कौन सुनता है
कौन सुनता है
अमीरों की सभा लगी हो, गरीब पुकारता है,
हँसी चेहरे पर मिलती उनके, जो निहारता है,
कौन सुनने वाला है,अमीरों की सभा में अब,
आ गया बेचारा पर, उसका मन धिक्कारता है।
नक्कारखाने में तूती की आवाज,कौन सुनता है,
गरीब जन जग में आकर,सुंदर सपने बुनता है,
कितने आये चले गये, पर घमंड नहीं जाएगा,
सहके चला जाये गरीब,अपना सफर चुनता है।
कलियुग का जमाना है,मात पिता मिले परेशान,
बेटा बेटी ऐश कर रहे,इन देवों का नहीं है ज्ञान,
याद आते बहुत ही, जब ये तो छोड़ चले जाएंगे,
कौन सुनने वाला उनकी,सबके सब बने अज्ञान।
राह भटक जाता जंगल में, नहीं नजर आये राह,
लाख प्रयास करें रास्ते का, नहीं मिले तब थाह,
लाख पुकारों,कौन सुनेगा यहां,जंगल है सुनसान,
मुसीबतों को जो पार करे, मिले अति वाह वाह।
जहाज चली समुद्र में, पंछी उस पर बैठा खुश,
दूर समुद्र नौका पहुंची,पंछी को होता बड़ा दुख,
कांव-कांव चिल्लाता रहा, कौन सुने आवाज को,
वापस जहाज पर आ बैठा,वक्त आज है विमुख।
झूठा मानव पाये बड़ाई, सच्चा करे आज लड़ाई,
रो रोकर झूठ समक्ष, झूठ ने तब आंसू ही बहाई,
कौन सुनेगा आज सच, झूठा बना है जन चेहरा,
कब कल्कि अवतार ले, चर्चा करे लोग लुगाई।
अधिक बोल काम निकाले, शरीफ रहता शांत,
लाख गुणी गर शांत रहे,बने नहीं जगत पहचान,
बदल गया जमाना अब, किसे अब क्या कहना,
सेवा करता जन जन की, वो कहलाता है महान।
कौन सुनता है, जमाना तेज,सभी रहे अब भाग,
क्या जमाना आया, अपनी डफली अपना राग,
बचकर रहना बुद्धिहीन से, कहां करेगा वो वार,
घटिया जन से बचना, वो होते हैं जैसे हो नाग।।