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SRINIVAS GUDIMELLA

Abstract

3  

SRINIVAS GUDIMELLA

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बुढ़ापा

बुढ़ापा

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एक बार जो गयी जवानी

शुरू हुई तब नयी कहानी

मौत के सामने है ज़िंदगानी

इसका नाम है बुढ़ापा जानी !


गिरने लगे हैं बाल अब सरसे

यादों के यादों में अखियां ये बरसे

ज़िन्दगी से प्यार और मौत के डरसे

अपनों के प्यार को जिया ये तरसे !


धीरे धीरे चलना फिरना

कभी संभालना कभी है गिरना

छोटे काम भी मुश्किल है करना

जीवन समंदर में मुश्किल है तैरना !


कम्पे है हाथ और काम्पे है ऊँगली

चली याद्गाश मू है खाली

खाने है गाली खाने हैं गोली

आँखों की रौशनी आशाये लेली !


मात पिता है खुदा का नज़राना

जिसका दिल में हमारा ठिकाना

मेहनत का जिसपे अपना आशियाना

भूलके भी तुम उसे ना ठुकराना !


यारों मेरे आँखे खोलो

अपने मात पिताको पालो

प्यार दो उसको गले लगालो

बूढ़े बच्चों को तुम सम्भालो !


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