिखा पाया गया , हु –बु –हु वो सब घटा , उन्होंने अंग्रेजो के आने , जाने , बाजारवाद , घटिया राजनीती का जिक्र अपनी किताब में किया और जब हम उनकी किताब के बाद के इतिहास को देखते है तो पाते हैं कि किसी लेखक ने कहानी लिख दी हो और उसी के अनुसार सारा चलचित्र चला हो , पर माव जी ने कहानी सिर्फ 1999 तक की ही लिखी थी , आगे की कहानी क्यूँ नहीं लिखी इसका तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है क्यूंकि अब मावजी तो हैं नहीं सच्चाई बताने के लिए ।

माव जी की किताब को मुख्य शहर के बीच गेप सागर में अंग्रेजो के द्वारा फिकवा दिया गया था , और उनसे जुड़े सभी आश्रम व् प्रतीकों को भी , ये माव जी महाराज का शुभाशीष ही था डूंगरपुर पर की अंग्रेज यहाँ अपना राज नहीं कर पाए , एड़ी –चोटी का जोर लगाया पर हिला कुछ भी नहीं पाए। मावजी महाराज की किताब इतिहास के कई पन्ने खोलती है और महाराजा डूंगरवर्धन और उनके समकालीन डूंगरपुर की धरती पर होने वाली घटनाओं की कहानी कहती है ।

अब केवल महाराजा के महल के खंडर ही बचे हैं , गेप सागर से महल दिखाई देता है , पर अब वहां लोगो ने जाना छोड़ दिया है , आज जब डूंगरपुर में एक एन जी ओ ने अपना काम शुरू किया तो नई टीम को भेजा गया – पल्लव –टीम लीडर , रजनीश उसका साथी , प्रेमा और अभिनव।बाद में चन्द्रिका और सुमनलता ने भी टीम को ज्वाइन किया।ये लोग काम कम वेलापंती ज्यादा करते थे।रजनीश सबसे ज्यादा खुरापाती था और बस एक ही काम करता था –वेल्लापंती का आयोजन।इन सबका यहाँ आना माव जी किताब से जुड़ा रहस्यमयी सयोंग था ।

अपनी वेल्लापंती करते हुए ये टीम पहुँच जाती है पुराने महल की सैर में , महल पर पहुँच कर देखते हैं की ताला लगा हुआ है और जिसके पास चाबी है वो डूंगरपुर में है ही नहीं।पल्लव तो कहीं और घूमने चलने का प्रस्ताव रखता है , पर पल्लव की सुनता ही कौन है , प्रेमा और रजनीश सभी दिवार कूदकर चलने के लिए मना लेते हैं । चन्द्रिका और सुमनलता को पहले अन्दर कूदा दिया जाता है , जैसे ही चन्द्रिका और सुमनलता महल की दिवार के अन्दर पैर रखती है, एक सिरहन सी उनके शरीर में दौड़ती है ,चन्द्रिका आगे – आगे , सुमनलता उसके पीछे –पीछे।बाकी लोग आवाज लगाते रह जाते हैं –वो किसी की नहीं सुनतीं।खंडर के रास्ते उन्हें सब सही से खबर थे और वो एक टूटे कक्ष में जाकर बैठ जाती हैं , कुछ महसूस करने की कोशिश करती है , चन्द्रिका को अजीब सा लगाव लगता है कमरे से , सुमनलता भी जमीन पर हाथ घुमाते हुए कुछ टटोलने लगती है।रजनीश ,पल्लव व् प्रेमा भी महल के अन्दर कूद चुके थे अन्दर जाते ही रजनीश तो मानो खुद को ही महाराज समझने लगता है और पल्लव व् प्रेमा उसके सेनापति और सलाहकार ,चल पड़ती है राजा जी कि सवारी , दूर दिवार पर बैठकर अभिनव उनकी इस बकलोली के मजे लेता है और अपने बैग में से एक किताब निकालकर पढ़ने लगता है –डूंगरपुर का इतिहास (माव जी के किताब पर आधारित) ।

