हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

इंतकाल - 2

इंतकाल - 2

14 mins
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शिवचरण और भौती को बेहोश देखकर उनके बच्चे घबरा गए। उन्होंने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया। बच्चों के रोने की आवाज सुनकर उनके आस पड़ोसी दौड़कर आये। गांवों में अभी थोड़ी बहुत संवेदनशीलता जिंदा है जबकि शहरों में तो यह कब की मर गई है। आनन फानन में घर में भीड़ इकट्ठी हो गई। किसी ने दोनों पर ठंडे पानी के छींटें मारे तो उन्हें होश आ गया। उन दोनों को जमीन से उठाकर चारपाई पर लिटाया गया। कोई अपने आंचल से हवा करने लगी तो कोई अपने घर से पंखा ले आया। संकट के समय लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक दूसरे की दिल से मदद करते हैं। यही भारत की संस्कृति है।

शिवचरण ने जब अपने घर का नजारा देखा तो उसे सब कुछ याद आ गया। इंतकाल के बारे में सोचकर वह दहाड़ें मारकर रोने लगा। उसे रोते देखकर भौती भी रोने लगी। दोनों को रोते देखकर बच्चे भी रोने लगे। सबको रोते देखकर वहां मौजूद औरतें भी रोने लगी। कोहराम मच गया था। किसी को कोई पता नहीं था कि कोई रो क्यों रहा था सिवाय शिवचरण के। मगर लोग दुःख में साथ खड़े दिखना चाहते हैं इसलिए कारण पता नहीं होने पर भी रो लेते हैं यहां पर।

भौती ठेठ देसी औरत थी। एक ऐसी औरत जो बस इतना जानती थी कि उसका सब कुछ उसका पति ही है। भारतीय पत्नियों का दुख सुख पति और बच्चों से ही होता है। उनका अपना कुछ भी नहीं होता है। उस जमाने में तो पत्नी का शादी के बाद नया नामकरण भी ससुराल में किया जाता था। मतलब कि उसका असली नाम भी रीति रिवाजों की तरह पीहर में ही रह जाता था। 

लोगों ने शिवचरण से रोने का कारण पूछा तो शिवचरण ने पटवारी रामनाथ मिश्रा की सारी कारिस्तानी सुना दी और उसे गालियां देकर बुरा भला कहने लगा। उसने वहीं से पटवारी को पचासों श्राप भी दे डाले। गरीब आदमी के पास एक यही तो "हथियार" है जिससे वह सामर्थ्यवान को थोड़ा बहुत डरा सकता है। वरना तो उसके पास है ही क्या ?

वहां उपस्थित लोगों को पटवारी पंडित रामनाथ मिश्रा को शिवचरण द्वारा इस तरह गाली देना , उसके ऊपर पैसे खाने का आरोप लगाना और उसे भला बुरा कहना लोगों को पसंद नहीं आया। एक तो पटवारी जी "पंडित" महाराज थे यानि पूजनीय थे दूसरे वे "नित्य नियम" के पक्के , उसूलों पर दृढ़तापूर्वक चलने वाले , मृदुभाषी और बहुत बड़े आदमी थे। उन पर ऐसे घिनौने आरोप लगाना ठीक नहीं लगा लोगों को। शिवचरण की बात को किसी ने सही नहीं माना। सबने शिवचरण को ही बुरा भला कहा। फिर सब लोग एक एक करके चले गए। 

धाकड़ जाति का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति चूनाराम था। वह थोड़ा समझदार भी था। जब भी कभी लोग मुसीबत में पड़ते तो उसके पास सलाह मशविरा करने जरुर जाते थे । वह यथासंभव सबकी मदद भी करता था। लोग उसकी बात मानते भी थे। भौती ने शिवचरण से कहा कि एक बार "चूनाराम बाबा" से भी सलाह कर लेनी चाहिए। शिवचरण को भौती की बात जम गई।

शाम को शिवचरण चूनाराम के घर पहुंच गया। चूनाराम यद्यपि 75 साल का था लेकिन लगता 50-60 का ही था। अपने खेतों की रखवाली कर लेता था। पशुओं को चारा डाल देता और ऐसे ही छोटे मोटे काम कर लेता था। उसके बेटे बहू , पोते और पोत बहू वगैरह सब उसका आदर सम्मान करते थे। परिवार के लोग ही नहीं , गांव के समस्त व्यक्ति भी उसका सम्मान करते थे। एक बात तो तय है कि जिस व्यक्ति का अपने घरवाले आदर सम्मान नहीं करें , उसका सम्मान कौन करता है ?

