Ekta Rishabh

Abstract

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Ekta Rishabh

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परिवार

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तालियों की आवाज़ से पूरा हॉल गूंज उठा था.... इतने प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के स्वामी डॉक्टर विनोद के सम्मान दिवस का अवसर जो था "।


डॉक्टर विनोद के द्वारा समाज भवन में औरतों के सम्मान पे स्पीच देना था। दो दिन लगे थे स्पीच तैयार करने में ना जाने कितनी किताबें और इंटरनेट छान कर अच्छे अच्छे शब्दों की माला पिरो कर पूरी स्पीच तैयार की थी विनोद ने।जाना माना नाम था समाज में एक बहुत ही काबिल डॉक्टर और समाज के सेवा के लिये हर वक़्त तैनात डॉक्टर विनोद।"लोग तारीफ करते नहीं थकते कृपा के भाग्य की पति के रूप में विनोद को जो पाया था "।एक औरत के लिये इससे ज्यादा गर्व के कौन से पल हो सकते थे जब उसके पति का समाज में सम्मान हो।


"शाम के कपड़े हॉस्पिटल भिजवा देना कृपा आज जरूरी ऑपरेशन है वही से सीधा समाज भवन आऊंगा और तुम भी समय से आना याद है ना मेरा सम्मान होने वाला है "।

ठीक है ! कृपा ने धीमे से कहा और विनोद निकल गए हॉस्पिटल शाम को नीली सिल्क की सारी बालों का ढीला जुड़ा और हलकी लिपस्टिक लगा कृपा तैयार हो निकल गई भवन की तरफ।आज पैंतीस साल की उम्र में भी एक मासूमियत सी थी कृपा के चेहरे पे जो उसे बाकि सभी से अलग करती थी। समारोह शुरू हुआ.. आगे की पंक्ति में कृपा बैठी थी। सभी कृपा को बधाई दे रहे थे।विनोद ने अपना स्पीच शुरू किया, औरतों के अधिकार औरतों के सम्मान में विनोद ने ऐसे ऐसे शब्द कहें की हॉल तालियों से गूंज उठा और एक घृणा के भाव से कृपा का मन कसैला सा हो उठा।


एक एक शब्द कृपा के कानो में गर्म लावा सा प्रतीत हो रहा था। "जो व्यक्ति यहाँ भाषण दे रहा था वो तो कोई और ही था और जिस विनोद को कृपा जानती थी वो तो अपनी कमी को औरत पे डालने में विश्वास रखता था "।पहली नज़र का प्यार था कृपा और विनोद का,, इश्क अंधा होता है ये बात तो शादी के बाद समझ आया कृपा को,, सबने समझाया लेकिन सारे रिश्ते तोड़ विनोद से रिश्ता जोड़ लिया "।विनोद के प्यार में मायका भूल बैठी कृपा, ससुराल के चौखट से ही लौटा दिया गया दोनों को अपनी मर्जी की शादी की सजा तो मिलनी थी। विनोद की नौकरी लग गई और एक नया जीवन शुरू हुआ।


जल्दी ही सरकारी नौकरी लग गई विनोद की और किसी बात की कमी ना रही। समय के साथ बहुत प्रयास पे भी जब नये मेहमान की कोई आहट नहीं हुए तो कृपा डॉक्टर से मिली जरुरी टेस्ट हुए और सारे रिपोट्स भी सही आये कृपा के।"आप एक बार अपने पति को भी ले आती,, जब डॉक्टर ने कहा तो कृपा ने विनोद को कहा एक बार मिल लो डॉक्टर से विनोद "।"" मैं खुद डॉक्टर हूँ और दूसरे डॉक्टर से मिलता चलू अपनी कमी मुझे पे मत डालना कृपा ऐसा नहीं चलेगा बच्चे हो या ना हो मैं किसी डॉक्टर से नहीं मिलूंगा ""।


ऊँची आवाज़ कर विनोद ने अपने मन के डर को छिपा दिया जो चीख चीख कर कह रही थी, "कमी तुममें है विनोद, कृपा में नहीं "।

""खूब समझ रहा था अपनी कमी को विनोद... लेकिन स्वीकार करना उसके पुरुष के अहं पे ऊँगली उठने के बराबर होता फिर क्या था ,, अपनी इस कमी को कृपा पे बेवजह उतारने लगा विनोद और खुद को एक दायरे में समेट लिया कृपा ने ""।

विनोद का रूप ही बदल गया। जिस कृपा पे जान छिड़कता था अब उस कृपा को बात बात में डांट देता। दोनों के रिश्ते में दूरियां आ गई। सिर्फ एक सहेली थी रौशनी जिससे मिल कृपा मुस्कुराती।