रजनीश को डूंगरपुर की सीमाओं व् प्रजा की चिंता होती है , वो शहर की समस्याओं पर विमर्श करते हैं , पल्लव हर समस्या का समाधान सुझाता है तथा प्रेमा को कार्य योजना सौपता है की –जल्दी ही अकाल पड़ने वाला है इसलिए बांसवाडा झील से डूंगरपुर के तालाबों को जोड़ना होगा नहीं तो जनता को भयंकर कष्ट उठाने पड़ सकते हैं ,उदयपुर की तरफ से शैतान प्रताप भी डूंगरपुर की तरफ बढ़ने लगा है , वो राजकुमारी चन्द्रिका को उठा ले जाना चाहता है , प्रेमा को राजकुमारी चन्द्रिका की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाती है , राजकुमारी चन्द्रिका रजनीश महाराज की मंगेतर हैं जो विवाह से पूर्व राज्य भ्रमण के लिए आई है , सुमनलता प्रताप की रखेल है जिसे डूंगरपुर चाद्रिका को हरण करने की साजिश के तहत भेजा गया है ।

सुमनलता ,चन्द्रिका को खुद को रजनीश की प्रेयसी बताती है और कहती है की रजनीश तुम्हे चाहते हैं जब उसे ये पता चला तो उसने रजनीश को ये नहीं बताया , रजनीश उसे नीलकंठ के मंदिर से उठाकर लाये थे जहाँ चन्द्रिका मुर्छित पड़ी हुई थी , रजनीश को लगा की किसी जानवर के हमले की वजह से सुमनलता की ये हालत हुई है और वो नहीं याद कर पा रही है की वो कहाँ से आई है ।

सुमनलता कई कोशिशें करती है ,चन्द्रिका को महल से दूर ले जाने के बहाने बनाती है ,जहाँ पहले ही प्रताप के सैनिक होते हैं पर प्रेमा की तलवार के सामने कोई नहीं टिकता , चन्द्रिका को प्रेमा का शौर्य भाने लगता है , चन्द्रिका उलझन में रहती है की जल्दी उसका विवाह रजनीश के साथ हो जायेगा पर उसे तो प्रेमा पसंद आने लगा है , इधर सुमनलता रजनीश के करीब आने लगती है और रजनीश के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ने लगती है।रजनीश को जब भी किसी के साथ की जरूरत होती तो वहां सुमनलता ही पहुँचती , चन्द्रिका प्रेमा को रिझाने के भरपूर कोशिश करती पर लोहे के दिलवाले प्रेमा को ललचाती पर प्रेमा अपनी सीमाओं से आगे नहीं बढ़ता।

प्रताप अब चन्द्रिका को पाने के लिए उतावला हो उठता है और अपने खास सैनिक दस्ते को डूंगरपुर में उत्पात मचाने को भेजता है , दूसरी ओर से खुद डूंगरपुर पर चढा़ई कर देता है। प्रेमा सैनिकों से निपटने के लिए खास मिशन पर निकलता है और पाता है कि चन्द्रिका भी उसका साथ देने आई है.

चन्द्रिका मौका पाकर प्रेमा को ही मार देती है , क्यूंकि सुमनलता उसे समझा चुकी होती है कि प्रेमा प्रताप से मिला हुआ है और रजनीश को ही मारने वाला है , उसे याद दिलाती है की कैसे हर बार जब ही महाराज पर हमला होता है तो प्रेमा से ( (सुमनलता ) खुद उसने ही बचाया होता है , और कैसे हमेशा प्रेमा उससे बैर खाए रहता है क्यूंकि मैं प्रेमा की हर साजिश को नाकाम करती रही हूँ. चन्द्रिका प्रेमा को चाहती थी पर राष्ट्र प्रेम के आगे वो अपने प्रेम की क़ुरबानी दे देती है और उसकी ये प्रेम भावना प्रेमा को उस पर संदेह ही नहीं होने देती और इस तरह डूंगरपुर का शूरवीर प्यार के धोखे का शिकार हो जाता है।

इधर रजनीश बहादुरी से लड़ता है , रजनीश को प्रताप के सैनिक पकड़ लेते हैं और चन्द्रिका को ढूँढने लगते हैं।चन्द्रिका सैनिकों से लड़ते हुए रात्रि में उदयपुर की सीमाओं पर एक पुराने महल में शरण लेती है और छुपकर देखती है कि यहाँ तो प्रताप और सुमनलता रंगरलिया बना रहें हैं , चन्द्रिका को अपने किये पर पछतावा होता है और वो अपने आवेश को काबू में नहीं रख पाती , प्रताप को मारने दौड़ पड़ती है , प्रताप तो बच जाता है पर सुमनलता मारी जाती है , चन्द्रिका को बंदी बना लिया जाता है ।

