होरी खेलन कान्हा आयो रे
होरी खेलन कान्हा आयो रे
पहन पीतांबरी सिर धर मोर मुकुट
बाँध कमर मनभावन बांसुरियाँ
मदन बिहारी होरी खेलन बृजधाम पधारो रे
आयो रे, होरी खेलन कान्हा आयो रे।
रंगबिरंगी धरती हो गई
चहूँ दिश में जब उड़े गुलाल
निकल पड़ी मद-मस्त गोकुल की टोली रे
आयो रे, होरी खेलन नंद नन्दन आयो रे।
आज टेसुयन से रंग बनाय होरी खेलन को
सखियन संग बृषभानुजा भी हैं तैयार
लखौ धरा संग अंबर भी हो गयो है लाल
आयो रे, होरी खेलन, बाँके बिहारी आयो रे।
कान्हा नैनन से देत आमंत्रण ब्रजरानी को
लाल गुलाल से रंगे राधिके के गाल
भर पिचकारी भिगोए कीर्ति किशोरी को
आयो रे, होरी खेलन मस्त मगन बंशीधर आयो रे।
आज ब्रजधाम में होरी की धूम मची है
राधा संग यमुना तीरे, कान्हा रास रचायो रे
मनुज संग देव भी फगुआ गावे हैं
आयो रे, होरी खेलन मधुसूदन आयो रे।
प्रिय से मिलने का, होरी तो एक बहाना है
आज राधिके की प्रीत में, कान्हा भीगने आयो है
रंग लगे जो राधिके के तन, वो तो चढ़े देवकीनन्दन के अंग
ऐसी होरी देख प्रेम की, सकल ब्रजधाम तो रसिया गावे रे।
आयो रे, होरी खेलन मुरलीधर आयो रे।
आयो रे, होरी खेलन श्यामसुंदर आयो रे।