हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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ययाति और देवयानी ,भाग 43

ययाति और देवयानी ,भाग 43

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व्याघ्र को अपने सामने गुर्राते देखकर कच भयभीत नहीं हुआ । उसने आंखें बंद की तो व्याघ्र में उसे भगवान श्रीनारायण दिखाई दिये । वह समझ गया कि भगवान स्वयं उस सरोवर की रक्षा करते हैं जिसमें लाल कमल खिलते हैं । कच ने व्याघ्र को भगवान का रूप मानते हुए उसे साष्टांग प्रणाम किया । कच के द्वारा ऐसा करने से व्याघ्र पीछे हट गया और वह अपने वास्तविक स्वरूप में उपस्थित हो गया । वह एक यक्ष था जो लाल कमल वाले सरोवर की रक्षा कर रहा था । कच के द्वारा साष्टांग प्रणाम करने से वह बहुत प्रसन्न हो गया । वह कहने लगा 

"मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं कच, तुम जो चाहो मुझसे मांग सकते हो" । 

"आप कौन हैं देव और यहां क्या कर रहे हैं" ? कच ने उत्सुकता से पूछा । 

"मैं एक यक्ष हूं और इस सरोवर की रखवाली कर रहा हूं जिसमें "लाल कमल" खिलते हैं" । 


कच को अचानक याद आया कि आज प्रात: ही लाल कमल शिवलिंग पर किसी ने चढाया था । इसका अर्थ है कि कोई इस सरोवर से लाल कमल लेकर गया है । कौन हो सकता है वह व्यक्ति ? उसे देखकर ही तो देवयानी ने लाल कमल की अभिलाषा की थी । और किसी को पता हो या नहीं पर इस यक्ष को तो पता होगा ही । उसने यक्ष से पूछा 

"क्या कल या आज प्रात: कोई व्यक्ति इस सरोवर से लाल कमल लेकर गया है ? आज शिवलिंग पर ऐसा ही एक लाल कमल चढ़ा हुआ पाया गया है" । 


कच की बात पर यक्ष मुस्कुराया और बोला "मैरे रहते किसी का इतना साहस नहीं हो सकता है कि वह यहां से एक भी लाल कमल का पुष्प चुराकर ले जाये । वह पुष्प मैं स्वयं लेकर गया था और उसे भोले भंडारी को अर्पित करके मैं वापिस आ गया" ।  


अब कच को याद आया कि वह भी लाल कमल लेने ही आया है पर क्या यक्ष उसे ले जाने देगा ? फिर उसे यह भी याद आया कि यक्ष ने उसे कुछ भी मांगने को कहा है । लाल कमल से श्रेष्ठ और कौन सी वस्तु है जगत में ? वह यही मांगेगा । उसने यक्ष को प्रणाम करके कहा 

"यदि आप मुझ पर इतने ही प्रसन्न हैं तो मुझे कुछ लाल कमल तोड़ने दीजिए" । कच सिर झुका कर बोला । 


कच की बात सुनकर यक्ष अवाक् रह गया । उसने तो सोचा ही नहीं था कि कच "लाल कमल" भी मांग सकता है ? लेकिन उसने तो उसे वरदान दे दिया है फिर वह मना कैसे कर सकता है ? अपना वचन निभाते हुए यक्ष ने कच को लाल कमल अपने साथ ले जाने की अनुमति प्रदान कर दी । कच की बांछें खिल गईं । उसे लगा कि उसका मनोरथ पूर्ण हो गया है । जिस चीज के लिए वह इतनी दूर , इतने कष्ट सहकर आया है, वह उसे आज प्राप्त होने जा रही है । कच का मन आनंद के सागर में गोते लगाने लगा । उसने यक्ष को अनेकों बार धन्यवाद ज्ञापित किया और प्रसन्न मन से लाल कमल तोड़ने के लिए जलाशय की ओर बढ चला । 


यक्ष उसकी अगवानी कर रहा था और लाल कमल की विशेषताऐं बताता हुआ उसके साथ साथ चल रहा था । कच और यक्ष सरोवर के तट पर आ गये । सरोवर का जल मंदाकिनी नदी की तरह हलकी नीलिमा लिए हुए था । उसका जल इतना निर्मल था कि उसमें कच को अपनी तस्वीर स्पष्ट दिखाई दे रही थी । सरोवर के जल को देखकर कच का मन उसमें उतरने को उतावला हो रहा था । कच ने सरोवर में प्रवेश करने की अनुमति के लिए यक्ष की ओर देखा । यक्ष उसके मनोभाव समझ गया और उसने आंखों के संकेत से सरोवर में उतरने की अनुमति प्रदान कर दी । 


