हमारी यात्रा के हादसे-३

हमारी यात्रा के हादसे-३

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१० नवम्बर को हम काली माँ के दर्शन को जा रहे थे।एक मित्र का फोन आया। मैंने उन्हें अपने कोलकाता प्रवास की जानकारी दी।उन्होंने कहा कि एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर रजरहाट में उनके लड़को ने फ्लैट लिया है।उनकी पत्नी भी वहीं है।उनका आग्रह था कि हम जरुर उनके घर जायें।१२ को उन्होंने फिर फोन किया।उनके आग्रह को मैं ठुकरा नहीं पाया और रजरहाट के लिए निकल पड़ा।धनञ्जय की पत्नी और उनकी बहन दोनो नीचे हमें छोड़ने आयीं।भरे मन से हम विदा हुए।मुख्य सड़क पर जैन धर्म के लोगों का विशाल जुलूस निकला था।सारे रास्ते बन्द थे।बहुत पैदल चलने के बाद जिस टैक्सी वाले ने हमें बैठाया,उसने गन्तव्य से पहले ही उतार दिया।मुझे अपने परमात्मा की याद आयी।सामने मोटरसाईकिल मरम्मत की दुकान थी।उसमें से एक लड़का बाहर निकला और मेरी मदद को तत्पर हुआ।उसने किसी कार वाले को फोन किया जिसने हमें हमारे गन्तव्य तक पहुँचा दिया।मित्र की पत्नी सिद्धा-हैप्पी विला के अपने फ्लैट से नीचे हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं।ईश्वर ने फिर हमारी मदद की।उसने दिखा दिया कि वह हमेशा हमारे साथ है।


हमने भोजन किया।लम्बे अंतराल के बाद मिलने से बहुत अच्छा लगा।हमने बहुत सी बातें की।उनके लड़के की आध्यात्मिक रुचि देखकर मन खुश हुआ।


हमें पुनः एयरपोर्ट जाना था।रात आठ बजकर चालिस मिनट पर फ्लाईट थी।दोनो माँ -बेटा हमें नीचे छोड़ने आये।जल्दी ही टैक्सी मिल गयी।समय से हम पहुँच गये।मौसम में गर्मी थी और मन में किंचित शंका भी।मैंने परमात्मा को याद किया कि अब कोई असुविधा ना हो।कोई समस्या तो नहीं हुई परन्तु पेट में कुछ गड़बड़ जैसा लगने लगा।मेरी पाचन-शक्ति शुरु से कमजोर रही है।अन्ततः हम सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट उतरे।यह दुनिया के कुछ गिने-चुने एयरपोर्ट में से एक है-विशाल,भव्य और तमाम सुविधाओं से लैस।सहयात्रियों का अनुसरण करते हुए हम जाँच-स्थल तक आये।एक फार्म भरना था।मैंने भरना शुरु ही किया कि कोई कर्मचारी सहायता के लिए आ खड़ा हुआ।उसने फार्म भर दिया।मेरी जाँच हो गयी तो आगे जाकर मैं रुक गया ताकि पत्नी भी आ जाये।शायद उस अधिकारी को मेरा रुकना नागवार लगा,उसने तल्खी के साथ मुझे आगे और पत्नी को दूसरी ओर जाने को कहा।किसी बड़े से कमरे से होते हुए वह मेरी तरफ आयी।थोड़ा मैं असहज सा हुआ।हम पुनः उधर गये जहाँ हमारा बैग मिलने वाला था।सिंगापुर के समय के अनुसार फ्लाईट को रात के तीन बजकर बीस मिनट पर पहुँचनी थी।हम ठीक समय से ही पहुँचे थे।बैग लेने तक की सारी प्रक्रिया में जो समय लगा हो,बाहर देखा तो शीशे के घेरे के पार मुकेश बाबू दिखाई दिये।मन खुश हो उठा।उन्होंने कार बुक की और हम भोर में उनके निवास पर आ गये।उन्होंने पूरी रात एयरपोर्ट पर लगभग जागते हुए बितायी थी।


