दीन दुखियों की सेवा
दीन दुखियों की सेवा
भूख से बिलखते बच्चों को रोटी के टुकड़े के लिए,
लड़ते झगड़ते देखा तो मन बहुत घबराया,
संकल्प लिया उस दिन दीनता अभिशाप मुक्त हो,
गरीबों की सेवा कर अंधेरे में दिया जलाया जाय,
गरीबों को प्यार से गले तो लगाया जाय।
कितना भोजन बेकार होता हैं आज भोज में,
उस भोजन का स्वाद इन लोगों को भी कराया जाय।
मुफलिसी में गुजरती है जिदंगी सर्द रातों में,
इनके बदन को कपड़ों से आओ ढका जाय।
क्यों बेकार करते हो अन्न जल को लोगों,
कभी तो इसकी कीमत समझ लो लोगों,
लेता हूँ शपथ दीन दुखियों की सेवा करूँगा,
आवश्यकता से कम वस्तुओं का दुरुपयोग न करूँगा।