कभी तो समझेंगें वो मुझे, बस इसी सब्र में ही, क्या बची ज़िन्दगी कटेगी मेरी रसोई-घर में ही। कभी तो समझेंगें वो मुझे, बस इसी सब्र में ही, क्या बची ज़िन्दगी कटेगी मेरी रसोई-घर...
बाल मज़दूरी के एक कविता। बाल मज़दूरी के एक कविता।
सुहागिले ! सुहागिले !
बिछडे़गे नहीं भले कोई क़यामत रहे, दुआ दी लोगों ने जोड़ा सलामत रहे। बिछडे़गे नहीं भले कोई क़यामत रहे, दुआ दी लोगों ने जोड़ा सलामत रहे।
क्यूँ बदल जाती है तस्वीर सात फेरों के बाद ? क्यूँ बदल जाती है तस्वीर सात फेरों के बाद ?
विदा होती बेटी...। विदा होती बेटी...।