Sangeeta Aggarwal

Others

4.2  

Sangeeta Aggarwal

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हम औरतें भी ना !!

हम औरतें भी ना !!

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" सुजाता मेरा पर्स टाई कहाँ है ?" 

" मम्मा मेरी इंग्लिश की किताब कहाँ है ?" 

"मम्मा मेरी चोटी कब बनाओगे ?" 

" बहु मेरी चाय कब मिलेगी ?" 

" सुजाता बहु अभी तक मंदिर साफ नही हुआ ?" 


मेरी कहानी की नायिका के घर मे सुबह ऐसे ही सवालों के साथ होती है । सिर्फ सुजाता ही क्यो हममे से कितनी औरतों की सुबह ऐसे ही होती होगी। सवाल अनेक, सवाल करने वाले अनेक पर जवाब् बस एक ..।


ज्यादातर औरतों की तरह सुजाता भी लट्टू सी घूमती सबके काम करती रहती " लीजिये आपका पर्स और टाई, रोहान तुम्हारी किताब ये रही लाओ राशि चोटी बनाऊं, पापा जी चाय, मम्मीजी बस अभी करती हूँ मंदिर साफ !


" सुजाता तुम ना हो तो मेरा क्या हो !" पति सुनील अक्सर प्यार भरी नज़रो से देखते हुए बोलते !


" मम्मा यू आर अ बेस्ट मदर !" बच्चे अक्सर सुजाता के गले लग कर कहते।


" बहु तुम चाय ना दो तो मेरी तो सुबह ना हो !" ससुर सुजाता के सिर पर हाथ फेर आशीर्वाद देते हुए कहते।


" सुजाता बेटा तुमने इस घर को मुझसे बेहतर संभाला हुआ है !" सास कहाँ पीछे रहती।


बस हर नारी की तरह सुजाता भी सब थकान भूल दुगने जोश से काम में जुट जाती। सच हम औरतें कितनी जल्दी खुश हो जाती है पर क्या संतुष्ट हो पाती है अपने जीवन से ?...अक्सर सुजाता को ये सवाल परेशान करता !


" हां मैं संतुष्ट हूँ प्यार करने वाला पति है, प्यारे बच्चे है, माता पिता जैसे सास ससुर है क्या कमी है मुझे !" अपने सवाल का जवाब भी अकसर वो खुद ही देती।


" पर इन सब में मैं कहाँ ....एक पत्नी, माँ, बहु हूँ मैं पर इनमें सुजाता कहाँ है ...इन सब रिश्तों के बीच सुजाता तो खो गई है ना!" काम करते करते अक्सर रिश्तों के बीच अपनी पहचान ढूंढती पर नहीं मिलती।


" अरे ये सब रिश्ते मेरे ही तो है मेरी पहचान यही रिश्ते तो है !" वो खुद को बहलाने का प्रयास करती।


" ये रिश्ते तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा है पर तुम तुम हो तुम्हें क्या पसंद, तुम्हें क्या नहीं पसंद ये सब कहाँ आता इनमें सब तो दूसरों की पसंद का करती हो तुम!" फिर से सुजाता अन्य रिश्तों पर हावी होने लगती और सुजाता सिर को झटक काम में लग जाती।


" मम्मा आपको क्या पसंद है ?" बेटी के बालो में तेल लगाती सुजाता से बेटी ने प्रश्न किया


" मुझे वही पसंद है जो तुम सबको पसंद है !" वो मुस्कुरा कर बोली


" ये क्या बात हुई मम्मा सबकी अपनी पसंद होती है आप को भी कुछ तो पसंद होगा ?" बेटी बोली।


" बेटा एक औरत, एक माँ, एक पत्नी, एक बहु की क्या पसंद । वो तो सब घर वालों की पसंद को अपना लेती है।" वो हंस कर बोली।


" मतलब मुझे भी बड़े होकर अपनी पसंद को मारना पड़ेगा ...फिर तो मुझे बड़ा नहीं होना मम्मा !" बेटी ये सुन मायूस हो बोली।


एक झटका सा लगा सुजाता को ...क्या सिखा रही हूँ मैं बेटी को नहीं नहीं मैं उसे ये सीख नहीं दूंगी ।


" बेटा मुझे पहाड़ी इलाकों में घूमना बहुत पसंद है ...पर तेरे पापा को नहीं पसंद तो कभी जा ही नहीं पाई मैं । अब मन करता है एक मौका मिले तो अकेले निकल पडूं उन पहाड़ों पर और खूब मस्ती करूँ !" सुजाता हंस कर बोली।


" अकेले क्यों मम्मा सबके साथ क्यों नहीं ?" बेटी आँखें मटका कर बोली।


" बेटा अपनी गृहस्थी को इतने साल देने के बाद हर औरत की चाह होती है वो कुछ दिन अपने लिए, अपने साथ जीये ...सबसे दूर अकेले ...जिससे कुछ यादें अपने साथ जुटा सके और फिर दुगने जोश के साथ अपने परिवार में आ सब रिश्ते जी सके पर ऐसा संभव कहा होता है ।" सुजाता कही खोते हुए बोली ।


" क्यो नही हो सकता संभव तुमने इतने साल हम सबको दिये हम क्या कुछ दिन तुम्हें नहीं दे सकते ...बोलो कहाँ जाना है मैं टिकट करवा देता हूँ !" सुजाता को पता ही नहीं चला कब उसका पति रमेश पास आ उनकी बाते सुन रहा था!


