मन सरोवर के समान
मन सरोवर के समान
मन शान्त सरोवर सा तेरा
मधुरिम मुख पर लालिमा ललित।
अरुणिम अधरों पर रवि जैसी
बिखरी आभा कमनीय कलित।।
हो जाता है मन क्यूँ अशान्त
लखकर तेरी अनुपम छवि को।
क्यूँ होती ईर्ष्या सुर नर मुनि
वसुधा-अम्बर और शशि-रवि को।।
सुर की समस्त बालाओं में
सर्वोच्च तेरा स्थान प्रिये।
हो दिव्य गुणों की सागर तुम
उत्कृष्ट भाव अभिमान प्रिये।।
करुणा है सुधा सदृश तेरी
सुर-सरिता सी बहती अविरल।
मानवता है वट-वृक्ष सदृश
रहता आच्छादित जगत सकल।।
निर्धारित करता लक्ष्य सदा
पूर्वानुमान करके प्राणी ।
पाने की विकट लालसा भी
मन में जागृत करता प्राणी।।
क्या तीव्र मनोरथ पाने की
होगी परिपूर्ण कभी उसकी।
होगा वैराग्य परे मन से
सम्पूर्ण सफलता में उसकी।।
हो सदा-सर्वदा मन पुलकित
ऐसी विवेचना कर दो तुम।
अंकुरित रहे मन अभिलाषा
उर्वरक शक्ति प्रिय भर दो तुम।।