हरि शंकर गोयल

Tragedy

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हरि शंकर गोयल

Tragedy

सुंदरता जो अभिशाप बन गई

सुंदरता जो अभिशाप बन गई

16 mins
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इस कहानी में "चिराग तले अंधेरा" मुहावरे का प्रयोग किया गया है । 


"कविता, मेरी टाई नहीं मिल रही है" संजय ने लगभग चीखते हुए कहा 

"वहीं तो रखी है , जरा ढंग से देखो । ध्यान तो मोबाइल में रहता है आपका" । कविता ने रसोई से ही जवाब दे दिया । 

"अरे यार, नहीं मिल रही है तभी तो कह रहा हूं । यहां आकर ढूंढ दो न प्लीज" संजय ने अपने शब्दों में मिसरी घोलते हुए कहा 

"बहू, जा पहले उसकी टाई ढूंढ दे तब तक नाश्ता मैं बना देती हूं" । संजय की मम्मी ने समाधान सुझाया । 

"आप रहने दो मम्मी, मैंने गैस बंद कर दी है । टाई ढूंढकर अभी आती हूं" कहकर कविता रसोई से भागी और फटाफट कमरे में पहुंच गई । जैसे ही वह कमरे में गई संजय ने उसे बांहों में भर लिया और चुम्बनों की बौछार कर दी । उसने इसीलिए तो कविता को वहां बुलाया था । 

"हटो भी, ये क्या शरारत है ? अभी भी बच्चों की तरह व्यवहार करते हो आप । मम्मी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी ? जरा भी खयाल नहीं है आपको ? चलो, मुझे टाई ढूंढने दो" कविता संजय को परे धकेल कर टाई ढूंढने लगी । संजय ने उसे फिर से अपनी बांहों में जकड़ लिया और सीने से लगा लिया । 

"आपको ऑफिस नहीं जाना है क्या जो इस तरह मचल रहे हो ? रात को पेट नहीं भरा था क्या" ? कविता ने अपने मदभरे नयनों से मय की बरसात करते हुए कहा 

"अरे जानेमन , आपसे कभी पेट भरता है क्या ? आप हैं ही इतनी सुन्दर कि जी करता है कि आपसे चौबीसों घंटे लिपटा रहूं" ।

"अब जाओ भी , मुझे घर का काम भी तो करना है । नाश्ता तवे पर ही पड़ा हुआ है । अब जाओ , मैं टाई ढूंढती हूं अभी" कविता स्वयं को छुड़ाने की कोशिश करने लगी 

"आज ऑफिस जाने का मन नहीं कर रहा है । बस जी करता है कि" 

"क्या जी करता है ? दो दो बच्चों के पापा बन गये हो और अभी दिन में ही भी जी कर रहा है । जाने दो न , मम्मी क्या सोचेंगी" ? 

"मम्मी सोचेंगी कि दोनों में कितना प्यार है । चलो , आओ प्यार करते हैं" । संजय कविता को बैड की ओर चलने का संकेत करने लगा । 

संजय के खतरनाक इरादे भांपकर कविता पूरी ताकत लगाकर उससे अलग हो गई और भागकर कमरे से बाहर चली गई तथा जल्दी से किचन में जाकर नाश्ता बनाने लगी । 

"मिल गई संजय की टाई" ? संजय की मम्मी ने कविता से पूछा 

"जी .. मिल गई" । अपनी हंसी को होठों में दबाते हुए कविता ने धीरे से कहा । 


थोड़ी देर में संजय भी नाश्ते की टेबल पर आ गया । उसे बिना टाई के देखकर उसकी मां बोली "अरे कविता, तू तो कह रही थी कि टाई मिल गई" ? 

कविता की चोरी पकड़ में आ गई थी । वह हकलाते हुए बोली "जी मम्मी वो ..." 


संजय ने मम्मी की ओर देखा और वहां पर एक प्यारी सी शरारती मुस्कान देखकर वह जल्दी से भाग खड़ा हुआ । तब मम्मी ने कविता से कहा "संजय के पापा भी ऐसा ही करते थे । किसी भी बहाने से अपने पास बुलाते थे । तुम दोनों में ऐसा ही प्रेम बना रहे युगों युगों तक । मेरा बेटा बहुत चाहता है तुझे । तू है ही इतनी सुन्दर कि कभी कभी तो डर लगता है" उन्होंने बात अधूरी छोड़ दी थी 

"किस बात से डर लगता है मम्मी" ? 

