जैसी करनी वैसी भरनी.....
जैसी करनी वैसी भरनी.....
चलो एक कहानी सुनाता हूँ
बात पुरानी तुम्हें बताता हूँ
जैसी करनी वैसी भरनी
कहावत का दृश्य दिखाता हूँ
इक नव विवाहित जोड़ा था
प्यार भी उनमें हो रहा था
प्रीत के रंग मे रंगी वो नारी
प्रेमपाश मे बंधी थी प्यारी
पुरुष दोहरे चरित्र का मानव था
उसका तो उसकी सम्पत्ति ही
निशाना था
धीरे धीरे नारी को ये आभास हुआ
सोच के मन मे बड़ा विलाप हुआ
जिसको सर्वस्व सौंप दिया अपना
उसको इक क्षण के लिए न
पश्चाताप हुआ
वह जाकर उसके पास है बोली
प्राण नाथ सब तुम्हारा अपना है
बिन तुम्हारे जीवन की नहीं
कोई कल्पना है
पुरुष ने ज़ोरदार अट्टहास किया
जिस कुएँ के समक्ष खड़ी थी
उसमे धकेल दिया
फिर उसने शुरु विलासीता
का खेल किया
पराई नार के मोह मे पड़
अपना संसार उजाड़ दिया
काम लोलुपता में सुध बुध खोई
देख इक दिन अपनी स्त्री की परछाईं
भय के मारे पागल जैसी स्थिति होई
डर से वह पल पल अब घबराए
नार जो थी प्रेयसी उसकी वह भी
अब उससे अपना पीछा छुड़ाना चाहे
फिर उसने इक षड़यंत्र रचाया
जमकर उसको मदिरा पान कराया
प्रेम क्रीड़ा के बहाने उस ही कुएँ
पास पहुँचाया
दिया धक्का उससे कुएँ में और
एक भयंकर अट्टहास लगाया
जैसी करनी वैसी भरनी का
ईश्वर ने खेल दिखाया...