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Isha Kathuria

Others

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Isha Kathuria

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कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो

कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो

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हमें ईश्वर ने दो कान और मुख एक दिया

बोलने और सुनने का परस्पर इंतज़ाम किया

पर मूर्ख इंसान ने केवल बोलने का अवसर लिया

और जब आई सुनने की बारी...

सुनने के लिए न सुनकर

केवल जवाब देने के लिए मुख का उपयोग किया।


क्यों हम सब सुनना नहीं चाहते?

फिर स्वयं को तन्हा भी पाते....

बड़े बूढ़े इसे एक कला बताते,

बुद्धिजीवी इस कौशल का पाठ पढ़ाते।


और जब सुनने की बात निकाल ही आई है

तो क्या ध्यान से कभी सुना है तुमने

पक्षियों का सूर्योदय पर चहचहाना...

गुरुद्वारे से मधुर गुरबाणी के वचन कानों में आना

लहरों का उल्लास से तुम्हारे पैरों को छू जाना...

मां का लोरियों से अपने शिशु को सुलाना

पिता का नींद में थकान से कराहना,

किसी ग़रीब की दुआओं में दर्द भरा अफसाना

एक फ़ौजी का देशभक्ति वाला गाना,

विदा होती दुल्हन का रोना और रुलाना

प्रेमी का वियोग में विरह गीत सुनाना

शोषित मनुष्य का क्रंदन और चिल्लाना

मनुष्य की अनुपस्थिति में धरती का राग सुहाना

और हां, 

अपनी रूह की आवाज़ सुनना मत भूल जाना।


क्यूंकि बोल कर तो तुम सिर्फ अपनी कह जाओगे

लेकिन सुनकर, किसी के हमदर्द बन पाओगे।


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