"यही कि किसी की नजर ना लग जाये तुझे । जरा काला टीका लगा के रखा कर" । मम्मी ने कविता पर लाड़ की बारिश कर दी । 


सासूजी की प्रशंसा से कविता खुश हो गई । अपनी सुंदरता पर उसे भी गुमान था । भगवान ने उसे बनाया ही फुरसत से था । हुस्न और गरूर साथ साथ रहते हैं मगर कविता आत्म मुग्धा थी अहंकारी नहीं । वह फटाफट काम निपटाने लगी । उसे अपनी छोटी बेटी को बस स्टॉप से घर भी तो लाना था । वह एक्टिवा लेकर उसे लेने चल दी । 


बस स्टॉप पर माला पहले से ही खड़ी थी । कविता को देखकर बोली "आ गई मिसेज यूनिवर्स" ? उसकी आंखों में शरारत भरी पड़ी थी । माला उसे ऐसे ही छेड़ती थी । माला की बेटी भी उसी बस से उतरती थी इसलिए वह भी उसे लेने यहां आती थी । उन दोनों की मुलाकात इसी बस स्टॉप पर हुई थी । महिलाऐं बातों बातों में सहेलियां बन जाती हैं और अगर दोनों महिलाऐं सुन्दर हों तो फिर बात ही क्या है । कविता टाइम पास करने के लिए बोली 

"दी, आपने कितनी सुंदर साड़ी पहन रखी है । कहां से ली है ये" ? 

"ये साड़ी आपको पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद । ये साड़ी हमारी ही दुकान की है" । माला ने हंसते हुए कहा 

"पर आपकी तो दुकान किसी और चीज की थी ना" ? 

"हां, पहले थी , अब तो साड़ियों की है । पिछले 20-25 दिनों से ही खोली है । बहुत अच्छी अच्छी वैराइटी की साड़ियां हैं हमारे पास । एक दिन तुम भी आना दुकान पर । कहो तो आज ही चलें" ? माला ने आग्रह पूर्वक कहा । 


माला के आग्रह को कविता टाल नहीं सकी और दोनों सहेलियां अपनी अपनी एक्टिवा पे अपनी अपनी बेटियों को लेकर माला की दुकान पर आ गई । माला के पति महेश ने बहुत शानदार तरीके से कविता का स्वागत किया 

"आज तो हमारी दुकान पवित्र हो गई" 

"वो कैसे" ? कविता ने मुस्कुराते हुए कहा 

"एक 'परी' जो हमारी दुकान पर आई है" महेश ने आंखों से प्रशंसा करते हुए कहा 

"जी, आप भी हमें चढा रहे हैं । माला दी तो हमेशा चढाती रहती हैं । इतना मत चढाइये हमें कि हम धड़ाम से नीचे गिर पड़ें और लहूलुहान हो जायें" कविता के अंग अंग से सौन्दर्य निखर निखर कर बाहर आ रहा था । 

"नहीं जी, हम आपको चढा नहीं रहे हैं, सच कह रहे हैं । वाकई, आप बहुत सुंदर हैं" । 


माला ने बीच में टोकते हुए कहा "ये बातें तो करते रहिएगा, मुझे थोड़ा जल्दी जाना है इसलिए मुझे माफ करना कविता जी" । उसने अपने पति महेश की ओर देखकर कहा "देखते हैं कि आप कविता जी को कितनी साड़ी देते हैं" ? और वह मुस्कुराते हुए चल दी । 

"कैसी साड़ी दिखाऊं ? वैसे तो आप जो भी कुछ पहनेंगी, वह सब खूब जमेगा । आखिर हुस्न परी जो हैं आप । फिर भी मैं आपको लेटेस्ट डिजाइन की साड़ी दिखाता हूं । आप पसंद कर लीजिएगा" । 


महेश कविता को साड़ी दिखाने में व्यस्त हो गया । कविता ने दो साड़ी पसंद कर लीं और पैसे देने लगी । 