प्रताप चन्द्रिका के सामने प्रस्ताव रखता है कि यदि वो उसके प्रेम को स्वीकार कर लेती है और उसके लिए सज- संवर कर आती है तो ये रजनीश की साँसों की कीमत हो सकती है।चन्द्रिका लाचार होती है , अपने अतंर्द्वंद से जूझती है , उसे कुछ समझ नहीं आता की वो क्या करे , वो जिन्दा लाश बनकर प्रताप के कक्ष में पहुँच जाती है। जब प्रताप उसको चुम्बन करता है तो प्रताप के साँसों की अजीब सी आवाज आती है , चंद्रिका को झकझोर देती है. चन्द्रिका अपनी बंद आँखे खोलती है और उसके मुहं से निकलता है –पल्लव , प्रताप इसे अनसुना कर देता है और बहसी दरिन्दे की तरह जहाँ – तहां चूमता रहता है , और उसकी साँसों की आवाज और तेज हो जाती है , अब चन्द्रिका को यकीन हो जाता है कि ये पल्लव है , उसकी आँखों के सामने वो द्रश्य घूमने लगता है जब वो पल्लव उनके राज्य में आये थे और उनके पिता की दुर्घटना से जान बचायी थी। राजकुमार के प्रणय निवेदन तब चन्द्रिका ना हाँ कर पायी थी और ना ही हाँ , पर पल्लव ने ख़ामोशी की परवाह ही नहीं की और मासूम सी कली चन्द्रिका को निचोड़ कर रख दिया।चन्द्रिका पल्लव के बाहुबल के आगे निढाल हो गई और खुद को उसके सामने समर्पित कर दिया , पर पल्लव की साँसे प्रणय के वक्त अजीब आवाज करती थीं और ये आवाज यदा –कदा चन्द्रिका का पीछा करती रहीं थीं , चन्द्रिका को ये नहीं मालूम हुआ की इस दरिन्दे को प्यार करे या इससे नफरत ,और सुबह पल्लव बिना चन्द्रिका से मिले चला जाता है ,अब चन्द्रिका को यकीन हो गया कि ये प्रेम की मिलाप ना होकर वासना की भूख थी , समय के साथ चन्द्रिका इस हादसे से उबरी गई , पर आज जब पल्लव की साँसे उसके बदन पर पड़ी तो वही आवाजें , वो खुद को रोक नहीं पाई और पूरी ताकत लगाकर उसे धकेलते हुए बोली –"पल्लव ,तुम पल्लव हो ,तुम पल्लव हो ।"

प्रताप खुद को सँभालते हुए बोला –" हाँ, मैं पल्लव हूँ , प्रताप का मुखौटा तो मैंने रजनीश ,प्रेमा के लिए ओढ़ रखा था , मुझे किसी से प्यार नहीं ,सिवाय डूंगरपुर के , इसके सिंहासन से ।

रजनीश के रहते ये संभव नहीं था ,और उसके पालतू प्रेमा के रहते भी , इसलिए मैंने खेला ये षड्यंत्र , पल्लव का षड्यंत्र , प्रेमा भी इसकी भेटं चढ़ गया , सुमनलता भी ,वो मेरी ही दासी थी , मैं जो चाहता हूँ ,हासिल करना जानता हूँ , उदयपुर के राजा प्रताप को डूंगरपुर से कोई लेना देना है ही नहीं , ये मैं ही था ,जो उदयपुर का भय दिखाता रहा , खुद ही डूंगरपुर की जनता पर हमले करवाए , बहुत खून चढ़ाया है मैंने , इस सिह्नाहासन पर , इसे तो मेरा होना ही था , उदयपुर की विशालता का सिर्फ लाभ लिया है मैंने –इस डूंगरपुर को पाने के लिए और साथ में कुछ अलग उपहार डूंगरपुर ने मुझको दे दिये हैं ,इधर आओ चन्द्रिका" , वो वहसी की तरह चन्द्रिका पर टूट पड़ता है ।

