हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy Fantasy Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy Fantasy Inspirational

सौतेला (भाग-18)

सौतेला (भाग-18)

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कहते हैं न कि पूत के लक्षण पालने में दिख जाते हैं उसी तरह वधू के लक्षण भी पगफेरों में ही दिख जाते हैं । कामिनी सुन्दर थी, हसीन थी, कातिल थी, मस्त थी मगर उसमें ममता नहीं थी । ममता विहीन स्त्री किसी ऐसे वृक्ष की तरह होती है जो खूब घना होता है , जिस पर बहुत सुन्दर सुंदर पुष्प खिलते हैं जो अपनी सुगंध से सबको महका सकता है लेकिन जिसमें फल नहीं लगते हैं । बिना फल के वृक्ष किस काम का ? ऐसा वृक्ष सबका आकर्षण का केन्द्र बिन्दु होने पर भी सबका प्रिय नहीं होता है । लोग ऐसे वृक्ष की छांव में विश्राम करते हैं , सुगंध का आनंद लेते हैं और फिर चले जाते हैं । वृक्ष वहीं का वहीं रह जाता है । 

नई मां ने दुनिया देखी थी । उसने अपने जीवन में न जाने कितने लोग देखे थे । उसे कामिनी की प्रकृति समझने में विलंब नहीं लगा । वह समझ गई कि अब यहां शिवम के लिए कोई स्थान नहीं है । उसे कामिनी से अधिक संपत का चरित्र परेशान कर रहा था । संपत कामिनी के सौन्दर्य का इतना दीवाना हो गया था कि शिवम के प्रति कामिनी का असंवेदनशील व्यवहार भी उसे स्वीकार्य था । वह सोचने लगी कि लोग सही तो कहते हैं "जब मां दूसरी आती है तो बाप तीसरा हो जाता है" । यद्यपि संपत अभी "तीसरा" नहीं हुआ था परन्तु उसे अजनबी होने में कितना समय लगेगा ? 

उसने दबे स्वर में शिवम के लिए संपत से चिंता व्यक्त की तो संपत ने कह दिया "कामिनी सब संभाल लेगी । उसे बच्चों से बहुत स्नेह है । वह अभी नई नई है । उसे कुछ वक्त दिया जाना चाहिए । वक्त सब कुछ ठीक कर देता है" । संपत को समझाना अब आसान नहीं था । एक लोभी मनुष्य को धन दौलत की निस्सारता को समझाना आसान है मगर एक ऐसे पुरुष को जिस पर सौन्दर्य का जादू छाया हुआ हो, "काम" की निस्सारता समझाना बहुत मुश्किल है । वह तो ठोकर लगने पर ही समझ सकता है । नई मां ने मन ही मन कहा कि ईश्वर को जो मंजूर होगा वही होगा , उसके सोचने से क्या होता है ? 

कामिनी ने हनीमून का प्लान बना रखा था । स्विट्जरलैंड से अच्छी और कौन सी जगह है दुनिया में ? लोग तो कभी काश्मीर को स्वर्ग से भी बढकर मानते थे मगर जेहादियों ने उसे नर्क से भी बदतर बना डाला । हनीमून में तो केवल "हनी" और "मून" ही जा सकते थे । वहां पर शिवम तो दाल भात में मूसलचंद ही सिद्ध होता । इसलिए तय हुआ कि शिवम नई मां के साथ ही रहेगा । इस निर्णय से सबसे अधिक प्रसन्नता सुमन को हुई थी । वह शिवम को गोदी में लेकर झूमने लगी । पर नई मां के ललाट पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं । पता नहीं क्यों उसे लगने लगा था कि अब शिवम शायद ही वापस जा पाये । उसे शिवम को पालने में कोई समस्या नहीं थी मगर मां बाप का स्थान कोई भी ले सकता है क्या ? 

नई मां , बाबूजी, सुमन और अनीता सब लोग अपने घर आ गये । उनके साथ में शिवम भी था । उन्हें तो शिवम के रूप में एक खिलौना मिल गया था । शिवम भी धीरे धीरे उन सबसे हिलमिल गया था । नई मां को वह "मां" कहने लगा था । मां शब्द का उच्चारण सुनकर नई मां भाव विभोर हो गई । बुढापे में एक छोटे से बच्चे के मुख से "मां" सुनना किसी वरदान से कम नहीं था । नई मां की ऊर्जा फिर से लौट आई और वह शिवम की मां की तरह उसकी देखभाल करने लगी । दौलत और सुमन को एक भतीजा मिल गया था । शिवम शीघ्र ही पूरे परिवार में घुलमिल गया था । 

संपत हनीमून मनाने के बाद उन सबसे मिलने आया था । कामिनी नहीं आई थी । उसने आने की आवश्यकता भी नहीं समझी थी । उसे संपत के घरवालों से घृणा सी थी । दूसरी पत्नी जब घर में आती है तो वह सबसे पहले अपने पति को अपने घरवालों से पृथक कर देती है । पत्नी की अधिनायकवादी प्रवृत्ति के समक्ष पति आत्मसमर्पण कर देता है । उसे पत्नी ही समस्त दुनिया लगने लगती है । घर का मुखिया अब पति नहीं रहता , दूसरी पत्नी बन जाती है । घर में एक अलिखित सा समझौता हो जाता है कि पति के संबंधी अब केवल औपचारिकता भर हैं । वे आभूषण की तरह सिर्फ दिखावटी अलंकार भर हैं जो किसी खास अवसर पर पहने जाते हैं । मायके वाले तो दैनंदिन वस्त्रों की तरह अपरिहार्य हैं । उनके बिना गुजारा कहां हो सकता है ? 