"इन्हें रहने दीजिए । आप हमारी दुकान पर आईं, इतना ही बहुत है । आपके आने से हमारी दुकान की गुडविल और बढ गई, यही इनकी कीमत है । अभी इन साड़ियों में फॉल लगेगी तो परसों आकर इन्हें ले जाना" । 

"नहीं भाईसाहब, पैसे तो लेने ही पड़ेंगे आपको नहीं तो मैं ये साड़ियां नहीं लूंगी, हां" । कविता महेश को पैसे पकड़ाते हुए बोली 

"आप इतना कह रही हैं तो मैं ले लेता हूं । साड़ियां परसों तक तैयार हो जाऐंगी" । महेश खीसें निपोरता हुआ बोला । कविता अपने घर आ गई । 


घर पर मम्मी ने पूछा कि इतनी देर कैसे हो गई तो कविता ने बता दिया कि उसकी सहेली माला अपनी दुकान पर साड़ी दिलवाने ले गई थी इसलिए देर हो गई । माला ने खाना बनाया और सबने साथ मिलकर खाया । लंच में संजय भी घर आ जाता था । खाना खाते समय कविता संजय से दूर बैठती थी । लंच के दौरान संजय कविता के कभी चिकोटी काटता था तो कभी उसे पैर से छूता था । कविता उसे आंखों से बरजती थी तो वह मुस्कुरा कर रह जाता था । मम्मी सब कुछ देख कर भी अनजान बनी रहती थी । बड़ी बेटी 6 साल की हो गई थी इसलिए कभी कभी वह पापा को टोक देती थी "पापा प्लीज, मम्मा को तंग मत करो ना" उसकी इस बात से संजय झेंप जाया करता था और कविता खुलकर हंस पड़ती थी । 


जिंदगी फर्राटे से दौड़ रही थी । घर स्वर्ग बना हुआ था और कविता अप्सरा की तरह अपनी मोहक अदाओं से पूरे घर को श्रंगार रस से ओतप्रोत कर रही थी । 


एक दिन कविता अपनी छोटी बेटी को लेने के लिए बस स्टॉप पर गई । करीब एक घंटे बाद माला उनकी छोटी बेटी को लेकर संजय के घर आई तो मम्मी चौंकी 

"अरे, कविता कहां रह गई" ? 

"वो तो आज वहां पर आई ही नहीं इसीलिए तो मैं बिटिया को लेकर आई हूं" माला चौंकते हुए बोली 

"हो सकता है कि किसी और काम में लग गई होगी । आ जायेगी थोड़ी देर में । आपका बहुत बहुत आभार जो आप छुटकी को ले आईं" 

" आप मुझे शर्मिन्दा कर रही हैं मां जी, ये तो मेरा फर्ज था" माला चली गई । 

मम्मी ने कविता को फोन किया तो उसका मोबाइल वहीं पर बोल पड़ा । 

"अरे, कविता मोबाइल भी यहीं छोड़ गई ! " मम्मी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं । उन्होंने अपने बेटे संजय को फोन पर बताया तो संजय ने कहा "बाजार चली गई होगी , आ जायेगी थोड़ी देर में" । 


संजय जब ऑफिस से घर आया तब तक कविता वापस नहीं लौटी थी । अब सबको चिन्ता हो गई थी । संजय पुलिस थाने में जाकर रिपोर्ट लिखा आया । पुलिस ऐसी छोटी मोटी घटनाओं पर कहां ध्यान देती है ? संजय ने एक दो मीडिया के सामने कविता के गायब होने की बात रखी तो यह समाचार राष्ट्रीय न्यूज चैनल्स पर चलने लगा । जब पुलिस ने देखा कि यह समाचार राष्ट्रीय चैनलों पर चल रहा है तो पुलिस ने संजय और उसकी मां को थाने पर बुला लिया और रात भर उनसे पूछताछ की गई । सुबह जाकर उन्हें छोड़ा । 


संजय और उसकी मम्मी इस बात से बहुत दुखी थे कि उनके परिवार की बहू कविता गायब हुई है और उन्हीं पर पुलिस शक कर रही है । उन्हें नाजायज ढंग से रात भर थाने में बिठाकर उनसे पूछताछ की गई थी । घर पर दोनों बच्चियां अकेली रह गई थीं । संजय ने मीडिया पर्सन्स को बुलाकर अपना सारा गुस्सा उसमें उतारा तो सभी मीडिया पर्सन्स ने पुलिस की नाक में दम कर दिया । जनता में भी पुलिस को लेकर आक्रोश पैदा हो रहा था । कविता को गायब हुए 24 घंटे हो गये थे मगर अब तक उसका कोई सुराग हाथ नहीं लगा था । 


रात दस बजे अचानक संजय के मोबाइल पर फोन आया 

"हम जूनी इंदौर थाने से बोल रहे हैं । कविता मैम का कुछ पता चला क्या" ? 

