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अनजान रसिक

Romance

4.5  

अनजान रसिक

Romance

मुलाक़ात इक अजनबी से

मुलाक़ात इक अजनबी से

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423



चलते -चलते जब यूं ही मिल जाता है ख़ास अजनबी कभी कोई ,

समां हसीं लगने लगता है ,नज़रें रहती हर पल उसके ख्यालों के समंदर में खोयी और बस खोयी .

इश्क़ उसका चलता साथ हरदम ,सरपरस्त साया रहता उसका हर पल ,

मुट्ठी से दिल फिसलने लगता बेकाबू होकर ,मिल पाता इसका न कोई भी हल. 

अपने पराये का भेद क्यों करना तब, मिल जाए एक अजनबी में हमदम एक जब .

मुश्किलों में दामन थामे जो,मिलता आसानी से कहाँ ऐसा कोई कभी ,

जाना पहचाना अपनों से भी अपना अनूठा ऐसा एक अजनबी . 

रेशमी ज़ुल्फ़ों के जादू जिसके मिटा दें उम्र के तकाजे की थकान ,

मिल जाए गर दिलबर ऐसा जो भर दे सब सपनों में उड़ान ,

गोद में जिसके सर रख के धरती लगे मानो कोई स्वर्ग- स्थान .

अजनबी हो ही नहीं सकता वो जो करा दे खुद से खुद की पहचान .

रेत फिसल जाती जैसे मुट्ठी से,वैसे ही ये दिल फिसला चला जाता है ,

मौजूदगी-मात्र से उसकी सब कुछ बदला- बदला नज़र आता है. 

बदली के बीच छुपा सूरज भी अब आँख मारता लगता है ,

इश्क़ उस का दुनिया के कोशे कोशे को मनोहारी रंगों में रंग जाता है .

अजनबी वो हो ही नहीं सकता , रोम रोम बस यही दहाड़ लगाता है ,

जो चुपके से शामिल हो कर जीवन में,अंग- अंग में जीवन भर जाता है .




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