धरा का भाग्य जगायें
धरा का भाग्य जगायें
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
पौधे की जड़ों को, गाड़ दो जमीन में,
बढ़ने दो, खड़ा होने दो।
फिर उन जड़ों में जल का प्रवाह दो,
ऊपर और ऊपर बड़ा होने दो।
धरा को हरा करें,
सारी पृथ्वी का हो सिंचन,
अपने अंतर का त्याग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
वृक्षों को काटकर बस्तियाँ बसाई,
वनों को उजाड़कर खेतियाँ सजाईं।
आबादी बढ़ती रही, जंगल कटते रहे,
धरा की सतह पर फटती रही बेवाई।
कबतक होगा यह, प्रकृति का दोहन
अब तो चेते, कुछ अनुराग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें
आओ धारा का भाग्य जगायें।
बादल उड़ते जा रहे गगन में,
कैसे धरा पर वे उतरेंगे।
सीढ़ियाँ है नहीं वृक्षों की,
कैसे धरा पर वे पसरेंगें।
जल से शून्य धरती का उपवन
संभल जाएं,
अपना सौभाग्य जगमगाये।
एक छोटा सा पौधा लगायें
आओ धरा का भाग्य जगायें।