चूनाराम बाहर चबूतरे में चारपाई पर बैठकर हुक्का गुडगुड़ा रहा था। दो चार आदमी भी वहां पर दूसरी चारपाई पर बैठे हुए थे। उनमें से कुछ लोग बीड़ी भी पी रहे थे। लोग बीड़ी शौक शौक में ही पी जाते हैं फिर बाद में उस बीडी की उन्हें लत लग जाती है।

शिवचरण ने जाते ही चूनाराम के पैर छुए। चूनाराम ने उसे आशीर्वाद दिया और सामने पड़ी चारपाई पर बैठने और हुक्का गुड़गुड़ाने का इशारा किया। शिवचरण उस चारपाई पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाने लगा। 

चूनाराम ने जब उससे यहां आने का कारण पूछा तब शिवचरण ने सारी बात कह सुनाई। चूनाराम ने शिवचरण को कहा " ये अच्छा नहीं हुआ शिवचरण। ये तो बहुत बुरा हो गया। अब जमीन का मालिक तू नहीं बल्कि शिवचरण नाई बन गया है। अगर उसको पता चल गया और उसके मन में बेइमानी आ गई तो वह उस जमीन को ओने पोने दामों में बेचकर पैसे लेकर भाग सकता है। तू तो बुरा फंस गया रे शिवचरण ! अब तो तुझे पटवारी जी ही बचा सकते हैं। जा , उनके चरणों में गिरकर माफी मांग ले और महतो के अनुसार जो भी "नजराना , फसलाना , मेहनताना , शुकराना" बनता है , वह दे दे। यही एकमात्र रास्ता है। और कोई रास्ता नहीं है। बेटा , एक बात गांठ बांधकर रख ले। बड़े लोगों ने कहा है कि ऊपर करतार और नीचे पटवार। इसका मतलब है कि गांवो में जीता जागता भगवान पटवारी ही होता है। किसानों की पूरी किस्मत पटवारी के हाथों में ही होती है। इसलिए हम किसानों के लिए पटवारी भगवान के समान है। अतः उससे पंगा मत लेना फिर कभी"। 

शिवचरण को अपनी स्थिति ऐसी लगी जैसे कि उसका सब कुछ लुट चुका हो। मरता क्या न करता वाली हालत हो गई उसकी। आखिर नाक कटाकर पटवारी के पास जाना ही पड़ा उसको। घर से एक बोरी मूंगफली ले चला। आखिर "मंदिर' में जा रहा था वह। और "भगवान" के घर कभी भी खाली हाथ नहीं जाते हैं। पटवारी जी का घर किसी मंदिर से कम थोड़े ही है।

शिवचरण जानबूझकर पटवारी के घर ऐसे समय में गया जब पूजा समाप्त हो जाती है। क्योंकि वह पहले भी दो तीन बार "पूजा" के कारण बैरंग लौट आया था। इसलिए दूध का जला आदमी छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है।

पटवारी जी "बाखड़" में मूढ़े पर बैठे थे। दस बीस लोग नीचे जमीन पर बैठकर उनकी चिलम भर रहे थे। शिवचरण को देखकर पटवारी जी थोड़े और फैल गए। पटवारी जी हुक्के से घूंट भरकर धुंआ शिवचरण की ओर उछालते हुए बोले "अब तो तेरा काम हो गया शिब्बो" ? शिवचलण इसका क्या जवाब देता।

शिवचरण पटवारी जी के पैरों के पास बैठकर उनके पैर दबाने लगा। पटवारी जी ने अपने पैर झटक कर अलग कर लिए और बोले "राम राम राम। अरे , ये क्या कर रहा है, शिब्बो ? मुझे नर्क में क्यों धकेल रहा है, ? जा, सामने बैठ जा"। पटवारी जी एक मंझे हुए कलाकार की तरह से अदाकारी भी करते थे।

शिवचरण सामने जमीन पर बैठ गया। पटवारी जी जानबूझकर दूसरे लोगों से बातचीत करते रहे। फिर शिवचरण ने दोनों हाथ जोड़कर कहा "पंडित जी , हमारा अपराध क्षमा कर दो। हमसे बड़ी गलती हो गई है"। 

पटवारी पंडित रामनाथ मिश्रा ने उसे घूरते हुए कहा "गलती और तुझसे ? तू तो बहुत समझदार आदमी है। और दुनिया में समझदार आदमी को समझाना सबसे कठिन काम है। एक कहावत है कि सोते हुए आदमी को तो जगाया जा सकता है मगर जागते हुए आदमी को नहीं जगाया जा सकता है। इसी तरह अनपढ को समझाना आसान है मगर समझदार को समझाना बहुत कठिन है। मगर महतो ने फिर भी तुझे समझाने की बहुत कोशिश की थी , लेकिन तू तो जरूरत से ज्यादा होशियार है इसलिए उसकी बात तेरे समझ में नहीं आई। अब तू ही बता कि मैं ऐसी स्थिति में क्या कर सकता हूं" ? 

