मैं और मेरा परमात्मा
मैं और मेरा परमात्मा
मैं
और
मेरा परमात्मा
मैं ,मैं तो हूँ ही नहीं
जो भी है मेरा परमात्मा ही है।
सच कहूँ
मेरा नहीं ,तुम्हारा नहीं
हम सबका परमात्मा ।
परम आत्मा
मेरी श्रद्धा
मेरा विश्वास
बस.....
परम पिता परमात्मा
सब सही करेंगें
यही रहती मन की आस।
धर्म , कर्म, मन , वचन
सब देन उसी परमात्मा की
वही करवाता है सब कुछ
मैं तो केवल शुक्रिया अदा करती हूँ
हर उस पल का जो भोग रही हूँ
हर कर्म का जो कर रही हूँ ।
परमपिता परमात्मा
माया जिसकी अपरमपार
एक पत्ता भी न हिल पाए
दाना मुँह तक भी न जाए
फिर क्यों मानव है भरमाय
मुसीबत आए तो शरण में आए ।
गर पहले ही ध्याय होता
तो हर पल सुरभित होता
मन में सुकून तन स्वस्थ रहता
जीवन प्यार रंग रंगा होता ।
न मैं ज्ञानी ,न मैं ध्यानी
बस हूँ गृहस्थ इंसान
पा लेती हूँ उस परम पिता को
अपने धर्म में,कर्म में ,वचन में
धर्म पर हित सेवा ,करम सत और वचन शुद्ध....
इससे आगे सोचने की शक्ति
है वही प्रभु ,वही गुणगान
शुक्रिया प्रभु हर नई सुबह के लिए
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया
नम: शिवाय ,नम: शिवाय !