भय और सफ़लता
भय और सफ़लता
रात हो चली थी
अंधेरे से मेरी
मुलाकात हो चुकी थी
हो रही थी देरी
पर मैं तैयारी कर रहा था
खाना और पानी
बैग में भर रहा था
मैने न बात जानी
कि रात बड़ी सुनसान होगी
ईश्वर का हाथ है मेरे उपर
अब न रात डरावनी होगी
चलना शुरू किया मैने पर
अंधेरे से डर लगता था
डरते डरते मगर
काम से यहां वहां जाता रहता था
था लेकिन जंगली जानवरों का डर
कब जिंदगी अलविदा कह दे
इसका डर बना रहता था
पर मुझे सफलता मिलेगी
इसका जोश भी बना रहता था
सपना कुछ था
कर गुजर जाने का
मौका भी था
खुद को साबित करने का
अब चला ही हूं
तो रुकूंगा नहीं
किसी के सामने
कभी झुकूंगा नही
सफ़लता प्राप्ति के लिए
मैं हर संभव प्रयास करूंगा
साम दाम दण्ड भेद
लक्ष्य प्राप्ति के लिए कुछ भी करूंगा।