अपनी दयनीय स्थिति देखकर शिवचरणको रोना आ गया। भरे गले से वह बोला

"आप ही मेरे 'भगवान' हैं पटवारी जी। भगवान तो ऊपर बैठा है पर इस धरती पर हम किसानों के भगवान तो आप ही हो। अब , मेरी लाज आपके ही हाथ में हैं दीनानाथ , इसे बचा लो या चौराहे पर ले जाकर नीलाम कर दो "। शिवचरण ने पटवारी जी को साष्टांग प्रणाम करते हुए कहा। 

शिवचरणकी इस हालत पर पटवारी जी भन ही मन बहुत खुश हुए। उसकी सार्वजनिक बेइज्जती करके पटवारी जी को स्वर्गिक आनंद आ रहा था। लेकिन लोगों के सामने वे कहनै लगे

"देख शिब्बो , अब बाजी मेरे हाथ से निकल गई है। अब तो नाजिम साहब ही कुछ कर सकते हैं इसमें। और तेरी पहुंच तो कलेक्टर साहब तक है। तो सीधे कलेक्टर साहब से ही करवा ले तू अपना काम"। पटवारी जी ने ऐसा व्यंग्य बाण चलाया जिससे शिवचरण पूरी तरह से चोटिल हो गया था। मगर अपमान सहने के अलावा वह और कर भी क्या सकता था ? वह सचमुच भीष्म पितामह की तरह था जो सैकड़ों बाण सहकर भी जिंदा था।

"पंडित जी , मेरे तो आप ही तहसीलदार , नाजिम , कलेक्टर साहब सब कुछ हो। अब आप ही मेरा उद्धार कर सकते हो। मुझे हुक्म करो कि मुझे क्या करना है" ? 

पटवारी जी ने दो बार "हरिओम हरिओम" का उच्चारण किया और उसे जाने का इशारा हाथ से कर दिया। 

शिवचरण निराश हताश अपने घर लौट आया। पटवारी जी ने कुछ भी नहीं कहा। कुछ तो कहते वे कम से कम ? उसे याद आया कि उसकी किताब में एक पाठ था "सखि , वे मुझसे कहकर जाते"। मास्साब ने उस समय बताया था कि मैथिली शरण गुप्त की एक कविता थी जिसमें उन्होंने बताया था कि गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा को सिद्धार्थ के वन में जाने का दुःख नहीं था बल्कि दुःख केवल इतना था कि वे उसे बताकर नहीं गये। अगर बताकर चले जाते तो क्या पहाड़ टूट पड़ता ? मगर मर्द होते ही ऐसे हैं। 

उसे पटवारी जी भी गौतम बुद्ध की तरह लगे। उन्होंने भी कुछ नहीं बताया। कुछ तो बोलते ? कितने में काम हो जायेगा , यह तो बताना चाहिए था ना ? मगर 'हरिओम हरिओम' करके टरका दिया उसको। हरिओम हरिओम कहने से मेरा काम थोड़ी ना हो जायेगा ? वह बड़बड़ाता ही चला जा रहा था। जब आदमी किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता है तो वह अकेले में बड़बड़ाकर अपनी हताशा बाहर निकालने की कोशिश करता है। शिवचरण भी यही कर रहा था।

उसके घर के

सामने से चूनाराम बाबा निकल रहे थे। डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया हो जैसे। शिवचरण ने लपक कर आवाज लगाई और पहुंच गये उनके पास। 

"पांय लागी बाबा" 

"हूं। खुस रहो बच्चा। कुछ बात बनी क्या" ? 

"बाबा, आपके कहने के अनुसार में पटवारी जी के घर गया एक बोरी मूंगफली लेकर। मगर वे तो कुछ भी नहीं बोले"। 

"कुछ तो बोले होंगे" ? 

