Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

माला के बिखरे मोती (भाग ४५)

माला के बिखरे मोती (भाग ४५)

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     माया, प्रशांत और दोनों बच्चे अजंता और विजयंत फ्लाइट से प्रशांत के मम्मी पापा के घर जा रहे हैं। फ्लाइट में बैठे हुए चारों लोगों के मन में कई तरह के विचार उथल पुथल मचा रहे हैं। जहां एक ओर, दोनों बच्चे अपने नानाजी नानीजी के घर को याद करके उदास हैं और उनमें दादाजी, दादीजी, चाचा और बुआ से मिलने का उत्साह भी है। वहीं दूसरी ओर, माया इस बात को लेकर थोड़ी बेचैन है कि इतने सालों के बाद अपने ससुराल वालों का सामना किस मुंह से करेगी। 


   माया यह बात अच्छी तरह जानती और समझती है कि कोई भी इंसान किसी की अच्छी बातें भूलने में समय भले ही न लगाए, लेकिन बुरी बातें कभी नहीं भूलता है। उसको यह डर है कि कोई उसकी पुरानी हरकतों के लिए प्राची की ससुराल वालों के सामने उसको ताना न मार दे। अगर किसी ने ताना मार दिया, तो उनके सामने उसकी क्या इज़्ज़त रह जाएगी। 


   ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं उसका यह अपराध बोध ही हो। या शायद कुटिल लोगों की स्वाभाविक सी मानसिकता भी कही जा सकती है कि वे बुरा करने से बाज़ तो नहीं आएंगे, लेकिन उन पर तोहमत न लगाई जाए।


   ख़ैर, इसी उधेड़बुन में सफ़र कैसे कट गया, किसी को पता ही नहीं चला। अपने तय समय पर फ्लाइट ने लैंड किया है। इन चारों के सहित सभी यात्री फ्लाइट से बाहर आ रहे हैं। 


   थोड़ी देर के बाद ये चारों एयरपोर्ट से बाहर आ रहे हैं। एयरपोर्ट से बाहर आते आते माया ने जय को फ़ोन करके चारों के कुशलता से पहुंचने का संदेश सीमित शब्दों में दे दिया है। यह सोचकर कि शायद ससुराल पहुंचकर उनसे बात हो पाए या न हो पाए, क्या पता...!


   एयरपोर्ट से बाहर आकर प्रशांत घर के लिए टैक्सी कर ही रहा है कि उसने देखा कि थोड़ी दूर पर प्रणय खड़ा, मुस्कुराता हुआ उन सबको ख़ामोशी से निहार रहा है। प्रणय को देखते ही तेज़ी से चलते हुए प्रशांत ने उसको गले लगा लिया है। आख़िर इतने सालों के बाद दोनों भाई मिल रहे हैं। तो ज़ाहिर है दोनों भाई थोड़ा इमोशनल तो होंगे ही। 


प्रणय: भईया नमस्ते...आप कैसे हो? 


प्रशांत: मेरे भाई...मैं ठीक हूं। तू कैसा है? बहुत सालों के बाद तुझे अपने सीने से लगा पा रहा हूं।


  अभी इन दो संवादों के बाद दोनों भाई ख़ामोशी से एक दूसरे के सीने से चिपके हुए ही खड़े हैं। प्रशांत के पीछे माया और बच्चे भी खड़े हैं। लेकिन अभी शायद प्रणय का ध्यान उनकी ओर गया ही नहीं है। लेकिन कुछ पल गुज़रने के बाद दोनों भाई अलग हुए, तो तब प्रशांत और प्रणय को उनका ख़्याल आया। प्रणय माया और बच्चों को देखकर आगे बढ़ा है।


माया: प्रणय भईया नमस्ते। आप कैसे हैं?


प्रणय (मुस्कुराते हुए): नमस्ते भाभी। मैं ठीक हूं। आप कैसी हैं और मेरे दोनों प्यारे बच्चे कैसे हैं? ये दोनों तो अपने चाचा को जानते भी नहीं होंगे।


माया: ऐसी बात नहीं है भैया। ये दोनों बच्चे आपको अच्छी तरह जानते भी हैं और आपको पहचानते भी हैं कि आप इनके चाचा हैं।


   यह कहकर माया दोनों बच्चों को प्रणय के पास आने का हाथ से इशारा कर रही है। दोनों बच्चे अपने चाचा के पास आए हैं। अजंता ने दोनों हाथ जोड़कर अपने चाचा को प्रणाम किया है और विजयंत ने अपने चाचा के पैर छूकर प्रणाम किया है। यह देखकर प्रणय बहुत खुश हुआ है और दोनों को अपने सीने से लगा लिया है।


प्रणय (मुस्कुराते हुए): भैया, आपने बच्चों को संस्कार तो अच्छे दिए हैं।


प्रशांत: भाई, संस्कार तो हमारे ख़ून में हैं और इन दोनों में तो अपने नाना नानी और मामाओं के भी संस्कार आए हैं। संयुक्त परिवार में रहकर बच्चे संस्कार सीखते हैं। बाक़ी तो हर बच्चे का व्यवहार कैसा रहेगा, यह तो हर बच्चे की क़िस्मत और उसके ख़ुद के कर्म हैं। 


   यह कहते हुए प्रशांत ने माया की ओर देखा है। माया भी प्रशांत के व्यंग को समझ गई है। लेकिन वक्त की नज़ाकत को देखते हुए वह चुप है।


