Vikram Singh

Drama Romance Inspirational

4.5  

Vikram Singh

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तोता मैना सनम बेवफा भाग-2

तोता मैना सनम बेवफा भाग-2

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Kahani tota maina ki karma says

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एक दिन…।

पार्वती ने राहुल से फैसला करने का निश्चय किया।

वह और राहुल कॉलेज के पास ही एक एकान्त स्थान पर बैठे थे। राहुल पार्वती के बालों से खेल रहा था।

‘‘राहुल ।” पार्वती ने धीमी आवाज में कहा।

“कहो पार्वती, क्या बात है?”

“तुम मुझे यह बताओ कि तुम मुझसे शादी कर रहे हो या नहीं? मैं अब इस प्रकार के जीवन से तंग आ गयी हूं।’ पार्वती के स्वर में धीमा आवेश था।

“शादी भी कर लेंगे, क्यों चिन्ता कर रही हो?”

“नहीं।” उसने कहा-“साफ-साफ बताओ।’

‘‘पार्वती।”

“हु।”

“मैंने अपने पिताजी को पत्र लिखा था। राहुल ने कहा–”उन्होंने लिखा है। कि हमारी होने वाली बहू को हमें पहले दिखाओ तब हम कोई फैसला करेंगे।”

“और अगर उन्होंने इन्कार कर दिया तो…?”

“अगर इन्कार कर दिया तो…।’ राहुल ने कहा-“हम भाग चलेंगे और विवाह कर लेंगे।”

‘‘अपने पिताजी के पास अब कब चलोगे तुम…?”

‘‘कल चलें ।”

“ठीक है, कल चलो।”।

‘‘कल तुम सवेरे तैयार होकर आ जाना।”

और दूसरे दिन पार्वती तैयार होकर आ गयी। दोनों चल दिए। स्टेशन पर आकर राहुल ने दो टिकट खरीद लिए। ट्रेन आयी और वे सवार हो गए।

पार्वती राहुल के साथ जा रही थी, लेकिन उसकी मनःस्थिति बड़ी खराब थी। वह बार-बार विचारों में खो जाती थी। बार-बार यह सोचती थी कि यदि वह समय से न लौट पायी तो उसके माता-पिता क्या सोचेंगे? उसके न पहुंचने पर उनकी क्या हालत होगी?

इधर पार्वती के विचार दौड़ते रहे और उधर ट्रेन दौड़ती रही। फिर एक स्टेशन पर राहुल और पार्वती उतर गए। स्टेशन से बाहर निकलकर दोनों रिक्शे पर सवार होकर चल दिए। कुछ देर चलते रहने के बाद रिक्शा राहुल के संकेत पर एक स्थान पर रुक गयी।

रिक्शा का किराया देकर दोनों एक मकान की सीढ़ियां चढ़ने लगे। वे दूसरी मंजिल पर पहुंच गए।

वहां एक औरत थी। वह पार्वती को अपने साथ लेकर अन्दर चली गयी।

कुछ देर बाद वह औरत वापस आयी। उस औरत ने राहुल के हाथ में सौ-सौ के नोटों की तीन गड्डियां रख दीं। राहुल नोटों की गड्डियों को लेकर मुस्कराता हुआ चल दिया। वास्तव में राहुल वेश्याओं का दलाल था जो भोली-भाली युवतियों को फंसाकर लाता था और उन्हें बेचकर चला जाता था।

शाम तक पार्वती को कुछ पता नहीं चला। उसने एक-दो बार पूछा–“राहुल कहां है?”

उसे बताया गया कि वह शाम को आएगा। बाजार गया है। शाम भी हो गयी मगर राहुल नहीं आया। पार्वती को लगा कि वह किसी जाल में फंस गयी है। घर पर उसके माता-पिता परेशान हो रहे होंगे। मगर अब हो क्या सकता था? काफी रात हो गयी, मगर राहुल का कहीं कुछ अता-पता नहीं था।

जैसे-तैसे रात बीतती जा रही थी।


उस बाजार में संगीत बजने लगा। नाच-गानों की आवाज आने लगी। अब पार्वती सब कुछ समझ गई थी। राहुल उसे प्यार के जाल में फंसा कर इस कोठे पर बेच गया है। वह फूट-फूट कर रोना चाहती थी, मगर अब उसके आंसू भी उसे नहीं बचा पाएंगे।

