हारा हुआ सिकन्दर
हारा हुआ सिकन्दर
आ लौट कर ज़रा इक बार सही,
मेरी तबाही का मंज़र देख जा ।
है किस कदर बिखरा सा पड़ा,
वीराने में यह खंडहर देख जा ।।
बेख़बर न रह ....मेरे हाल-ए-दिल से,
तेरी यादों का उमड़ता, समंदर देख जा ।
फ़ासले बढ़ा कर, छोड़ गया मझधार में,
उमड़ते तूफान को, मेरे अंदर देख जा ।।
वफ़ा के बदले, मांगी थी वफ़ा तुमसे,
पीठ पर जफ़ा का, खंजर देख जा ।
बहार- ए- गुलिस्तां की आस में,
उजड़ा चमन.. ज़मीं बंजर देख जा ।।
शमा की लौ में जलने को ..बेकरार परवाना,
तेरे प्यार में भटकता .इक कलन्दर देख जा ।।
तेरा हाथ थामे चला था ..ज़माना जीतने,
वो इश्क में " हारा हुआ सिकन्दर" देख जा ।