कर्तव्यनिष्ठा
कर्तव्यनिष्ठा
अनीशा सर्जरी में एम.एस. का फ़र्स्ट ईयर कर रही थी। वह जो भी काम करती बहुत ध्यान से करती। बचपन से ही वह हर काम पूरे ध्यान और तत्परता से करती थी , चाहे उसमें कितना भी समय लग जाये।
जब वह छोटी थी, एक बार कमरे का डोरमैट थोड़ा फट गया, अनीशा की उस पर नज़र पड़ी तो वह उसे ठीक करने बैठ गई सुईं धागा लेकर। करते करते काफ़ी टाईम बीत गया पर वह उसे ठीक करने में लगी ही रही। उसे खाने- पीने का भी होश नहीं रहा। उसके पापा ने यह देखा तो बोले-“ यह इतनी देर से लगी हुई है, डोरमैट ही तो है, दूसरा आ जायेगा”।
पर अनीशा को इससे मतलब नहीं था, जो काम हाथ में लिया उसे सही तरीक़े से पूरा करके ही उसे चैन मिलता था, इसके लिये कितना भी परिश्रम करना पड़े।
और जब वह डोरमैट उसके मनमाफिक ठीक हो गया , तो ख़ुशी से उसका चेहरा चमक गया। पता नहीं चल रहा था कहॉं सिलाई या रफू किया गया है।
यही आदत उसके बड़ा होने तक रही , और डॉक्टरी में बहुत काम आई। वह जो भी कोई काम करती, पूरी सावधानी बरतती, जरा भी लापरवाही उसे बर्दाश्त न होती। इसी कारण से वह बहुत लोकप्रिय हो गई। सभी मरीज़ उसी से इलाज कराना चाहते, उसे देवी मानते। उसके प्रोफ़ेसर भी उसका बहुत सम्मान करते और आपरेशन करने के समय उसी से सहायता लेते।
एक बार एक केस आया, पेट का कोई ऑपरेशन था। बहुत सीनियर प्रोफ़ेसर वह आपरेशन कर रहे थे,अपने साथ सहायक के तौर पर उन्होंने अनीशा को ही बुलाया। उन्होंने आपरेशन किया ,फिर जो खोला था उसकी सिलाई बाक़ी थी, टॉंके लगाने थे। उन्होंने अनीशा से पूछा-“ तुम टॉंके लगा लेगी ?”
अनीशा के ‘हॉं’ कहने पर उन्होंने उस पर छोड़ दिया। और उसे ठीक से काम करते देखकर चले गये।
उनके जाने के बाद अनीशा ध्यानपूर्वक स्टिच लगाने लगी। तभी एक एम. एस.थर्ड ईयर का सीनियर स्टूडेंट आया और अनीशा पर रौब झाड़ता हुआ बोला- “ तुम छोड़ो, मैं करता”।
अनीशा ने कहा-“ सर ने आपरेशन किया है, मुझे साथ लेकर और स्टिच लगाने के लिये मुझे दे गये हैं”।
पर सीनियर स्टूडेंट ने कुछ नहीं सुना । वह बोला- “मैं सीनियर हूँ, तुमसे ज़्यादा जानता हूँ “।
और अनीशा को हटाकर खुद टॉंके लगाने लगा। सीनियर होने के नाते अनीशा उसे कुछ कह नहीं सकी। उसे हटना पड़ा।
अनीशा उसे ध्यान से देखती रही। अनीशा ने देखा कि उस सीनियर ने टॉंके लगाते समय लापरवाही से वैसिकटोमी वाली नस भी पकड़ ली और उसे सिल दिया। उस नस के सिल देने से उस मरीज़ के बच्चे नहीं हो सकते थे।
अनीशा ने उसे रोका और कहा -“ उसे खोल दो, मुझे दो , मैं कर देती हूँ। वह नस नहीं सिलनी चाहिये ।”
पर सीनियर पर कोई असर नहीं पड़ा, वह बोला-“ तो क्या हुआ, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।”
सीनियर ने यह नहीं देखा कि उस युवक मरीज़ को यह पता नहीं चला कि डॉक्टर ने क्या गलती कर दी, अब वह पिता नहीं बन सकता था। उसकी बिना जानकारी से डॉक्टर की लापरवाही से ऐसा हुआ जिसने टॉंके लगाने में बारीकी और होशियारी से काम नहीं किया।
जो ठीक से पढ़ाई नहीं करते, सावधान नहीं रहते वे ही ऐसी गलती कर जाते हैं, नतीजा मरीज़ को भुगतना पड़ता है।
अनीशा को यह सब ठीक नहीं लग रहा था। उसे आगे के लिये यह नसीहत मिल गई कि अपना काम दूसरे पर नहीं छोड़ना, चाहे वह सीनियर ही क्यों न हो। उसने फिर भी उस मरीज़ के बारे में बात कर पता लगाया तो पता चला कि वह मरीज़ शादीशुदा था और उसके दो बच्चे थे। इससे वह फिर कुछ नहीं बोली, नहीं तो सोच रही थी कि मरीज़ को सीनियर की इस गलती के बारे में बता दे।
चिकित्सक का पेशा बहुत सावधानी और संवेदना माँगता है, यह पेशा नहीं, मानव सेवा है। मरीज़ के लिये डॉक्टर ही ईश्वर है, अतः विश्वास की रक्षा करनी चाहिये।