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Ranjeeta Dhyani

Abstract

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Ranjeeta Dhyani

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ख्वाब

ख्वाब

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आज़ादी का बिगुल बजा है

बीत गए ७५ साल

आज़ाद भारत सजा हुआ है

आओ मिलकर देखें हाल


आज़ादी पाई थी हमने १९४७ में

पूर्ण आज़ादी मिल ना पाई २०२२में


भूख प्यास से बेहाल जनता 

आज भी पीड़ित जाग रही है

पढ़ी-लिखी बेरोजगार जनता

नौकरी की तलाश में भाग रही है


महंगाई की चक्की हर दिन

इंसान को पीसे जा रही है

उपभोक्तावाद संस्कृति....

अपनी ओर खींचे जा रही है


कुचला जाता है गरीब आदमी

हर रोज़ गांव, शहरों में.....

नहीं सुरक्षित बहू, बेटियां

कानून के कड़े पहरों में......


नहीं हुई खत्म रिश्वतखोरी

भरी जा रही, पैसों की बोरी

गोरख-धंधे चल रहे हैं.....

दंगों में शोले जल रहे हैं...


हिंसा, बर्बरता जारी है

समाज की बुद्धि मारी है

आज भी कई घर हैं ऐसे

जहां बेबस होती नारी है


शिक्षा हर द्वार पहुंचने की

मुहिम शुरू करवाई है.......

लेकिन कई बच्चों को आज भी

शिक्षा नहीं मिल पाई है......


सोते हैं फुटपाथ पर लोग 

जिनके पास घर नहीं है

बनते हैं अपराधी वो...

जिनके मन में डर नहीं है


मानवता का अंत निकट है

ना जाने कैसी आज़ादी है?

गौर से देखो, तो जानोगे

चहुं ओर बर्बादी है.…..


सहमा हुआ समाज है

जनता बड़ी उदास है

इतनी अधिक आबादी है

हर चीज़ में मारामारी है


हमारी आज़ादी अधूरी है

पूर्णता से अभी दूरी है

पता नहीं कब वो दिन आएगा

जब पूर्ण आज़ादी का जश्न मनेगा।


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