मुझे आज भी याद है वो मंजर, जहाँ की जमीन थी बिल्कुल बंजर। मुझे आज भी याद है वो मंजर, जहाँ की जमीन थी बिल्कुल बंजर।
पहले गोपियाँ थी,कृष्ण की दासी।। अब मानव जीवनचक्र है,कोरोना की दासी।। पहले गोपियाँ थी,कृष्ण की दासी।। अब मानव जीवनचक्र है,कोरोना की...
मेरे बरामदे से, उसकी चौखट तक अधूरी कहानी है,आखरी पन्ने तक। मेरे बरामदे से, उसकी चौखट तक अधूरी कहानी है,आखरी पन्ने तक।
हम पास करें या फेल करें, दिनरात पढ़ते रहते हैं। हम पास करें या फेल करें, दिनरात पढ़ते रहते हैं।