प्रेमपत्र एक अमानत
प्रेमपत्र एक अमानत
रीमा अंदर कुछ कामों में व्यस्त थी। तभी उसे बाहर से आवाजें आती सुनाई दी। देखने के लिए आखिर चल क्या रहा है रीमा झट से बाहर गई तो देखा छोटी देवरानी सुनैना के हाथ में एक बक्सा हैं और सासु मां उससे पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही हैं। अच्छी छीनाझपटी चल रही थी दोनों के बीच में। रीमा ने ध्यान से देखा अरे ये तो वही बक्सा जिसे सासुमां हमेशा अपने पास ताला लगाकर रखती हैं और चाबी भी सबसे छिपा कर रखती हैं। सासुमां को ऐसा करते देख एक बार सुनैना ने रीमा से पूछा भी, "भाभी!! क्या आपको पता है उस बक्से में सासुमां ने क्या छिपाकर रखा है?"रीमा बोली, सासुमां ने तो आज तक अपने गहने हो या कोई और कीमती चीज, मुझसे कभी नहीं छिपाई बल्कि खुद अलमारी की चाबी मेरे हाथ में देकर निकालने को बोल देती हैं परन्तु रही बात इस बक्से की तो सासुमां ने कभी बताया ही नहीं और मैंने कभी पूछने की जरूरत नहीं समझी। "
खैर रीमा तो इस बात को कब की भूल चुकी थी लेकिन सुनैना की उत्सुकता बढ़ती गई और वह मौका तलाशने लगी और आज वह जो चाहती थी उसे मिल भी गया। रीमा को देखते ही खुशी से बोली, भाभी!! देखो आज माँ का बक्सा मेरे हाथ लग गया, ताला भी नहीं लगा, आज तो मम्मी जी के सारे राज़ खुल कर रहेंगे, आइए भाभी देखें तो सही मां ने कौन सा खजाना छुपा कर रखा है इसमें। " एक बार तो रीमा को भी उत्सुकता हुई परन्तु फिर उसका ध्यान सासुमां की ओर गया जो पूरी ताकत से बक्सा वापिस पाने की नाकाम कोशिश कर रही थी और साथ साथ बक्सा लौटाने का आग्रह भी कर रही थी। उनकी हालत बिल्कुल रोने जैसे हो रही थी। रीमा से सासुमां की परेशानी देखी न गई और उसने सुनैना के हाथों से बक्सा लेकर पूरे सम्मान के साथ सासुमां को पकड़ाया और खुद सासुमां के लिए पानी लेने चली गई। जहां सुनैना कह रही थी भाभी!! आज इतना अच्छा मौका गंवा दिया आपने वहीं सासुमां की नजरों में रीमा के प्रति कृतज्ञता के भाव थे।
इस वाकये के बाद सासुमां पूरा दिन अपने कमरे में बंद रही। कुछ खाया पीया भी नहीं। रीमा को बड़ी चिंता होने लगी। शाम को सासुमां के दरवाजा खुलने की आवाज आई तो रीमा झट से उठकर बाहर गई तो देखा सासुमां अपने कमरे से निकल सीधा रसोई में गई। कुछ लिया और वापिस अपने कमरे में चली गई। रीमा को परेशानी होने लगी। जानने के लिए सासुमां के कमरे के बाहर छिपकर देखने लगी। सासुमां के हाथ में कुछ कागज थे जिन्हें वे जलाने जा रही थी और साथ में बहुत रो रही थी। रीमा से रहा न गया। झट से पास जाकर बोली, मां!! आप यह क्या कर रही हैं और ये कागज कैसे है?? सासुमां ने बताया, ये सिर्फ कागज नहीं प्रेम पत्र है जो कभी तुम्हारे ससुर जी ने मुझे लिखे थे, मेरे लिए ये हमेशा से अनमोल रहे और आज जब तुम्हारे ससुर जी इस दुनिया में नहीं है तो उनके लिखे ये पत्र ही मेरे जीने का सहारा है, जब कभी मन परेशान होता है तो इन्हें सीने से लगा लेती हैं और ये मुझे अपनेपन का अहसास दिलाते हैं, इनके साथ होने से मुझे लगता ही नहीं मैं कभी अकेली हूँ।
रीमा बोली, "फिर मां ये तो बहुत अनमोल है तो आप इसे यूं जलाने क्यों जा रही हो??"
सासुमां- बेटा!! ये हम पति पत्नी की निजी जिंदगी से जुड़े हैं। आज तो जैसे तैसे इन्हें सार्वजनिक होने से बचा लिया परन्तु अब मेरी उम्र हो रही हैं जिंदगी का कोई भरोसा नहीं तो फिर मेरे जाने के बाद इन्हें कौन बचायेगा। बस पूरा दिन यही सोच आज दिल पर पत्थर रखकर इन्हें अपने आप से अलग करने का निर्णय लिया लेकिन सच तो यह है इनमें मेरी जान बसी हैं। आज अपने आपसे अपनी जान अलग करने जा रही हूं।
इतने में बाहर खड़ी बातें सुन रही सुनैना बोली, "मुझे माफ कर दो, मां!! अनजाने में आपका दिल दुखाकर मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई लेकिन मां आज आपसे आपकी बहुओं का वायदा है आइंदा हम कभी इन्हें नहीं छेड़ेंगी और हां, आपको अपने जीते जी इनसे दूर होने की कोई आवश्यकता नहीं। इतने प्यार से सहेज कर रखी आपकी यादें अनमोल है। आपके जाने के बाद यह हमारे पास एक अमानत के तौर पर रहेंगी और आप जैसा चाहेंगी बिल्कुल वैसे ही इनका निष्कासन होगा। यह आपसे आपकी दोनों बहुओं का वायदा है। " रीमा ने भी सासुमां की हां में हां मिलाई और फिर दोनों बहुएं सासुमां के गले लग गई।
दोस्तों!!अक्सर हम सबने अपनी कुछ अनमोल यादों को सहेज कर रखा होता है लेकिन बढती उम्र के साथ अन्यथा एक साथी के चले जाने के बाद दूसरे साथी को भारी मन से इन यादों से जुदा होना पडता है। कारण एक ही है निजी जिन्दगी का सबके बीच सार्वजनिक होने का डर लेकिन हम चाहे तो हमारे अपनों के मन से इस डर को हमेशा के लिए मिटा सकते है बस एक भरोसा देकर उनकी निजी जिंदगी हमेशा निजी रहेंगी।