देवी सीता जी और उनका मातृत्व
देवी सीता जी और उनका मातृत्व
सीता जी, जो हिन्दू महाकाव्य रामायण की प्रमुख पात्र हैं, अपने मातृत्व के लिए भी अत्यंत विख्यात हैं।
उनके मातृत्व का वर्णन कई प्रमुख घटनाओं और गुणों के माध्यम से किया जाता है। सीता जी का मातृत्व
1. लव-कुश का जन्म:
वनवास के दौरान, जब सीता जी को अयोध्या से निष्कासित किया गया था, उन्होंने ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय लिया। यहीं पर उन्होंने लव और कुश नामक दो जुड़वा पुत्रों को जन्म दिया। यह घटना रामायण के उत्तरकाण्ड में वर्णित है।
2. पालन-पोषण:
सीता जी ने अपने पुत्रों को अत्यंत स्नेह और ममता के साथ पाला। उन्होंने उन्हें न केवल शिक्षा दी, बल्कि उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों से भी परिचित कराया। ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में उन्होंने अपने पुत्रों को युद्ध कला और वेदों की शिक्षा भी दिलाई।
3. संघर्ष और ममता:
जब लव और कुश ने अपने पिता श्रीराम को चुनौती दी, सीता जी का मातृत्व उनके व्यवहार में स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने अपने पुत्रों के साहस और धर्मनिष्ठा को प्रोत्साहित किया, साथ ही अपने पति के प्रति उनका सम्मान बनाए रखा।
4. त्याग और धैर्य:
सीता जी का जीवन त्याग और धैर्य का प्रतीक है। उन्होंने अपने पुत्रों को अपने जीवन के संघर्षों और कष्टों के बारे में कभी शिकायत नहीं की, बल्कि उन्हें जीवन के कठिनाइयों का सामना करने का साहस दिया।
5. आखिरी बलिदान:
अंततः, जब श्रीराम ने सीता जी से पुनः अयोध्या लौटने का आग्रह किया, तो उन्होंने धरती माता से प्रार्थना की और धरती में समा गईं। इस घटना में सीता जी ने यह सिद्ध किया कि उनकी अस्मिता और स्वाभिमान किसी भी परिस्थिति में अडिग था।
सीता जी का मातृत्व केवल लव और कुश की मां के रूप में ही नहीं, बल्कि एक आदर्श नारी के रूप में भी विख्यात है जिन्होंने अपने कर्तव्यों और मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने बच्चों को संस्कारवान और धर्मनिष्ठ बनाया। उनका चरित्र मातृत्व के आदर्श उदाहरण के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा।
मेरा ऐसी महान विभूति को शत-शत नमन है देवी सीता जी के चरणों में सादर वंदन
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