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कुमार संदीप

Inspirational

4.8  

कुमार संदीप

Inspirational

बेटी

बेटी

1 min
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जब घर से दूर निकलती है बेटी

बाजार पढ़ने के लिए

पिता की टकटकी निगाहेंं

लगी रहती हैं उस राह को

जिस राह से बिटिया रानी गयी है

पिता को चिंता निगल रही है उनसे

जिनका नेत्र रहते हुए भी

नेत्रहीन हैं

धरती के बोझ

पापी बुरी नजरों से वसीभूत

इन कुविचारी भेड़ियों से

कि ....कहीं

लाडो रानी को ये दुराचारी

कहीं का न छोड़ें

प्रताड़ित लाडो रानी कहीं की न रहेगी

पिता की चिंता जायज है

हो गए हैं मानव अब तो दानव

मर गयीं हैं उनकी लज्जा

बदन के भूखे

इन भेड़ियों को

जब भी देखें कहीं

कुछ गलत करते

बेटियों से चौराहे पर

या कहीं और

इनको सबक सिखलाएँ न रहे

उस वक्त मौन से अच्छा

आप मर जाएँ

इंसानियत को न मरने दें

कुविचारियों का दुराचारियों का

न मनोबल बढ़ाएँ

उनको उनकी औकात दिखाएँ



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