प्रतियोगिताएं और कवि
प्रतियोगिताएं और कवि
आजकल अक्सर होता है ऐसा
लिखने का मन बनाकर जब बैठते हैं।
कोई - ना - कोई प्रतियोगिता सामने
विषय वस्तु के साथ प्रस्तुत हो जाती है।
गढ़े हुए अपने विचारों को जाने क्यों छोड़
प्रतियोगिता की दौड़ में शामिल हो जाते हैं।
अपनी पसंद की लेखनी बगल में रख हम
ईनाम जीतने की होड़ में लग जाते हैं।
बड़े जतन से मन में बनाये शब्दों के महल को
चंद तारीफों के दरवाजे पर छोड़ आते हैं।
घिर जाते हैं प्रथम आने की भागमभाग में
खोकर अपने कीमती विचार लग जाते हैं।
कभी जमा हो जाती हैं, कभी जाती हैं छूट पीछे
धूमिल अपनी छवि को ये शब्द यहाँ - वहाँ पाकर
जाने कौन सी दिशा का रुख अपनाती हैं
होकर मायूस दूर और दूर हमसे होती जाती हैं।
है कर्तव्य एक कवि का, वो अपनी लेखनी का
रखे सदा मान, बढ़ाये शब्दों का नित सम्मान।
पढ़ने वाले कुछ सीखे, कुछ रख लें सहेज कर
जब भी आये कवि का नाम, नतमस्तक हो मन।