"नहीं बाबा , कुछ भी नहीं बोले। जब मैंने कहा कि मुझे क्या करना है बता दीजिए तो इस पर उन्होंने बस 'हरिओम हरिओम' कहा और कुछ नहीं। 

चूनाराम बाबा जोर से हंसे। कहने लगे "अरे बावले। उन्होंने तो ताले की चाबी तुझे बता दी और तू कहता है कि उन्होंने कुछ भी नहीं कहा" 

शिवचरण आश्चर्यसे चूनाराम को देखने लगा

"सच बाबा। उन्होंने और कुछ नहीं कहा था" 

"अरे पगले , हरिओम नाम महतो का ही है। उसका पूरा नाम हरिओम महतो है। पर गांव वाले उसे महतो ही कहते हैं हरिओम महतो नहीं। उन्होंने तो हिंट दे दिया है कि अब तू हरिओम महतो से मिलकर "सौदा" पक्का कर ले। अब ये तुझ पर निर्भर करता है कि तू कब "डील" फाइनल करता है " ? 

शिवचरण को सारी बात समझ में आ गई। पटवारी जी ने इशारों इशारों में ही अपनी बात कह दी थी। बड़े आदमियों की यही विशेषता होती है कि वे अपनी बात कभी भी सीधे सीधे नहीं कहते हैं , बस इशारों में ही बात करते हैं। आज उसे दुनिया का यह सत्य भी पता चल गया था।

वह दो भेली गुड़ की और एक कट्टा तिल लेकर महतो के घर गया। उस समय महतो खाना खा रहा था। शिवचरण बाहर खड़ा खड़ा ही इंतजार करता रहा। जब वह खाना खा चुका तो फिर दोनों व्यक्ति बाहर बरामदे में बैठकर बातें करने लगे। 

शिवचरण महतो के पैर पकड़ कर बोला "बाबूजी , मेरा खेत मेरे नाम लगवा दो। रामजी आपका बहुत भला करेंगे"। 

महतो उसको बात सुनकर खामोश बैठा रहा। बहुत देर तक सोचने के बाद वह बोला

"बात अब काफी बिगड़ चुकी है शिवचरण। अब तो शुद्धि करनी पड़ेगी। और यह काम नाजिम साहब करेंगे"। हरिओम महतो ने कहा 

"मैं तो नाजिम , काजिम जानूं नहीं , बस जानू दातार। अब तो आप ही मेरे दातार हो। आप को ही करना होगा यह कार्य " शिवचरण गिड़गिड़ाया।

"नाजिम साहब से बात करनी पड़ेगी। उनका क्या मूड है , पता करना पड़ेगा" ? 

"कैसे भी करो , पर मेरा ये काम कर दो "। शिवचरण की आवाज भर्रा पड़ी। 

"काम तो हो जाएगा पर रुपये पूरे पचास हजार लगेंगे। जिस दिन लेकर आ जाओगे दूसरे दिन ही काम करवा देंगे"। महतो हाथ नचाकर बोला।

पचास हजार रुपए की बात सुनकर शिवचरण का दिल धक्क से रह गया। कहां से लायेगा वो पचास हजार रुपए ? बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से कुछ बोल फूटे " मैं मर जाऊंगा , महाराज। इतनी ताकत नहीं है मुझमें। गरीब आदमी हूं। घर में हजार रुपए भी नहीं हैं , फिर पचास हजार कहां से लाऊंगा ? कौन देगा मुझे उधार ? कुछ तो रहम करो , महाराज"। और शिवचरण ने महतो के पैर पकड़ लिए। 

महतो अपने पैर छुड़ाकर बोला " मेरे पास फालतू बातों के लिए टाइम नहीं है शिब्बो। एक बार जो कह दिया सो कह दिया। समझे " ? 

उदास शिवचरण झक मारकर वापस घर आ गया। घर पर पता चला कि उसका साला आया हुआ है शहर से। बातचीत में जमीन का जिक्र आ गया तो शिवचरण ने अपनी मुसीबत उसे बता दी। साले ने कहा " मेरी पहचान एक वकील से है , उससे बात करते हैं "। 

दूसरे दिन शिवचरण अपने साले के साथ उस वकील के पास चला गया। वकील ने सारी राम कहानी सुनकर कहा कि काम हो जाएगा लेकिन रुपया पच्चीस हजार लगेगा। शिवचरण को इस सौदे में फायदा नजर आया। कम से कम 25 हजार रुपए तो बच रहे हैं। वह तैयार हो जाता है और दोनो जने वकील को कह देते हैं कि कल आकर पैसे दे देंगे। 

शिवचरण वापस गांव आ जाता है। इतने में उसे वही चूनाराम बाबा दिखाई दे जाता है। चूनाराम बाबा को नमस्कार करके वह सारा हाल सुना देता है और वकील के द्वारा मांगा गया रुपया पच्चीस हजार भी बता देता है। तब अचानक चूनाराम जोर से उछल पड़ता है और कहता है 

"अरे, कल तो अपने गांव में "प्रशासन गांव के संग अभियान" कार्यक्रम के अंतर्गत कैम्प लगेगा। नाजिम साहब भी आएंगे। उनके सामने इस समस्या को रखेंगे और फिर इलाज पूछेंगे। कहो, कैसी रही" ? 

