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Viral Rawat

Abstract

4.7  

Viral Rawat

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प्रकृति और मानव

प्रकृति और मानव

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विधाता देखकर हमको स्वयं ये सोचता होगा

कि रक्षक हैं ये इस प्रकृति के ये प्रकृति बचायेंगे।

जो पर्दा है पड़ा आँखों में इनकी लालसाओं का

ये उस परदे को अपनी आँखों से क्यूँकर हटायेंगे।।

ये अभ्यारण्य काटेंगे वहाँ पर घर बसायेंगे

ये तालाबों को पाटेंगे वहाँ सड़कें बनायेंगे।

ये संयंत्रों के दूषित जल को नदियों में मिलायेंगे

पशु, खग, सर्प, वानर आदि को भोजन बनायेंगे।।

है सबकुछ पास इसके इक सामाजिक जीव है मानव

ये धरती है भवन, छत है गगन और नींव है मानव।

मगर ये लालसाएं जो हृदय में पाल रक्खी हैं

इन्ही के फेर में फंसकर ये इक दिन मारे जायेंगे।।

विधाता देखकर हमको स्वयं ये सोचता होगा

के रक्षक हैं ये इस प्रकृति के ये प्रकृति बचायेंगे....

                 



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