पंचों राम राम
पंचों राम राम
एक पुराने पंडितजी थे हमारे, हरबंस उनका नाम था। वृद्ध हो गए थे। अब कुछ काम धाम होता नहीं था। वे हम बच्चों को कहानी सुनाते रहते थे। उनका कहानी सुनाने का तरीक़ा इतना अच्छा था कि हम बार बार उनसे कहानी सुनाने का आग्रह करते थे।
उनकी स्मृति आते ही सबसे पहले उनकी मूँछों का ध्यान आता है, जो बहुत बड़ी बड़ी झाड़ सी थीं। कहीं सफ़ेद कहीं कुछ काले बालों से खिचड़ी सी लगती थीं। जिनमें सफ़ेद बाल ही कुछ ज़्यादा थे। सिर पर छोटी सी पगड़ी बँधी रहती थी, घुटनों तक धोती रहती थी। दर्ज़ी का सिला बनियान पाकेट वाला पहनते थे, उसके ऊपर कभी कभी गाढ़े का कुरता डाल लेते थे। यही उनका पहनावा था। आवाज़ बुलंद थी, मुँह पोपला था। रंग गेहुंआ। कहानी सुनाने के लिये वे उकड़ूँ बैठ जाते, और हम सब बच्चे आसपास जमा हो जाते।
वे प्राय: नंगे पैर रहते थे। या कभी कभी पुराने स्टाइल का नागौरी जूता बाहर आने जाने में काम आता था।
उनकी सुनाई कहानी बरबस ही कभी कभी याद आ जाती है, तो उनकी कहानी सुनाने की विलक्षण चातुरी पर अभी भी हँसी आती है। कहानी कुछ ऐसे शुरू होती थी—
एक जुलाहों का गाँव था। सीधे सादे लोग थे। चरखे पर सूत कातते थे। और सूत की अंटी बनाकर बेचते थे, उसी से जीविका चलती थी। एक बार एक आदमी वहाँ नौकरी की खोज में आया। पर किसी ने उसे नया देख नौकरी नहीं दी।
तो वह आदमी पंचों के पास पहुँचा और बोला कि उसे नौकरी पर रखवा दें, वह सब काम करेगा। और जाते समय ख़ाली हाथ जाएगा ,हाथ में कुछ नहीं लेगा, और सब पंचों को हाथ जोड़कर प्रणाम करके बोलकर जाएगा। साथ ही कहा कि वह झूठ बिलकुल नहीं बोलता।
उसकी बात पर पंचों को विश्वास हो गया और उन्होंने उसे गाँव में रखवा दिया। कुछ दिनों तक उसने मेहनत से काम किया। सबका विश्वास अपने ऊपर जमा लिया।
फिर एक दिन उसने चोरी करने की ठानी। असल में वह चोर ही था और ठगने आया था।
उसने जुलाहों के घर घर जाकर काते हुए सूत की अंटियाँ उठाईं और अपने बदन पर लपेट लीं।
फिर बाहर जाकर खड़ा हुआ और चारों दिशाओं में व ऊपर बारी बारी से हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा “पंचों राम राम”। “पंचों राम राम”। इतना पॉंच बार कह कर बोलकर वह विदा हो लिया और वहाँ से रफ़ू चक्कर हो गया।
उसने झूठ भी नहीं बोला था, क्योंकि उसने हाथ में कुछ नहीं लिया था। हाथ ख़ाली थे। पर सामान भी चुरा लिया। सबको राम राम भी कर दी और सबका सूत लेकर चंपत भी हो गया।
साथ ही कहानी भी ख़त्म। जैसा सुननेवाले का भला वैसा ही कहने वाले का भला।