इससे आगे अभिनव कुछ नहीं पाता ,कुछ फाटे पन्ने सिर्फ , पर अब अभिनव को ये किताब पूरी पढ़नी थी ,वो सबको आवाज लगाता है – रजनीश , सुमनलता , पल्लव , प्रेमा ।कोई जबाब ना आने पर वो महल के अंदर दौड़ता है पर एक सीमा से आगे नहीं बढ़ पाता है , जब वो अपना सब कुछ करके देख लेता है ,गिरकर बेहोश हो जाता है , जब उसे होश आता है तो उसे माव जी महाराज की किताब का ख्याल आता है जिसे गेप सागर में फेंक दिया गया था , वो गेप सागर की तरफ दौड़ता है , फ़ोन से स्विमिंग सूट का इंतजाम करता है , और गेप सागर की गहराईयों में गोते लगाने लगता है , जब उसे कुछ नहीं मिलता तो आखिरी पन्नो पर ( डूंगरपुर के इतिहास ) छपे चित्र उसकी आँखों के सामने आते हैं , उन्ही चित्रों का पीछा करते हुए वो उस किताब तक पहुंचता है , और जल्दी से उसके पन्ने पलटता है ,सारे पन्ने कोरे पाता है , आखिर के कुछ पन्ने पर उसे कुछ लिखा मिलता है जो होता तो मावडी भाषा में है पर जैसे कोई चाह रहा हो कि अभिनव इसे पढ़े ,वो उसके सामने उसकी भाषा में हो जाते हैं। अभिनव को पता चलता है की ये पल्लव का मायाजाल है , उस रात चन्द्रिका जब बेबस हो चुकी होती है और उसकी हवस का शिकार , पल्लव चन्द्रिका को मारने वाला ही होता है ,की रजनीश वहां पहुँच जाता है , रजनीश और पल्लव की भयंकर लड़ाई होती है। चन्द्रिका महल से कूदकर अपनी जान दे देती है , रजनीश पहले से ही कई दिनों से भूखा –प्यासा होता है जो पल्लव के अत्याचार सह –सह कर बस साँसे ही चल रही थी उसकी। पल्लव के सामने एक तिनके सा रहता है , पल्लव उसे जब चाहे उठाता है ,जिधर चाहे फेंकता है , पल्लव के कानो में जैसे ही चन्द्रिका की चीख आती है वो रजनीश को तलवार की नोक पर टांग कर चन्द्रिका की ओर दौड़ता है।चन्द्रिका की चीख रजनीश को अपनी आख़िरी कोशिश करने को उकसाती है।और रजनीश खड़ा होता है , अपनी तलवार निकालता है ,और पल्लव पर वार करता है ,उसकी कमर में कई बार वार करता है , पल्लव भी उसी खिड़की से जिससे चन्द्रिका ने कूदकर अपनी जां दी थी ,रजनीश को लेकर गिर जाता है। तीन लाशें वहाँ ठहर जाती हैं ,उनकी रूह बैचन हो जाती हैं , अचानक से हवाएं तेज हो उठती हैं , आकाश में बिजली कोंधे मारने लगती है , एक जंग शुरू होती है रूहों की जंग , प्रेमा की रूह , पल्लव की रूह , रजनीश की रूह , चन्द्रिका की रूह , सुमनलता की रूह।वो महल इस जंग से तभी पार पायेगा जब गेप सागर के जल में माव जी महाराज की समाधी की राख इस पर छिड़की जायगी। अभिनव तेजी से मावजी महाराज की समाधी की और दौड़ता है ,उनकी राख अपने माथे पर लगाता है ,उसे गेप सागर के पानी में मिलाता है और महल की ओर बढ़ता है , अभिनव सारा राख़ वाला पानी महल पर छिड़कने लगता है।अभिनव एक झटके के साथ महल के बाहर गिर पड़ता है , माव जी महाराज की समाधी की राख उसके माथे पर थी जो उसकी जान बचा लेती है, अभिनव महल के बाहर बेहोश पड़ा रहता है। पल्लव ,रजनीश ,चन्द्रिका और सुमनलता महल से बाहर निकलते हैं और अभिनव को उठाते हैं , अभिनव उनको मावजी महाराज की किताब के बारे में बताता है –सारा किस्सा एक साँस में सुनाता है ,सब किताब को खोल के देखते हैं। पल्लव व् रजनीश अभिनव के कनपटी पर लगाते हैं और दिखाते हैं की इस किताब के सारे पन्ने कोरे हैं , और अभिनव को अपनी कहानी से बाहर वास्तविक दुनिया में लाने के लिए उसे उठा कर झुलाते हैं और जमीन पर पटक देते हैं।अभिनव सिर्फ यही कहता है कहानीकार मैं नहीं ,माव जी महाराज हैं, हो वही रहा है जो वो लिख रहे हैं।अभी हमारे यहाँ से चलने के लिए लिखा है – सब एक साथ बोलते हुए चल पड़ते हैं। 


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