मैं
मैं
मैं उनकी आँख का काजल हूं
मैं हूं एक रंग इन्द्रधनुष का,
कहां जाऊँ और जाऊँ किधर
मैं हूं ख्वाब उनकी हसरत का,
मैं चाहत हूं अरमानों का
दिल की कोरी कल्पनाओं का,
मिल जाता हूं मैं राहों में
मैं पत्थर हूं एक मंजिल का,
मैं उनकी गज़ल का मिसरा हूं
हूं उनकी कलम का शेर एक,
छू लेता हूं जब उनके लब
बन जाता हूं मैं नज़्म एक,
बातों का बहता दरिया हूं
मैं हूं समंदर नफरत का ,
कहते हैं सब मैं अलबेला हूं
ऊगता सूरज हूं पश्चिम का,
फिर भी खुश हूं मैं उनसे
क्योंकि उगने की ख्वाहिश है,
कैसा ही सही मैं जैसा हूं
मेरी किस्मत में शामिल है।