" अरे नहीं नहीं हम तो बस ऐसे ही बाते कर रहे थे आप बैठिये मैं चाय बना कर लाती हूँ !" सुजाता उठते हुए बोली पर रमेश ने देखा उसने अपने आँखों के कोरों को हाथ से पोंछा है।


सच सब कुछ होते हुए भी मन के एक कोने में कुछ अतृप्तता बाकी होती है जो कभी कभी आँख गीली कर ही देती है।


एक दिन अचानक सुजाता के मोबाइल पर रमेश का व्हाट्सप्प मैसेज़ आया।


" ये तो कभी मेसेज करते नहीं फिर आज क्या है ?" सुजाता ने मैसेज़ खोला तो हैरान रह गई।


" कैसा लगा सरप्राइज !" तभी रमेश का फोन आया और उसने कहा।


" पर ये सब क्यों, कैसे मेरा मतलब है मैं अकेले कैसे ...और घर, बच्चे, माँ पापा और आप ?" सुजाता लड़खड़ाती आवाज़ मे बोली।


" सब हो जायेगा तुम बस तैयारी करो बाकी बाते आकर करता हूँ !" ये बोल रमेश ने फोन रख दिया।


"चलो बहु तुम्हारी पैकिंग करवा देती हूँ!" तभी वहाँ सासु मां आकर बोली।


" पर मांजी आपको कैसे पता ...और मैं कैसे जा सकती ऐसे!" सुजाता अभी भी सरप्राइज्ड थी।


" अरे अभी इतनी बुड्ढी नहीं हुई कि चार दिन को घर ना संभाल सकूं वो तो तूने आदत खराब कर दी हमारे सब काम करके ...चल अब ज्यादा मत सोच !" सासु मां बोली और उसका हाथ पकड़ कर कमरे में ले गई।


" मम्मा आप वहाँ बहुत सारी पिक्स क्लिक करके लाना और यहाँ कि फ़िक्र मत करना दादी के साथ मैं हूँ ना सबका ध्यान रखने को !" रिया माँ से बोली


"बहुत बड़ी हो गई मेरी लाडो !" सुजाता उसे प्यार करते हुए बोली।


" हां तो आपकी बेटी हूँ ना पर मैं आपकी तरह अपनी ख्वाहिश पूरी करने में इतने साल नहीं लगाऊंगी जब मन होगा खुद के लिए जियूँगी !" रिया बोली तो सुजाता मुस्कुरा दी।


" लो सुजाता ये कुछ ड्रेसेस लाया हूँ तुम्हारे लिए और हां उंटी जा मुझे भूल मत जाना !" रात को रमेश अकेले मे उससे बोला।


"आप भी ना ...लेकिन आपने टिकेट क्यो करवाया !" सुजाता बोली।


 " क्योंकि तुम्हारा जन्मदिन है चार दिन बाद और तुम्हे तुम्हारे साथ जी लेने देने से बड़ा गिफ्ट मुझे समझ नहीं आया तुम्हारे लिए अब ये सब बाते बंद और उंटी के सपने देखो ...जा सुजाता जी ले अपनी जिंदगी !" रमेश उसे छेड़ते हुए बोला तो सुजाता शर्मा गई।


सुजाता कहने को तो अपना सपना पूरा करने उंटी निकल गई पर वहाँ पहुँच कर वो कौन सा खुद के लिए खुद के साथ जी पाई वहाँ भी उसे फ़िक्र रहती थी पापा की दवाई, बच्चों के स्कूल, रमेश के ऑफिस और मम्मीजी पर जो काम की जिम्मेदारी आई उसकी । इसलिए दिन में कई फोन कर देती थी वो घर पर ।


सच हम औरतें भी ना अपनी गृहस्थी के दायरे से निकल ही नहीं पाती।


दोस्तों क्या आप भी सुजाता जैसी है जिनके सपने ख्वाहिशें तो है पर जब वो पूरा होते तब भी उन्हें घर गृहस्थी की फ़िक्र ही रहती है । अपने लिए अपने साथ जीना तो चाहती है पर जी नहीं पाती है। अगर आप खुद को सुजाता से जुड़ा महसूस करती है तो मुझे बताइयेगा जरूर!!



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