मृत्यु के बाद और जीवन के पूर्व
मृत्यु के बाद और जीवन के पूर्व
मृत्यु के बाद और जीवन के पूर्व
सब लोग मुंह लटका कर बैठे थे जैसे कि सब कुछ लुट गया हो। किसी की मौत हो गई हो। "आजकल तो मौत पर भी इतना मुंह नहीं लटकाता कोई जितना तुम लोगों ने लटका रखा है " कहते हुए हम उस सभा में पहुंचे।
हंसमुख लाल जी बोले " भाईसाहब बात ही कुछ ऐसी है "
हमने कहा " बरखुरदार , मौत से भी बुरी बात और क्या होगी ? जब तुम लोग उस समय इतने उदास नहीं होते हो तो आज प्रलय आ गई है क्या " ?
"प्रलय ही समझो" रसिकलाल जी फुसफुसाए।
" अरे हंसमुख लाल जी , अरे ये मुंह लटकाना बंद करो यार। पहले तुम अपना थोबड़ा ठीक करो भाई , फिर बात करना। तुम पर ये रोनी सूरत फिट नहीं बैठती है यार। कुछ कुछ ऐसा लगता है कि जैसे कोई काला आदमी पाउडर पोत कर बैठा हो।"
वातावरण थोड़ा हल्का हुआ। हंसमुख लाल जी ने कहा " एक गूढ़ प्रश्न है भाईसाहब। जीवन से पहले और मौत के बाद क्या होता है ? सब लोग इसी गूढ़ प्रश्न का उत्तर तलाश कर रहे हैं "।
मैंने छमिया भाभी की तरफ देखा। चिंता मग्न लग रहीं थीं वो। हमें बड़ा दुख हुआ। फूल सा चेहरा मुरझाया हुआ था। फूल तो खिलते हुए ही अच्छे लगते हैं। मुरझाए हुए फूल किसे पसंद होते हैं। हमने एक गहरी सांस ली और कहा, " भाभी, आप तो विज्ञान की छात्रा रहीं हैं। आप तो "विकासवाद के सिद्धांत" को मानती हैं। फिर ये दुविधा क्यों है " ?
" यही बात तो मुझे चुभ रही है। विज्ञान में ऐसे किसी प्रश्न का जवाब है ही नहीं। इसलिए ही चुप बैठी हूं। मगर प्रश्न है तो उत्तर ढूंढना ही होगा। अब आप आ गये हैं तो इसका उत्तर अवश्य मिलेगा। ऐसा कौन सा प्रश्न है जिसका जवाब आपके पास नहीं हो " ?उन्होंने हमें ऐसे चढ़ाया जैसे जाम्बवान ने हनुमान जी को चढ़ाया था कि चढ़ जा बेटा सूली पे भली करेंगे राम।
अपनी प्रशंसा सुनकर कौन है जो फूलकर कुप्पा नहीं होता ? हमें ऐसा लगा कि हमारा कद अचानक बढ़ गया है। हम भी बुद्धिजीवियों की तरह दार्शनिक होने का दिखावा करने लगे। थोड़ी देर दाढ़ी खुजलाते रहे फिर बोले,
"अच्छा एक बात बताओ, चुनाव होने के बाद जब वर्तमान सरकार गिर जाती है और एक नई सरकार बनती है तो इस अवस्था को क्या कहेंगे " ?
मेरी इस बात से सबके चेहरों पर थोड़ी रौनक नजर आई। आशा की किरणें पड़ने लगी थी उन मुरझाए हुए चेहरों पर। वे हमें जिज्ञासा भरी नजरों से देखने लगे। हमने आगे कहा
" जब एक अधिकारी का स्थानांतरण हो जाता है और वह चला जाता है लेकिन उनकी जगह पर आने वाले अधिकारी ने अभी कार्य ग्रहण नहीं किया है , तो ऐसी स्थिति को क्या कहेंगे " ?