"ये प्रश्न तो मुझे करना चाहिए था । क्या कर रही है आपकी पुलिस" ? संजय गुस्से से चिल्लाया । 

"देखिए श्रीमान, किसी महिला की एक लावारिस लाश बरामद हुई है । आप मोर्चरी आकर उसकी शिनाख्त कर लें , क्या पता वह लाश कविता मैम की ही हो" उधर से फोन कट गया । 


संजय को काटो तो खून नहीं । कविता की लाश ? "क्या मेरी कविता नहीं रही ? ये क्या हो गया ? एक दिन में ही दुनिया बदल गई" । वह दहाड़ मार कर रो पड़ा । दोनों बच्चियां भी उससे लिपट कर रोने लगी । मां बेचारी इस वज्रपात को कैसे सहन कर पाती ? वह इस आघात से बेहोश हो गई । तब संजय को समझ में आया कि अगर वह हिम्मत हारेगा तो इन अबोध बच्चियों और वृद्ध मां को कैसे संभाल पायेगा । उसने खुद को मजबूत किया और मां को संभाला । एक रिश्तेदार को घर बुलाया और बच्चियों को उसके हवाले कर कविता की लाश की पहचान करने के लिए मोर्चरी आ गया । 


मोर्चरी में एक औरत की अधजली लाश पड़ी हुई थी । उसे देखकर संजय का दिल दहल गया । उसने कभी लाश ही नहीं देखी थी जबकि यह तो अधजली लाश थी । चेहरा पूरा जल गया था इसलिए चेहरे से उसे पहचानना संभव नहीं था । कपड़े भी लगभग जलकर उसके जिस्म से चिपक गये थे । उसके हाथ पर एक टैटू बना हुआ था । संजय ने उस टैटू को देखा तो यह टैटू वैसा ही था जैसा कविता के हाथ पर बना हुआ था । पर उसे लगा कि जगह थोड़ी ऊपर नीचे है , पर उसे कन्फर्म नहीं था कि कौन सी जगह पर था । संशय होने के बावजूद उसने कह दिया कि लाश कविता की ही है । वह वहीं बैठकर फूट फूटकर रोने लगा । 


जब वह लाश को लेकर घर आया तो मम्मी ने कह दिया कि वह लाश कविता की नहीं है । कविता के बांयें हाथ में टैटू था जबकि इस लाश के दांये हाथ में टैटू है । इससे संजय के मन में थोड़ी उम्मीद बंध गई कि हो सकता है कविता अभी जिंदा हो ? वह दिन बहुत बुरा गुजरा था उन सबका । 


अगले दिन थाने से फिर फोन आया कि एक लावारिस लाश बरामद हुई है । उसके छ: टुकड़े हैं । उसकी पहचान करनी है । इस बार संजय अपनी मम्मी को साथ ले गया । मोर्चरी में उस लाश के छ: टुकड़े रखे थे जिन्हें जोड़कर एक साथ रख दिया गया था । लाश पूरी नग्न थी । संजय और उसकी मम्मी ने उसकी शिनाख्त कर ली थी । वह लाश कविता की ही थी । संजय और उसकी मम्मी दोनों टूट गये थे । आखिरी उम्मीद भी जाती रही । लाश का पोस्ट मार्टम किया गया । कविता के साथ दुष्कर्म होने का कोई साक्ष्य नहीं था । किसी धारदार हथियार से उसके छ : टुकड़े किये गये थे और दो बोरों में भरकर एक नाले में फेंक दिया गया था । 


