seema Sharma

Tragedy

5.0  

seema Sharma

Tragedy

तुम्हें किसी जीवन साथी की जरूरत

तुम्हें किसी जीवन साथी की जरूरत

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ईशा को सिर्फ एक ही चीज़ से प्यार था और वो था उसका मोबाइल फ़ोन। बचपन से ही ऐसी आदत पड़ी थी कि पूछिये मत! छोटे होने के समय जब वो रोती, हर कोई उसके हाथ में मोबाइल पकड़ा देता।बस फिर क्या था जनाब ! मोबाइल के साथ घंटों खेलती रहती! अब तो उसकी आदत ही बन गई, बचपन छूट गया पर मोबाइल का मोह नहीं छूटा! कोई भी खेल उसको भाता नहीं था! बस वो और उसका मोबाइल ही उसकी दुनिया थी।

ईशा की दादी जब उसे मंदिर में आकर आरती करने को बोलती तो मोबाइल में आरती लगा कर खुद रफूचक्कर हो जाती। उसकी आदत ही बन गयी थी कि जब कुछ नया सीखने का मन होता तो फटाफट मोबाइल से देखती और उसका काम हो जाता। चाहे खाने की कोई विधि हो या फिर फैशन की कोई बात, हर चीज़ का पूरा ज्ञान ईशा को मोबाइल से ही हो गया था। धीरे-धीरे उसका संपर्क बाहरी लोगों से टूटता ही जा रहा था, ऑनलाइन उसके बहुत दोस्त थे पर असल में कोई ऐसा दोस्त नहीं था जिसके साथ वो बैठकर वो गपशप करें। किसी सामाजिक कार्यक्रम में उसको आना जाना कतई पसंद नहीं था। ईशा को अब तो मोबाइल ही अपना सच्चा साथी, सखा, सहारा सब लगता था।

उसकी सुबह मोबाइल से ही शुरू होती और शाम भी मोबाइल के साथ ही ढलती। सबसे ज्यादा दादी को ये देख दुःख होता ,पर क्या करती मन मसोस कर ही रह जाती ।आज ईशा के भाई को लड़की देखने जाना था ,सबने जब जबरदस्ती की तो ईशा भी उनके साथ चल पड़ी। ईशा का शरीर तो वहां मौजूद था ,पर उसकी आत्मा अभी भी फ़ोन के साथ ही बात कर रही थी ।अचानक वहां पर मौजूद लोगों में से एक ने पूछ लिया कि ;' ईशा बेटे तुम कैसे लड़के से शादी करोगी ,'? इसका जवाब ईशा के देने से पहले ही उसकी दादी बोल पड़ी ,अरे भाई साहिब हमारी पोती को किसी जीवन साथी की जरुरत नहीं है ,उसके पास तो बचपन से ही उसका जीवन साथी है । सब लोग ये सुन चौंक गये तो दादी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली ,,अरे चौंकिए मत हो सकता है आपके घर में भी आपके बच्चों के पास भी ये जीवन साथी हो। आजकल के लोगों के पास तो उनका जीवन साथी ;' मोबाइल फ़ोन 'आ गया है ,जिसमे उनकी पूरी दुनिया ही समाई हुई है। पर आजकल के लोग ये नहीं समझ पा रहे है ये केवल एक यंत्र है ना कि जीवन।

मेरी पोती के लिए उसका मोबाइल हर रिश्ते से बड़ा है, या सच पूछिए तो उसका जीवन साथी जैसा ही है ,और इसको अब किसी जीवन साथी की जरुरत ही नहीं लगती। पर मुझे ये देख दुःख लगता है, पता नहीं आपमें से कितने लोगों के घरों में ऐसे जीवन साथी हैं? दादी की बात से हर कोई सहमत था, क्योंकि सबके घर में यही हाल था और ईशा ख़ामोशी से सोच रही थी कि क्या सच में ये फ़ोन मेरे ऊपर इतना हावी हो गया है कि मुझे सब कुछ भूल गया है। अपने भाई के लिए लड़की देखने आना ईशा को एक सबक तो दे गया था, पर वो उस सबक को ठीक से जीवन में आगे अपनाएगी या नहीं ये तो अब उसके ऊपर था।

दोस्तों दादी की बात है तो सच, पर फिर भी हम में से कितने लोग इसे आगे चलकर अपनी आदत में सुधार करेंगे?


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