   प्रणय ने भी यह समझ लिया है। उसने बात को टालते हुए कहा,


   "चलिए, चलिए, सब लोग घर चलते हैं। घर पर सब लोग आपका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे होंगे।"


   प्रणय की यह बात सुनकर सभी लोग प्रणय के पीछे खड़ी हुई कार में बैठने लगे हैं। प्रशांत और प्रणय ने कार में सामान रखा है और माया बच्चों सहित कार की पिछली सीट पर बैठ गई है। कार की ड्राइविंग सीट पर प्रणय और उसके साथ वाली सीट पर प्रशांत बैठा है। कार घर की ओर रवाना हो गई है।


   रास्ते में प्रशांत अपना शहर बहुत सालों के बाद देखकर भावुक हो रहा है, क्योंकि इसी शहर में वह पैदा हुआ था और जवान हुआ था। कुछ ही देर में ये सब लोग अपनी कॉलोनी में प्रवेश कर गए हैं। कॉलोनी में दाख़िल होते ही प्रशांत को अपने बचपन की गलियाँ याद आने लगी हैं। इन्हीं गालियों में खेल कूदकर उसने अपना बचपन गुज़ारा था। उसको वह मैदान भी नज़र आया, जहाँ बचपन में दोस्तों और प्रणय के साथ क्रिकेट खेला करता था।


प्रशांत: प्रणय, यह तो वही मैदान है, जहां बचपन में हम क्रिकेट खेलते थे।


प्रणय: हां भैया। यह मैदान वही है। ये गलियाँ और यह मैदान आपको बहुत याद करते थे। मैं जब भी यहाँ से गुज़ारता हूं, तो बचपन के वे सुनहरे दिन बहुत याद आते हैं। परिस्थितियाँ कैसे बदल जाती हैं, पता ही नहीं चलता है। चलिए, अब तो आपका भी यहाँ आना जाना लगा ही रहेगा। अब बस हम घर पहुंचने ही वाले हैं।


   प्रणय की बात पूरी भी नहीं हुई है कि घर आ गया है। घर के बाहर पहुंचकर प्रणय ने कार का हॉर्न बजाया है। हॉर्न की आवाज़ सुनकर नरेश ठाकुर और मधु के साथ प्राची अपने हाथों में स्वागत की थाली लिए घर के गेट के बाहर आ गए हैं। इतनी देर में प्रशांत, माया और बच्चे भी कार से उतरकर खड़े हो गए हैं। सभी लोग कुछ क़दम आगे बढ़े हैं। 


   प्रशांत, माया और बच्चों ने सबसे पहले नरेश ठाकुर के पैर छूकर प्रणाम किया है। नरेश ठाकुर ने सबको आशीर्वाद दिया है और प्रशांत और बच्चों को गले लगा लिया है। फिर इन चारों ने मधु के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया है। उसके बाद, प्रशांत और माया तो प्राची के गले लग गए हैं और दोनों बच्चों ने अपनी बुआ के पैर छूकर आशीर्वाद लिया है। उसके बाद प्राची ने सबकी आरती उतारकर सबका स्वागत किया है। इतनी देर में, प्रणय घर के अंदर से पहले से रखे हुए फूल ले आया है और अब इन चारों पर पुष्पवर्षा कर रहा है। जिसको देखकर प्रशांत, माया और बच्चे भावुक हो गए हैं। सबसे ज़्यादा भावुक इस समय माया दिख रही है। शायद इसलिए भी, कि उसको इस तरह के अपने स्वागत की उम्मीद नहीं होगी, क्योंकि उसने तो हमेशा इन लोगों को दुख ही दिया था और इनका अपमान ही किया था। 


   तभी प्राची बोल उठी,


   "घर के अंदर आने से पहले आप सभी ध्यान से सुनिए। अब मेरी शादी होने तक कोई भी पुरानी बातों को याद नहीं करेगा और न ही उनके बारे में चर्चा करेगा। मैं चाहती हूं कि शादी होने तक घर का माहौल खुशियों भरा रहे। कोई बात ऐसी नहीं होगी, जिससे किसी को कोई दुख या टेंशन हो।"


   तभी नरेश ठाकुर बोले,


   "हां प्राची बेटा, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं। वैसे भी अब हम सबको आने वाले दिनों में एक साथ बैठकर शादी से जुड़ी हर रस्म के बारे में प्लानिंग करनी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि निपुण और उसके परिवार को प्रशांत, माया और बच्चों से भी तो मिलवाना है। तो ऐसा करते हैं कि उनको फ़ोन करके मिलने का कार्यक्रम बनाते हैं।"


मधु (हँसते हुए): अजी, आप सबको घर के अंदर भी आने देंगे या फिर यहीं गेट पर ही सारी बातें करनी हैं।


नरेश (हँसते हुए): अरे हां। आओ आओ, सब लोग अंदर आओ। बच्चों, आओ...तुम दोनों अपने दादाजी के साथ घर के अंदर चलो। तुम दोनों तो अपने घर पहली बार आए हो। तुम्हारे मम्मी पापा को तो घर का कोना कोना मालूम है।


   नरेश ठाकुर की यह बात सुनकर सब लोग ठहाका लगाते हुए घर के अंदर चल दिए हैं। (क्रमशः)


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