पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज चौहान
हनु फाड़ दिया शेर का जिसने, जो बचपन में खेल दिखाया था
जीत का झण्डा बुलंद किया, तो, शत्रुओं को धूल चटाया था।
हिंदुस्तान का एकमात्र योद्धा, जिसका न कोई शानी था
छ: भाषाओं का विद्धवान बड़ा, जो आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था।
चिकित्सा शास्त्र का ज्ञान था उसकों, आल्हा-उदल का समकालीन था
भीमदेव को जिसने हराया, दिल्ली का महाराजा था।
राय पिथौरा दुर्ग बनवाता, जनता का सहभागी था
उसकी भलाई में लिप्त रहता, जो लोकप्रिय एक शासक था।
अपने समय का महान योद्धा, हिंदुस्तान का उगता सूरज था
शत्रुओ की नजर में रोज खटकता, सच्चा, धरती-पुत्र कहलाता था।
एक गलती उसे भारी पड़ गई, जो शत्रु को जीवित छोड़ा था
सत्रह बार जिसे हरा चुका था, कैसे, कमजोर उसको समझा था।
बुलावा भेजा जो संयोगिता ने, पृथ्वी भी दौड़ा आया था
स्वयंवर से उठा ले गया उसकों, जयचंद, जिसका स्वयंवर बड़ा रचाया था।
क्षुब्ध हो गया जयचंद इतना, जा गोरी से हाथ मिला बैठा
अहं में इतना गिर गया कैसे, जो, गद्दार देश का बन गया था।
सैनिक शक्ति दे गौरी को, तराइन में दो-दो युद्ध करवाया था
कोहराम मचाया पृथ्वी ने ऐसा, युद्ध से भागे गौरी की जयचंद जान बचाया था।
यातनाएं झेली पृथ्वी ने जेल में, अंधा भी, गौरी ने उसकों बनाया था
फोड़ी गौरी की एक आँख तो, उसनें पृथ्वी का शमसीर से शीश उड़वाया था ।।