अपने प्रवास में हमने खूब भ्रमण किया और सभी दर्शनीय स्थलों को देखा।अनेक मन्दिरों का दर्शन किया।घर से थोड़ी दूरी पर दो बौध मन्दिर हैं जहाँ शाम में घूमते हुए हम प्रायः चले जाते थे।लिटिल इण्डिया स्थित "नारायण मन्दिर" में बहुत भीड़ थी। बहुत भव्य स्वरुप था सभी देवी-देवताओ का।किसी ने मुझसे कहा कि उपर चले जाईये और प्रसाद पा लीजिये।हम वहीं का प्रसाद लेकर चले आये,उपर नहीं गये।परमात्मा के इस अतिरिक्त स्नेह को समझते देर नहीं लगी।


अक्सर हम शाम में पैदल घूमने निकल जाते थे और लगभग एक घण्टे में लौट आते थे।किसी शाम हम दूसरे रास्ते से निकले और घूमते हुए जिधर से लौटने की सोच रहे थे,उससे बहुत दूर निकल गये।स्थिति का आभास हुआ तो मैंने किसी से पूछना चाहा।उसने अपने तरीके से बताया जो मेरी समझ में नहीं आया।मैंने सोचा कि पुनः उसी तरह वापस जायेंगे जैसे आये थे।श्रीमती जी बहुत थक चुकी थीं।थकान की हल्की अनुभूति मुझे भी हो रही थी परन्तु जाना तो था ही।संयोग से उस समय मेरे पास ना तो सिंगापुर का डालर था और ना ही वह कार्ड जिससे हम बस-ट्रेन का किराया दिया करते थे।शाम में कपड़ा बदलते समय सब मेरे दूसरे शर्ट में रह गया था।पैदल घुमने या पार्क में जाते समय वैसे भी उसकी कोई जरुरत नहीं पड़ती थी।हम जिधर निकल गये थे उधर पैदल चलने वाले दिख नहीं रहे थे।

अचानक पीछे से एक लड़का आया और मुझे ऐसे देखा मानो कुछ पूछना चाह रहा हो।मैंने उससे "चुआ चू कांग" का मार्ग पूछा।उसने थोड़ा विचित्र भाव से देखा मानो मैंने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो।

"बहुत दूर है",उसने अंग्रेजी में कहा।

मैंने पूछा,"किधर से जाना होगा?"

"नहीं,आप नहीं जा सकते।आंटी थकी हैं।आप भी थके हो।मेरे साथ आईये।मैं भी "चुआ चू कांग-एम आर टी" तक जाऊँगा।"उसने सब कुछ अग्रेजी भाषा में कहा।

मैंने फिर से रास्ता बताने को कहा।वह हालात की गम्भीरता समझते हुए हमें छोड़ने को तैयार ही नहीं था,बोला,"नहीं अंकल,आप मेरे साथ चलिये।"उसकी आवाज में चिन्ता के भाव थे मानो हम कहीं खो जाने वाले हैं।उसने कहा,"आप मेरे साथ चलिये।आप लोगो को इसतरह जाने नहीं दूँगा।


मैने कहा कि मेरे पास अभी बस का भाड़ा देने वाला कार्ड नही है और ना ही सिगापुर का डालर।दोनो घर में है।वह मुस्कराया और बोला,"मैं दूँगा आप दोनो का भाड़ा।"


मैं भावुक हो उठा।उसकी चिन्ता और भावनाओं को समझते देर नहीं लगी। लगा,परमात्मा ने ही इसे भेजा है।भला किसी अन्य देश में कोई इतनी चिन्ता करता है?बस आयी और हम सवार हुए।उसने सिंगापुर के तीन डालर का भुगतान किया और मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गया।मेरे लाख प्रयास के बावजूद उसने अपना कोई खाता नम्बर नहीं दिया और ना ही इस पैसे को लेना स्वीकार किया।उसने बताया कि वह बंगलादेश का रहने वाला है।यहाँ यूनिवर्सिटी में है।उसके दो भाई और साथ रहते हैं।


मैंने पूछा,"किस बात ने प्रेरित किया कि आपने इस तरह सेवा और मदद की?"

उसने कहा," मेरे माँ-पिता भी आप ही की उम्र के हैं।उन्होंने सिखाया है कि यदि कहीं कोई असुविधा में मिले तो उनकी सहायता करो।मैं आप दोनो को वहाँ छोड़ नहीं सकता था।"

उसकी हँसी में विचित्र मधुरता थी।साफ दिख रहा था कि उस लड़के के रुप में मेरा परमात्मा ही आ खड़ा हुआ है।


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