सभा में एकदम सन्नाटा व्याप्त हो गया। हमारी बात का गजब प्रभाव पड़ा था। सब लोग एकटक हमें ही देखे जा रहे थे। इससे उत्साहित होकर हम कहने लगे
" रात के समाप्त होने और दिन निकलने से पूर्व को क्या कहते हैं ? एक विचार मरने के बाद और दूसरे विचार के जन्म लेने से पूर्व की स्थिति क्या कहलाती है ? एक इच्छा पूरी होने के बाद और दूसरी इच्छा के जन्म लेने से पूर्व क्या होता है " ?
अपनी बात का प्रभाव जानने के लिए मैंने एक बार फिर से सबको देखा। सबके चेहरे खिल उठे थे। जैसे कि कोई सूत्र हाथ लग गया हो। छमिया भाभी का मुखड़ा कांति से पुनः दमकने लगा। उस कान्तिवान चेहरे को देखकर हमें भी ऊर्जा मिलने लगी। हमने कहा,
" यह संधि काल कहलाता है। विज्ञान में इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। यह तो हमारे ग्रंथों में ही मिलता है। बाकी कहीं भी कुछ भी नहीं लिखा है इसके बारे में। जब एक सरकार जाती है और नई सरकार बनने को तैयार होती है तब लोगों में एक उत्साह होता है। पिछली सरकार की नाकामियों से उबरने का , श्रेष्ठ कार्य करने का अवसर होता है तब। एक नया कार्यक्रम तैयार किया जाता है और फिर वह नई सरकार नये कार्यक्रम , नई ऊर्जा , नये इरादे के साथ काम करना शुरू कर देती है। इसी प्रकार जब एक अधिकारी का स्थानांतरण हो जाता है और दूसरा आने को है तो इस समय में भी पुराने अधिकारी के कार्यों का मूल्यांकन करने और नये अधिकारी की कार्य प्रणाली के बारे में जानने की उत्सुकता होती है। नया अधिकारी कुछ नवाचार , नई आशा लेकर आता है। ठहरा हुआ सा वातावरण अचानक से एक नई रफ्तार पकड़ लेता है। कुछ इसी तरह यह जीवन है। मरने के बाद कौन कहां जाता है , यह तो नहीं पता। मगर इतना पता है कि हर मनुष्य भगवान का ही अंश है। मृत्यु के पश्चात जब शरीर निर्जीव पड़ा रहता है और आत्मा प्रभु के पास चली जाती है तब प्रभु उस आत्मा का मूल्यांकन करते हैं। जब तक आत्मा निरपेक्ष नहीं हो जाती है तब तक वह प्रभु में समा नहीं सकती है। जब वह प्रभु में समाने योग्य नहीं होती है तो फिर प्रभु यह तय करते हैं कि इस आत्मा को अभी और तपाने की आवश्यकता है। इसलिए इसे अभी मृत्यु लोक में फिर से जाना होगा और अभी कुछ समय वहां और बिताना होगा। उस आत्मा को किस योनि में डाला जाए , इसका निर्धारण उसके कार्यों से किया जाता है। उसके द्वारा कमाए गए पाप और पुण्यों से किया जाता है। तब उसकी योनि निर्धारित होती है। इसके बाद फिर उसका नया जन्म होता है। बस , यही जीवन चक्र है। जब तक वह आत्मा परमात्मा से एकाकार नहीं कर लेती है , तब तक वह इसी तरह नया जीवन ग्रहण करती रहती है। यह विकासवाद का सिद्धांत नहीं बल्कि ' आत्मा - परमात्मा का सिद्धांत ' कहलाता है "। हमने अपना व्याख्यान समाप्त किया।
हंसमुख लाल जी ने कहा " भाईसाहब , वैसे तो आप प्रशासनिक अधिकारी हो लेकिन आपका व्याख्याता वाला चरित्र अभी तक जीवित है। इतने गूढ़ प्रश्न को भी इतनी सहजता के साथ समझा दिया है आपने। कहां से लाते हो इतनी ऊर्जा " ?
हमने छमिया भाभी की ओर देखा और कहा " समस्त ऊर्जा का स्रोत तो यहीं पर विद्यमान है फिर और कहां से लाएंगे " ? इस बात पर सभी हंस पड़े।