छूना हैं आसमान
छूना हैं आसमान
चाहती हूँ उड़ना उन्मुक्त गगन में
भरना चाहती हूँ उड़ान ऊँची
प्रगति के आसमान में करना है विचरण
जहां हो ऐसा जिधर न कोई
देखे बुरी नज़र से
माहौल हो ऐसा जिधर
न ही नोचे तन कोई
विचरण करूँ ऐसे गगन में
जहाँ हर कोई लगे अपना सा
न हो बैर किसी का किसी से
हर जगह बन जाए बसेरा
हो मेल सबका सभी से
भूल कर भी न आए विचार दुश्मनी का
है सपना यही जिसे पाने का
अरमान यही दिल में बसाने का
ऐसा हो जहाँ अपना सा।