पूरे इन्दौर शहर में आक्रोश उत्पन्न हो गया । जब कविता की लाश अंतिम संस्कार के लिये शमशान में ले जाई जा रही थी तब आक्रोशित लोगों ने बीच चौराहे पर लाश को रख दिया और वहीं धरने पर बैठ गये । पुलिस के आला अधिकारियों को मौके पर आना पड़ा और कातिलों को शीघ्र पकड़ने का आश्वासन देना पड़ा । 


अब पुलिस की परीक्षा की घड़ी आ गई थी । एक आई जी रैंक का अधिकारी इसी केस के लिए लगा दिया गया । उसने इंदौर की समस्त पुलिस को इस केस को हल करने में लगा दिया । अलग अलग टीमें बनाई गई । एक टीम मोबाइल फोन और कॉल डिटेल्स के लिए, एक टीम लाश के डी एन ए और उससे जुड़ी दूसरी चीजों के लिए, तीसरी टीम जहां लाश बरामद हुई उस जगह की जांच के लिए और चौथी टीम सी सी टी वी की जांच के लिए बना दी गई । 


सभी टीमों ने सघन जांच की मगर कुछ भी "क्लू" नहीं मिला । ना कोई संदिग्ध नजर आया और न हत्या करने का मकसद पता चल पाया । संजय के परिवार, उसके दोस्त, कविता के दोस्त सभी से पूछताछ की गई मगर वही ढाक के तीन पात रहे । पुलिस का ध्यान अभी तक कविता की एक्टिवा की तरफ नहीं गया था । पूरे शहर को छान मारा मगर एक्टिवा की जांच ही नहीं की उन्होंने । इसीलिए तो कहते हैं "चिराग तले अंधेरा" । 


संजय ने पुलिस का ध्यान इस ओर दिलाया तो कविता की एक्टिवा की तलाश प्रारंभ हुई । वह एक पार्किंग स्टैंड पर पार्क मिली । अब प्रश्न यह था कि वह वहां कैसे पहुंची ? कौन लेकर आया वहां ? पार्किंग स्टैंड के मालिक और स्टॉफ से कड़ी पूछताछ की गई । उन्हों कविता का फोटो देखकर इतना तो बता दिया कि यह औरत यहां नहीं आई थी । फिर कौन लाया उसे ? यह अनसुलझी पहेली थी । चेहरा किसी को याद नहीं आ रहा था । कविता और संजय की जान पहचान के सभी लोगों के फोटो दिखाये गये मगर उन्होंने मना कर दिया । 


एक दिन मम्मी ने पुलिस को बताया "कविता ने एक साड़ी खरीदी थी । उसकी फॉल लगाने के लिए वह साड़ी उसी दुकानदार को दे आई थी । जिस दिन कविता गायब हुई थी उस दिन उसे वह साड़ी लानी थी । उसके बाद कविता गायब हो गई थी । साड़ी का बिल तलाशा गया मगर वह नहीं मिला । 


अब पुलिस को एक क्लू मिल गया था । उसने इंदौर के सभी साड़ी विक्रेताओं के यहां से कविता के नाम के बिल की जांच की तो उस तिथि को ऐसा कोई बिल नहीं मिला । उस तिथि के तीन चार दिन पहले के बिलों की जांच की गई तो तीन बिल मिले पर उन बिलों की कविता कोई और थी । गुत्थी उलझती जा रही थी । तब पुलिस ने सी सी टी वी कैमरे खंगाले । कविता बस स्टॉप की ओर गई थी । उस रास्ते पर जितने भी सी सी टीवी थे सब चैक कर लिये , उनसे पता चला कि कविता उधर गई ही नहीं थी । 


उसके बाद कविता के घर से चारों ओर जाने वाले रास्तों के सीसीटीवी खंगाले गये तब एक सीसीटीवी में वह नजर आई । उसी रास्ते पर एक और सीसीटीवी में भी वह नजर आई । मगर उस रास्ते पर वह कहां गई होगी, यह समझ में नहीं आया । पुलिस ने पूरे इंदौर में मुनादी करा दी कि कविता के बारे में कोई भी सूचना देने वाले को 25000 रुपए का इनाम दिया जायेगा । 


