फागुन के दिन आयो
फागुन के दिन आयो
फागुन के दिन आयो गोरी
आओ सब मिल खेलें होरी।
उड़ता अबीर और खिलता गुलाल
प्रकृति ने खोली रंगों की बोरी।।
तन मन रंग में हुआ निहाल
गहरी होती प्रेम की डोरी।
फागुन के दिन आयो गोरी
आओ सब मिल खेलें होरी।।
मन आनंद में डूबा जाता
तन पिचकारी संग भिगोता
रंग अनूठे इस जीवन के
स्मृतियों में रच बस जाते।।
भूल के सारे राग द्वेष सब
स्नेह पाश में हैं बँध जाते
फागुन के दिन आयो गोरी
आओ सब मिल खेलें होरी।।
लाल रंग ने जब प्रेम बिखेरा
पीत सुमन सा चेहरा खिला
चित्त मधुर हरियाली छायी
ज्यों धानी सा रंग उड़ेला।।
नीले अंबर ने आँखें खोली
और गुलाबी हो गया मन
नारंगी रवि की किरणों से
शरमाया दिग-दिगंत नीला अंबर ।।
फागुन के दिन आयो गोरी
आओ सब मिल खेलें होरी।।
इन रंगों का सार नहीं
जब आत्मा रह गई कोरी
मानस जीवन में स्नेह भरे
बचन हैं बहुत जरूरी।।
जिस तन मन को पीर भिगोये
उस पर रख संबल की बोली
आशा और विश्वास के रंग में
रंग कर थोड़ी करें ठिठोरी।।
फागुन के दिन आयो गोरी
आओ सब मिल खेलें होरी।।