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Satyendra Gupta

Abstract

4.5  

Satyendra Gupta

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खोया और पाया

खोया और पाया

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इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया

खुशियों में मुस्कुराया तो दुखों में रोया

जीवन ने कई रंग दिखाए

कभी रंगीन तो कभी गमगीन

कभी अपनो ने रुलाया तो कभी हसाया

इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया।


पारिवारिक जीवन को समझा और उलझा पाया

आर्थिक परिस्थिति को झेला फिर भी मुस्कुराया

जीवन की नैया कभी अटकी और पार भी लगाया

लेकिन अपने दुखों को जग जाहिर नहीं बनाया

दुखों से निकलने की भरपूर प्रयास लगाया

इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया।


मेरी जो आदत है उसे आपको बतलाता हूँ

मुश्किलों में अपने आपको मजबूत बनाता हूँ

उस मुश्किल पल में धैर्य को अपनाता हूँ

मुश्किल पल को समय पे छोड़ देता हूँ

अच्छा हो जायेगा यही मन में सोच लेता हूँ

आज तक मैं यही बस यही करता आया हूँ

दूसरों  से सलाह लेने के बजाय खुद को समझाया

इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया।


हम एक कठपुतली है डोर किसी और के पास है

कर्म के हिसाब से स्वर्ग , नर्क हमारे साथ है

किसी का हित नहीं कर सकते , अहित भी न करना

खुशी खुशी सबके सुख दुख में साथ रहना

ईश्वर ने हमें इसलिए है भेजा और बनाया

इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया।


राह चलोगे राही बनकर मंजिल मिलेगी जरूर

रुक जाओगे जिस दिन मंजिल होगी दूर

मन कभी भटक जाए , अपने से नीचे देखना

सोचना उनसे तो अच्छे हो , जो आपसे नीचे है

जीवन में हर किसी के पास है संघर्ष का साया

कुछ लोग मंजिल से भटके , कुछ ने आसान बनाया

इस जीवन में बहुत कुछ खोया और पाया ।


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