और तो कोई सूचना पुलिस को नहीं मिली मगर एक दुकानदार ने पुलिस को यह कहा कि वारदात वाली तिथि की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग एक व्यक्ति मांग रहा था । पुलिस ने उस व्यक्ति का नाम पता पूछा तो वह महेश निकला । महेश को लेकर पुलिस पार्किंग स्टैंड गई तो पार्किंग वाले ने उसे पहचान लिया और एक्टिवा को लाने वाला व्यक्ति बता दिया उसे । अब महेश संदेह के घेरे में आ गया । पुलिस ने उसे थाने बुलाकर कड़ी पूछताछ की मगर उसने कविता को पहचानने से ही इंकार कर दिया । 


इधर महेश को थाने बिठाकर पूछताछ चल रही थी कि एक टीम उसके घर की तलाशी लेने पहुंची । जब माला ने कविता का फोटो देखा तो उसने सच सच बता दिया कि वह कविता को साड़ी दिलवाने उसकी दुकान पर लाई थी । मगर वह दुकान उस घटना के अगले ही दिन बंद हो गई थी । यह बड़ा आश्चर्य जनक था कि साड़ी की दुकान महज 20-25 दिन ही खुली रहे और जिस दिन कविता गायब होती है उसके अगले दिन वह दुकान ही बंद हो जाये । कुछ न कुछ तो बात है । कोई तो राज है । 


महेश की जमकर "खातिरदारी" की गई तब जाकर वह टूटा । महेश ने बताया "पहली बार उसने कविता को उस बस स्टॉप पर देखा था जहां से वह अपनी बेटी को एक्टिवा पर लेकर जाती थी । उसकी सुंदरता देखकर वह उस पर रीझ गया । वह उसे दूर से रोज देखने लगा । एक दिन माला को कविता से बात करते देखकर वह जान गया कि कविता और माला एक दूसरे से परिचित हैं । वह तब से ही उसे पाने के लिए योजना बनाने लगा । एक दिन उसके दिमाग में आया कि अगर वह साडियों की दुकान खोल ले तो कभी न कभी कविता उसकी दुकान पर आयेगी ही । फिर तो वह उसे स्थाई ग्राहक बना लेगा और पटा भी लेगा । इसलिए उसने अपनी योजना के अनुसार साड़ियों की दुकान खोल ली । 


एक दिन माला उसे दुकान पर ले भी आई थी । उसने दो साड़ी पसंद भी कर ली थी । फॉल के बहाने से वह उसे फिर से बुलाना चाहता था और अकेले में मिलना चाहता था । जब कविता साड़ी लेने आई तब उसने यह कह दिया कि साड़ी अभी आई नहीं है अगर बुरा न मानें तो साड़ी पास की बिल्डिंग में कारीगर के पास है , जाकर ले आते हैं । 


दोबारा आने से बचने के लिए कविता राजी हो गई और दोनों उस बिल्डिंग में आ गये । दरअसल यह महेश की योजना का हिस्सा थी । उस बिल्डिंग में उसने एक फ्लैट किराये पर ले रखा था शायद इसी अवसर के लिए । जब वह कविता को फ्लैट में लाया तब उसने उसे बांहों में भर लिया । कविता गुस्सा हो गई और उसने उसके गाल पर एक चांटा जड़ दिया । महेश तो बेशर्म आदमी था और वह किसी भी कीमत पर कविता को पाना चाहता था । उसने कविता को साम दाम दंड भेद हर तरह से अपनी ओर आकर्षित करना चाहा मगर वह टस से मस नहीं हुई तब उसे मारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था उसके पास । 


उसने एक रॉड से उसके सिर पर प्रहार किया जिससे वह गिर गई तब उस पर तीन चार वार और किये । वह मर चुकी थी । तब एक छुरे से उसके छ: टुकड़े किये और दो बोरों में डाल दिया । पहले एक्टिवा को पार्किंग में लगाया फिर रात में लाश को ठिकाने लगा दिया । 


कविता का क्या कसूर था ? ज्यादा सुंदरता ही उसके लिए उसकी मौत का कारण बन गई । क्या ऐसे में कविता, संजय या किसी का कोई दोष था ? हां, अगर दोषी था कोई तो वह उसकी अतिशय सुंदरता ही थी जो कविता के लिए एक "अभिशाप" बन गई थी । कविता का पूरा परिवार बिखर गया था । 



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