"बहुत बढ़िया रही " शिवचरण ने भी चूनाराम के सुर में ताल मिलाते हुए कहा। उसे लगा जैसे उसे संजीवनी बूटी मिल गई हो।

दूसरे दिन गांव में कैम्प लगा। नाजिम साहब यानी कि उपखंड अधिकारी जी पधारे थे। साथ में तहसीलदार जी, विकास अधिकारी जी और दूसरे विभागों के अधिकारी भी पधारे थे। 

चूनाराम शिवचरण को उपखंड अधिकारी के पास लेकर गया और सारी बात खुलकर बताई। जमाबंदी की पुरानी नकल जिसमें जमीन रमझू के नाम थी जिसमें अंकित था "रमझू वल्द घीसा कौम धाकड़ साकिन देह खातेदार"। रमझू की मौत के बाद इंतकाल खोल दिया जिसमें अंकित हो गया "शिवचरण पुत्र बोदन जाति नाई साकिन देह खातेदार"। खसरा नंबर और रकबा वही था। 

उपखंड मजिस्ट्रेट ने तहसीलदार से इस नामांतरण के बारे में पूछा और कहा कि आपने हस्ताक्षर करते समय ध्यान क्यों नहीं दिया ? कितनी परेशानी उठानी पड़ी है एक किसान को आपकी एक छोटी सी गलती के कारण ? तहसीलदार ने पटवारी पंडित रामनाथ मिश्रा को बुलवाया और कहा "गलत सलत इंतकाल खोल देते हो जिससे किसान परेशान होते रहते हैं। बड़े लापरवाह हो तुम। आगे सै देखभाल कर काम किया करो। गलती तुम करते हो और डांट हमको सहन करनी पड़ती है। बताओ , ये इंतकाल गलत कैसे खुला" ? 

पंडित रामनाथ मिश्रा बगलें झांकने लगे। जब कुछ उपाय नहीं सूझा तो कह दिया "हुकम , इंसान गलतियों का पुलिंदा है। गलती इंसान से ही होती है हुजूर। अब शुद्धिकरण करवा देता हूं"। 

शिवचरण ने SDM साहब को वो सारी बातें भी बताई कि किस तरह पटवारी जी को पैसे नहीं मिले तो उन्होंने जान बूझकर गलत नामांतरण खोल दिया था ? SDM साहब पटवारी जी पर बहुत गुस्सा हुए और उन्हें सख्त हिदायतें देते हुए कहा कि "अगर अबकी बार कुछ भी उल्टा सीधा किया तो मैं तुमको उल्टा लटका दूंगा"। 

पटवारी जी ने कहा "नहीं होगी हुजूर। इस बार कोई गलती नहीं होगी"। इस प्रकार भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 136 के अन्तर्गत एक प्रार्थना पत्र शिवचरण से लिखवाया गया। उस पर पटवारी से रिपोर्ट ली गई और तहसीलदार ने भी अपनी टिप्पणी अंकित की। तब जाकर SDM साहब ने शुद्धिकरण के आदेश दिए और राजस्व रिकार्ड में शिवचरण के नाम भूमि का सही अंकन किया जा सका। 

शिवचरण और चूनाराम ने नाजिम साहब को बार बार धन्यवाद दिया कि उनका काम घर बैठे ही हो गया वरना कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते काटते जिंदगी गुजर जाती और हाथ लगती केवल तारीख। अफसर हो तो नाजिम साहब जैसा जो हाथों-हाथ फैसला सुना दे और दूध का दूध और पानी का पानी कर दे। बाकी पटवारी ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी गुड़ गोबर करने में।

उस शिविर में स्थानीय विधायक भी उपस्थित थे। उन्होंने भी उपखण्ड अधिकारी के कार्य और व्यवहार की भूरि भूरि प्रशंसा की। जनता को संबोधित करते हुए विधायक जी ने कहा 

"प्रशासन गांव के संग अभियान होता ही इसीलिए है कि गांव में सारा सरकारी अमला आकर गांव के सारे बकाया काम पूरे करे और लोगों की तकलीफें दूर करे। उपखंड अधिकारी जी ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है। काश कि दूसरे अधिकारी और कर्मचारी भी इसी तरह जनता का काम करें"।

सबने विधायक जी की जय जयकार की और उपखंडअधिकारी जी का आभार व्यक्त किया।


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