गरिमामयी कविताएं
गरिमामयी कविताएं
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कुछ कविताएं होती हैं गरिमामयी,
सभ्य, संभ्रांत और प्रबुद्ध वर्ग उन्हें गुनगुनाता है।
कुछ कविताएं सड़क पे लुढ़कती हैं,
कंकरों और पत्थरों की तरह,
सड़क का आदमी, नहीं गुनगुनाता है कोई कविता।
सड़क छाप जो ठहरा।
गरिमामयी कविताओं की गरिमा से अलंकृत होते हैं अलंकार भी,
सड़क की कविताओं में रचे बसे होते हैं गटर और नाली।
इतनी सोच काफी है कि,
मैं लिखूं गरिमामयी
या लिखूं गुणी।
एक को दिल नहीं मानता,
दूसरे को पाठक।