काले मेघ और नीला आसमां(प्रलय )
काले मेघ और नीला आसमां(प्रलय )
काले मेघों ने नभ को घेरा,
हर दिश हुआ घोर अँधियारा।
नीले गगन को काला करके,
सूरज के दर्शन को तरसे।।१
सूरज की किरणे तो आयीं,
पर धरा तक पहुँच न पायीं।
भानु शशि अब बनकर चमके,
फिर भी नभ में आकर अटके।।२
निशा हुई ये सबसे लम्बी,
अब रण की बजी दुदंभी।
काले मेघों ने नभ को ललकारा,
मिला न अब तक कोई सहारा।।३
काले मेघों का गर्जन सुनकर,
सकल धरा फिर काँपी थर थर।
जीव जंतु खग वृक्ष हैं व्याकुल ,
दशा मनुज की अति है आकुल।।४
सकल धरा का इन मनुजों ने,
नाश किया, बर्बाद किया है।
प्रकृति की प्रकृति को छेड़ा ,
क्षमा को कोई मार्ग न छोड़ा।।५
काले मेघ हैं बरसे जमकर,
प्रलय सी आयी सकल धरा पर।
सकल सृष्टि में बचा न कोई ,
आज मनुज की याद है आयी।।६
नीले गगन से मैंने पूछा,
अब तुमने क्या है सोचा ?
दूर करोगे कैसे अँधेरा ?
हुआ न अब तक कोई सवेरा।।७
कई दिवस बीते है ऐसे,
वक्त बिताया जैसे तैसे।
अब कुछ मेघों ने किया किनारा,
नीले गगन का दिखा नज़ारा।।८
फिर एक रोज़ हुआ सवेरा,
आसमान का नया नज़ारा।
नीले अम्बर के दर्शन करके,
सारी सृष्टि हंसी भर भर के।।९