""निकल क्यों नहीं जाती इस नर्क से रोशनी कहती तो बस हॅंस के रह जाती कृपा""।


समय अपनी रफ़्तार से बीत रहा था।"" घर पे बैठे बैठे मन नहीं लगता अगर तुम्हे ठीक लगे तो अनाथालय में बच्चों के साथ थोड़ा दिल बहला लू और रोशनी भी ज़िद कर रही थी ""। कृपा ने विनोद से पूछा तो विनोद से हाँ कर दी।

कृपा ने एक अनाथालय में पढ़ाना शुरू कर दिया। छोटे छोटे बच्चों के बीच जाने से कृपा को खुशी मिलती और समय भी बीत जाता।एक रोज़ सुबह सुबह अनाथालय से फ़ोन आया। पता चला एक नवजात बच्ची को कोई पालने में रख कर चला गया है।

फूलों सी नाजुक वो बच्ची गुलाबी पंखुड़ी से होंठ..,, जब कृपा ने उसे छुआ तो ऊँगली थाम ली उस बच्ची ने जैसे कह रही हो माँ बनोगी मेरी

बरसों की ममता आँखों से बह निकली और उस बच्ची को कलेजे से लगाये घर ले आयी।


"ये किसका बच्चा उठा लायी घर, अनाथालय में पढ़ाने की छूट दी थी मेरे घर को अनाथालय बनाने की नहीं "।

विनोद ने एक स्वर में अपना आदेश सुना दिया।


"प्लीज विनोद एक बार देखो तो सही इस बच्ची को तुम्हे भी प्यार हो जायेगा, भगवान ने इसे हमारे लिये भेजा है "।


"नहीं कृपा ! इसे वापस कर आओ मेरे घर में ये नहीं रहेगी।" क्रोधित हो विनोद ने कहा। हाथों में बच्ची थामे कृपा ने कहा फिर" मैं भी जाऊंगी लेकिन इसे वापस नहीं जाने दूंगी।"


विनोद के डांटने धमकाने का भी जब कृपा पे कोई असर नहीं हुआ तो अपनी प्रतिष्ठ के डर से विनोद ने बच्ची को रखने की इज़ाज़त दे दी और जल्दी ही सारी कागज़ी करवाई भी पूरी हो गई।बच्ची के आने से जैसे कृपा की खोई सारी खुशियाँ वापस आ गई। "मीठी नाम दिया बच्ची को.., मिठास बन के जो आयी थी जीवन में। अब सुबह होती तो मीठी से और रात होती तो मीठी से ही "।


नन्हे नन्हे क़दमों से मीठी चलने लगी। विनोद का व्यवहार काफ़ी बदलने लगा मीठी के आने के बाद। एक पुरूष के भीतर एक पिता तो बरसों से छिपा बैठा था लेकिन पुरुष के अहं के कारण वो बाहर नहीं आ रहा था।चुपके चुपके मीठी की बाल सुलभ हरकतों को देख मुस्कुरा देता विनोद भी। कृपा देखती तो ईश्वर से यही विनती करती विनोद इस बच्ची को अपना ले।


एक रोज़ मीठी को सुला कृपा नहाने चली गई.., उसके जाते ही मीठी जाग गई और अपनी माँ को ढूंढ़ते हुए कमरे से निकल गई, सीढ़ियों के पास खड़ी हो मीठी ने अपना कदम बढ़ाया ही था की विनोद ने दौड़ के उसे गोद में उठा लिया अचनाक से झटका लगने से मीठी रोने लगी आवाज़ सुन कृपा भाग आयी देखा तो, "विनोद के बाहों में मीठी थी और विनोद उसे सीने से लगाये चुप करा रहे थे। कृपा को देखते नाराज़ हो उठे।

"क्या करती हो तुम.. अभी मेरी बच्ची सीढ़ियों से गिर जाती कुछ हो जाता तो?"


"कृपा कुछ ना बोली बस आँखों से उस अनुपम दृश्य को अपलक देखती रही "।


"आज बाप बेटी का मिलन हुआ था मीठी को पापा और विनोद को उसकी बेटी मिल गई "।

कृपा को रोते देख विनोद ने कृपा को गले लगा लिया। आज तक के मेरे पापो की कोई सजा हो तो दे दो कृपा लेकिन मुझे माफ़ कर दो। मेरे झूठे अहं ने तुम्हे संतान सुख से दूर रखा। आज मीठी ने मुझ में पिता होने के अहसास को जगा दिया।


"अपनी कमी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं थी मुझमें कृपा लेकिन अब और नहीं अब मीठी ही मेरी बेटी है, हो सके तो माफ़ कर देना कृपा और तीनों गले लग गए "।

कृपा के एक सुन्दर परिवार का सपना आज पूरा हो गया था जिसमे सिर्फ प्यार ही प्यार था और आज सच में इस दुनियां की सबसे भाग्यशाली औरत बन गई थी कृपा।



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