कामिनी ने आते ही अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया था । उसके हाव भाव , व्यवहार, आचरण सबमें परिलक्षित हो रहा था कि उसे न तो संपत के परिजनों में कोई रुचि है और न ही शिवम में । दूसरी पत्नी का पति उस घोड़े की तरह हो जाता है जो अपनी मालकिन के आगे सिर्फ दुम हिलाना जानता हो । उसे बस दो ही काम रहते हैं । एक हरा हरा चारा चरना और दूसरा दुम हिलाना । संपत का हरा चारा कामिनी का सौन्दर्य था । वह इसके लिए दुम तो क्या कुछ भी हिला सकता था । कामिनी ने संपत के साथ चलने से मना कर दिया । संपत के मन में अभी तक शिवम के लिए थोड़ा बहुत प्यार था इसलिए वह उससे मिलने आ गया था । 

संपत को देखकर शिवम खुश हो गया । वह दौड़कर संपत की गोदी में चढ गया । संपत ने भी उसे बांहों में भींच लिया और उसे ताबड़तोड़ चूमने लगा । शिवम संपत की गोदी में ऐसा लग रहा था जैसे आसमान की गोदी में एक नन्हा सा बादल उछलकूद कर रहा हो । शिवम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । जड़ें जब धरती से जुड़ती हैं तो वे और अधिक मजबूत होती हैं । उन दोनों कि मिलन को देखकर नई मां गदगद हो गई । मां का न सही बाप का प्यार तो मिल रहा है शिवम को । इसी में ही संतोष कर लिया नई मां ने । 

संपत वहां दो दिन रुका । उसने इन दो दिनों में देख लिया था कि शिवम यहां कितना खुश है । उसे जन्नत की हकीकत पता थी इसलिए वह चाहता था कि शिवम यहीं रह जाये । उसे कामिनी के बारे में सब कुछ पता चल गया था । शिवम को वहां ले जाना एक तरह से शिवम पर अत्याचार करना था । पर यह बात वह अपने मुंह से नहीं कहना चाहता था । पुरुष की स्थिति विवाह के पश्चात बड़ी विचित्र हो जाती है । पत्नी अपने पति के माता पिता को साथ रखना नहीं चाहती , यह बात वह साफ साफ अपने पति को कह देती है परन्तु यही बात पति अपने माता पिता से नहीं कह पाता । समझदार माता पिता अपने पुत्र की दुविधा भांपकर स्वयं ही कह देते हैं कि वे अलग ही रहेंगे । इसी में परिवार की प्रतिष्ठा बनी रहती है । 

नई मां संपत की दुविधा भांप गई और कहने लगी "शिवम तो हम लोगों से इतना घुलमिल गया है कि वह एक मिनट भी हमसे अलग नहीं रह सकता है । हम भी उसे एक मिनट भी अलग नहीं कर सकते हैं । तुम शिवम को यहीं रहने दो । सबके बीच वह आसानी से पल जाएगा । उसकी ओर से तुम कोई चिंता मत करना बेटा" । 

संपत की जान में जान आ गई । शिवम की चिंता तो दूर हो गई । अब कामिनी को भी विलेन से नायिका जो बनाना है । इसके लिए संपत बोला "कामिनी की तो बहुत इच्छा थी यहां आने की । उसने तो अपनी अटैची भी लगा ली थी परन्तु उसे अचानक बुखार आ गया इसलिए वह आ नहीं पाई । उसने आप सबसे क्षमा मांगी है और यह छोटा सा गिफ्ट भी भेजा है । कहते कहते संपत ने अपनी जेब से एक गिफ्ट निकाला । वह एक सोने का कंगन था जो नई मां के लिए था । संपत जब अपने घर से चला था तब वह कुछ गिफ्ट ले जाना चाहता था मगर कामिनी ने मना कर दिया था । इस कारण उसने पहले बाजार से यह कंगन खरीदा और फिर यहां आया । 

नई मां को यह आभास हो गया था कि संपत यह कंगन कामिनी से पूछे बिना ही लाया है । वह भलीभांति जानती थी कि जब कभी कामिनी को इस बात का पता चलेगा तब वह कितना क्लेश करेगी ? अब उसकी उम्र सोने के कंगन पहनने की है क्या ? उसने कंगन वापस लौटाते हुए कहा "ये कंगन बहू को मेरी ओर से गिफ्ट कर देना । बहू को गिफ्ट देने का उत्तरदायित्व मेरा भी तो बनता है । जा, इसे मेरी बहू को दे देना" । समझदार लोग किसी भी बात को बिगड़ने नहीं देते हैं । बात बिगड़ने से पहले ही वे बात संभाल लेते हैं । नई मां ने संपत की समस्त दुविधाऐं समाप्त कर दीं थीं । वह खुशी खुशी वापस लौट आया । शिवम अब दादी की आंखों का तारा बन गया था । 

क्रमशः 


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