ज़मीर
ज़मीर
मैं, मैं हूँ मेरी अपनी अलग पहचान है,
मुझे न रोक-टोको, मैं आज़ाद परिंदा हूँ।
मेरे सपनों को देना है, एक नई पहचान,
मेरे ज़मीर को न झकझोरों, *मैं* मैं हूँ।
मैंने अपने आत्मसम्मान को सहेजा है,
अब मैं उड़ चली हूँ,
अपने एक नए लक्ष्य की ओर।
सुन लो ऐ मुझे नीचा दिखाने वालों,
अब मैं, दिखाऊंगी *मैं*मैं हूँ।
तुम्हारी खिल्ली उड़ाती हंसी का,
मैं दूंगी जवाब *मैं* मैं हूँ।