उस समय उसकी क्या स्थिति थी, बस वही जानती थी। वह किसी तरह से वहां से निकल भागना चाहती थी। वह एक बार उस बेवफा राहुल से मिलना चाहती थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आयी।

बाहर कई आदमी बैठे थे और वह औरत उनसे बात कर रही थी। उसने एक बार पार्वती की ओर संकेत किया। अब उसे कोई शक न रह गया था।

तब…।।

पावती ने अब अपनी इज्जत बचाने के लिए अपनी जान पर खेल जान का निश्चय किया। अपनी पूरी ताकत लगाकर वह वहां उपस्थित लोगों की परवाह किए बिना सीढ़ियों की ओर तेजी से दौड़ी।

उस कोठे की मालिकिन और वहां उपस्थिति सब लोग एक पल के लिए हक्के-बक्के से देखते रह गए। एका-एक उनकी बात समझ में ही नहीं आयी कि वे क्या करें और क्या न करें? उस कोठे की मालिकिन रत्ना बाई को इस बात की स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि पार्वती इस प्रकार की हरकत भी कर सकती है।

उसने फौरन चीखकर अपने दलालों को पुकारा और कहा-“देखो, उसे पकड़ो, वह भागने न पाए।”

पार्वती तब तक बड़ी तेजी से सीढ़ियां उतर गयी थी। उस शहर का उसे कोई ज्ञान तो था नहीं। वह एक ओर को दौड़ पड़ी।

अपनी पूरी शक्ति लगाकर दौड़ रही थी पार्वती।।

बाजार में आने-जाने वाले लोग उसे भागते देख रहे थे मगर किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। सब जानते थे कि उस बाजार में ऐसा अक्सर होता रहता है।

पार्वती दौड़ रही थी। रत्ना बाई के दलाल उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग रहे थे।

बेतहाशा भागते हुए पार्वती अचानक एक कार से टकरा गयी। कार का पहिया उसके सर के ऊपर से उतर गया। पार्वती का भेजा बाहर निकल गया। चेहरा ऐसा हो गया कि पहचाना भी नहीं जाता था।

कार का ड्राइवर गाड़ी को और भी तेज दौड़ाकर ले गया। उसने एक औरत को कुचलने के बाद गाड़ी को रोकने तक की भी तकलीफ नहीं की थी।

पार्वती की लाश को पुलिस उठाकर ले गयी और उसका पोस्टमार्टम कराकर लावारिस करार देकर जलवा दी गयी।

… इतना कहकर मैना चुपं हो गयी।

कुछ क्षणों तक चुप रहने के बाद वह बोली-“तोते।”

“बोलो मैना।’

“तुमने सुन लिया?”

‘‘हां मैना।’

‘‘देखा उस बेईमान को।” मैना ने कहा- ‘‘पार्वती ने उस बेमुरव्वत इन्सान पर भरोसा किया। उस पर विश्वास करके अपने माता-पिता को छोड़कर चल दी और उसने उसका यह सिला दिया कि उसके तन को तीस हजार में बेच दिया।”

एक पल रुककर मैना ने पुनः कहना प्रारम्भ किया-“अब तुम बताओ। जब मैंने मर्दो के ऐसे किस्से सुन रखे हैं तो भला मैं तुम्हें कैसे अपने पास आने दें। वास्तव में संसार में मर्दो की जात बड़ी फरेबी, दगाबाज और बेपीर होती है। यही कारण है कि मुझे मर्दजात से नफरत है।”

‘‘मैना!”

“हां, बोल तोते!”

“यह मर्द जात पर सरासर इल्जाम है।” तोते ने कहा “सच बात तो यह है कि मर्दो से ज्यादा वफादार तो कोई होता ही नहीं। मैं अब तुम्हें एक ऐसी हसीना की दास्तान सुनाता हूं, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि मर्द ही बेवफा नहीं होते।”

“सुनाओ।”

तोता मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। वह जानता था कि अब वह उसे अपने पेड़ की शाख से जाने के लिए नहीं कहेगी।

कुछ पलों तक वातावरण में सन्नाटा छाया रहा। फिर तोते ने कहना प्रारम्भ किया।


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