सरोवर का जल हलका शीतल था । जल का स्पर्श पाकर कच को एक विशेष प्रकार की अनुभूति हुई । उसे ऐसा लगा जैसे उसकी सारी थकान मिट गई हो और पूरे बदन में ताजगी भर गई हो । वह सरोवर में बहुत देर तक जलक्रीड़ा करता रहा । जलक्रीड़ा से जब उसका मन तृप्त हो गया तब वह सरोवर के मध्य में खिले हुए लाल कमल के पुष्पों के पास पहुंचा । उन लाल कमल के पुष्पों को देखकर कच की आंखें विस्मय से फैल गईं । एक साथ इतने सारे लाल कमल देखकर वह हर्षित हो गया । उसने एक पुष्प को छूकर देखा । कितना कोमल और मुलायम स्पर्श था उनका जिसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता था । 


लाल कमल के पुष्पों पर जल की कुछ बूंदें नजर आ रही थीं । कच ने एक पुष्प से वे जल की बूंदें साफ की और उसके पश्चात उसने पुष्प को छुआ तो पुष्प पर जल का कोई चिन्ह नजर नहीं आया । उसने दूसरे पुष्प की ओर देखा । वहां पर भी जल की कुछ बूंदें इंद्रधनुषी आभा बिखेर रही थीं किन्तु कमल का पुष्प जल से निर्लिप्त नजर आ रहा था । यह कैसी लीला है ? कमल के पुष्प पर जल की बूंदें हैं किन्तु न तो जल पुष्प में और न पुष्प जल में लिप्त है । कच चूंकि विद्वान था इसलिए उसे तुरंत समझ में आ गया । जिस प्रकार भगवान की सत्ता से सत , रज और तम तीनों गुणों की उत्पत्ति हुई है । भगवान में ये तीनों गुण सत, रज , तम उपस्थित होते हुए भी भगवान इन तीनों गुणों से निर्लिप्त हैं । तभी तो वे "गुणातीत" कहलाते हैं । इसी प्रकार तीनों गुण भगवान से उत्पन्न होकर भी भगवान उनमें लिप्त नहीं हैं । जिसने इस गूढ रहस्य को जान लिया समझो , उसने भगवान को जान लिया । कमल के पुष्प और जल बिन्दुओं के संबंध से कच ने यह गूढ ज्ञान बहुत सहज भाव से जान लिया था । उसने मन ही मन देवयानी को धन्यवाद दिया कि उसके कारण "त्रिगुणों" की प्रकृति को वह इतनी सूक्ष्मता के साथ समग्र रूप में समझ पाया था । 


उसने पट पट करके कई सारे पुष्प तोड़ लिए । वह लाल कमल के पुष्पों से देवयानी को आवृत्त कर देना चाहता था । उसने समस्त पुष्प अपनी धोती में भर लिये और उन्हें अपनी पीठ पर लाद लिया । इसके पश्चात वह सरोवर से बाहर आ गया । 

"इतने पुष्पों का क्या करोगे कच" ? आश्चर्य से यक्ष ने पूछा 

"गुरू पुत्री को लाल कमल बहुत पसंद हैं । उन्हीं की आकांक्षा पूर्ति के लिए मैं यहां आया हूं । इतने सारे लाल कमल एक साथ देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हो जाऐंगी और उन्हें प्रसन्न देखकर मुझे अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होगी" । 

"अच्छा तो ये बात है । गुरू पुत्री से अन्य कोई संबंध तो नहीं है ना" ? यक्ष ने मुस्कुराते हुए कच के मन के भावों को टटोला । 

"नहीं , गुरू पुत्री तो भगिनी होती है शिष्यों की । उनसे और कोई संबंध हो ही नहीं सकता है" कच ने निर्भीकता पूर्वक कहा 

"आपके प्रत्युत्तर से मैं प्रसन्न हो गया हूं कच । आप एक आदर्श शिष्य हैं । मेरा आशीर्वाद आपके साथ सदैव रहेगा" ।


यक्ष उसे सागर तट तक छोड़ने आया था । कच यक्ष से विदा लेने के लिए नीचे झुका तो यक्ष ने उसके सिर पर अपना हाथ फिरा दिया । यक्ष के स्पर्श में पता नहीं कैसा जादू था कि कच को अपने बदन में 1000 अश्वों के बराबर शक्ति महसूस होने लगी । कच समझ गया कि यक्ष ने उसे ऊर्जा से परिपूर्ण कर दिया है अब इस सागर को पार करने में किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी । 


कच सागर पार करके लाल कमल लेकर वापस अपने आश्रम में आ गया । 



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