पैसों का पेड़
पैसों का पेड़
" माँ पैसे दो ना, चॉकलेट लूँगा " रवि अपनी माँ को तंग कर रहा था। माँ के पास पैसे नहीं थे तो कहाँ से देती। रवि के पिताजी कुछ काम नहीं करते थे जिसके कारण घर की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी। रवि छोटा बच्चा था, सबको चॉकलेट खाते देख उसका मन भी ललचा उठता था। रवि की जिद से परेशान होकर माँ बोली, "जा सीताफल के पेड़ को हिलाना उसी से गिरेंगे पैसे या फिर मेरे दाँत तोड़कर बेच दे।"
रवि पेड़ को हिलाने लगा उससे पैसे की जगह पके पके सीताफल
टपकने लगे, रवि खुश हो गया और वहीं बैठकर सीताफल खाने लगा।
अचानक उसके मन में ख्याल आया कि काश पैसों के पेड़ होते, कितना मजा आता सिक्के को उगा दो , और जब वो पेड़ बन जाये तो उससे पैसे तोड़ते जाओ।
यह बात उसके दिमाग में बैठ गई, उसको धीरे धीरे समझ में आने लगा कि उसके पिताजी काम नहीं करते इसलिए उसके घर में पैसे नहीं है, उसने तय किया कि वह बहुत मेहनत करके खूब पैसे कमाएगा।
अब वह माँ को तंग नहीं करता ,बल्कि पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाने लगा ,बारहवीं पास होने के बाद वह एन डी ए की परीक्षा उत्तीर्ण करके नौकरी करने लगा।
जब पहली तनख्वाह मिली तो रवि अपने बचपन के दिनों को याद करने लगा , उसे अपने माँ की कही बात और सीताफल का पेड़
बहुत याद आ रहा था।
उसे जान लिया पैसों के पेड़ मेहनत से उगते हैं, और आज उसका पेड़ बड़ा होकर फल दे रहा है।