माँ
माँ
जब कभी मैं गिरा,
तुमने है सम्भाला,
जब लगी थी जोरों की भूख,
खुद से कौर खिलाया,
आँसू जो बहे किसी बात पर,
तुमने गले लगाया।
लगता था जब डर कभी,
होती थी सिहरन बड़ी,
नई चीजों से जब खुद को घिरा पाया,
आगे बढ़ने से जब दिल मेरा घबराया,
हाथ पकड़ कर तुमने तब मेरा,
पग-पग साथ निभाया।
याद है मुझे जब राहों से भटका,
उन्नति के पथ पर था अटका,
वीरों की तुम कहानियाँ कहती,
इतिहास के पन्नों को पलटती,
मेरे लिए रातों में जगती,
आगे बढ़ने हर पल प्रेरित करती।
तुम्हारा यह अतुल्य बलिदान,
बच्चों की खातिर न किया आराम,
तुम जैसा न है कोई साथी,
भविष्य बनाने में स्वयं को भूल जाती,
भूख प्यास की सुध न होती,
सबकी मदद में हर क्षण तत्पर रहती।
तुमसे कहने को शब्द पास नहीं मेरे,
तुम्हारा कर्ज न किसी से उतरे,
तुम्हारी तारीफ़ के लिए वो लफ्ज़ ही नहीं बने,
लाज़ आती है माँ, दिल रूग्ण हो जाता है,
हमें पालने में माँ तुम्हारी शिद्दतें बड़ी,
हर पल हमारे लिए जमाने से भी लड़ने खड़ी।