कली राम
कली राम
हमारे भैया के एक दोस्त थे कली राम। एकबार वे घर पर भैया से मिलने आए, बहुत देर तक बैठे रहे ,बातें करते रहे। हम लोगों से भी भैया ने परिचय कराया ।मेरे बारे में भी बताया है कि यह मेरी छोटी बहिन है जो पढ़ने में बहुत तेज़ है ।कली राम जी सुनकर चुपचाप बैठे रहे, कुछ बोले नहीं।
मुझे कली राम जी कोई ख़ास नहीं लगे बल्कि उनका नाम सुनकर तो बहुत हँसी आयी ।उनका व्यक्तित्व भी अजीब सा था। मुझे आश्चर्य हुआ कि भाईसाहब से इनकी दोस्ती कैसे हो गई। हमारे भाई और वे एकदम अलग अलग स्वभाव के और स्तर के लग रहे थे।
सोचते सोचते ख्याल आया कि उनका नाम भी अजीब सा है ,ऐसा कोई नाम आज तक न ही सुना, न ही कहीं पढ़ा। ऐसा विचित्र सा नाम, अगर इसे उलट दिया जाए तो यह रामकली हो जाय। रामकली तो लड़की वाला नाम हो गया। मुझे अपने विचार पर ही हँसी आयी, और मैं अपने को रोक नहीं सकी,मैंने भैया को भी बता दिया कि कलीराम को अगर रामकली कहा जाए तो कैसा लगेगा। सुन कर भैया भी हँस पड़े और जिसने भी सुना वह भी मेरी कल्पना की दाद दिये बिना नहीं रहा। हम सबके लिये यह एक मज़ाक का विषय हो गया कि भैया की एक दोस्त रामकली हैं ।
बात आयी गयी हो गई थी। कुछ दिन बाद जब फिर कली राम मिलने आये, तो भैया ने उनको हँसी हँसी में कह दिया कि बहिन ने आपका नाम रामकली कर दिया है। सुनकर कली राम जी कुछ कह न सके, एक खिसियानी सी सूरत बनाकर चुप हो गए। उन्हें शायद यह पसंद नहीं आया कि उनके नाम का ये हाल होगा।
और इसके बाद उनका हमारे घर आना क़रीब क़रीब बंद हो गया। हम लोग को भी अच्छा लगा कि भैया को उनसे छुट्टी मिली।